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रात के करीब पौने 8 बज रहे थे. जनवरी की कड़ाके की ठंड में ज्यादातर लोग रजाइयों में दुबके  पड़े थे. जोदसिंह भी अपने पड़ोस में रहने वाले एक बुजुर्ग के पास बैठा हुआ अलाव पर हाथ सेंक रहा था.

उसे उन से बात करते हुए करीब 10-15 मिनट ही हुए होंगे कि एक तेज आवाज आई. वह आवाज किसी बम धमाके की नहीं बल्कि गोली चलने जैसी थी. आवाज सुनते ही वह चौंक गया क्योंकि यह आवाज उस के घर की तरफ से ही आई थी. उस के अलावा आसपास रहने वाले जिन लोगों ने भी वह आवाज सुनी, घरों के बाहर निकल आए और उस के घर की तरफ चल दिए. जोदसिंह भी बुजुर्ग के पास से उठ कर अपने घर पहुंच गया.

जोदसिंह जब घर पर पहुंचा तो बरामदे में उस के पिता प्रेमचंद, भाई टीटू, टिंकू आदि बैठे थे लेकिन पत्नी हेमलता व छोटे भाई बंटू की पत्नी मिथिलेश वहां पर नजर नहीं आ रही थी. आवाज जोदसिंह के घर वालों ने भी सुनी थी लेकिन उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया था कि आवाज उन के घर से ही आई है. बल्कि वे सोच रहे थे कि किसी बच्चे ने पटाखा फोड़ा होगा.

जोदसिंह के 2 मामा व बच्चे कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. आवाज सुन कर वह भी बाहर निकल आए थे परंतु जब उन्हें यह पता नहीं लग सका कि आवाज कहां से आई है तो वे फिर से टीवी देखने में मशगूल हो गए.

जोदसिंह पत्नी को आवाज लगाता हुआ कमरे में पहुंचा. उसी दौरान उस की नजर जीने के दरवाजे पर गई. वह दरवाजा बंद नजर आया. दरवाजा अंदर की तरफ से नहीं बल्कि छत की तरफ से बंद था. वह यह नहीं समझ पा रहा था कि छत पर कौन है, जिस ने दरवाजा बंद कर रखा है. उस ने अपने भाइयों को आवाज लगाई. टिंकू और टीटू दौड़ेदौडे़ उस के पास आए. उन को भी कुछ शक हुआ.

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