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दरअसल, बंटू कोई कामधंधा नहीं करता था. वह हमेशा अपने पिता और बड़े भाइयों पर बोझ ही बना रहा. जुआ, सट्टा खेलना और अकसर गांव के लोगों के साथ झगड़ना उस की दिनचर्या में शुमार था. इन मामलों में उसे कई बार हवालात में भी बंद होना पड़ा था.

शादी के चंद रोज बाद ही मिथिलेश को जब पति की सच्चाई पता चली तो अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के अलावा उस के सामने कोई उपाय नहीं था. हालात से समझौता करते हुए उस ने पति को काफी समझाया कि वह कोई काम करें, लेकिन उस ने पत्नी की बात को काफी गंभीरता से नहीं लिया.

इसी तरह एकएक कर पूरे 10 साल गुजर गए. बंटू भी अब तक 4 बच्चों का बाप बन चुका था लेकिन उस ने कभी पत्नी की ख्वाहिशों की तरफ ध्यान तक नहीं दिया.

इस की एक वजह यह थी कि बंटू को घर का खर्च चलाने में इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्योंकि उस के पिता और भाई जोदसिंह आर्थिक मदद कर देते थे. जोदसिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही (घुड़सवार) था.वैसे जोदसिंह और बंटू का विवाह एक सप्ताह आगेपीछे हुआ था. उस की पत्नी हेमलता मल्लपुरा थाने के ठीक पीछे रहने वाले जयंती प्रसाद की बेटी थी. जयंती प्रसाद भी यूपी पुलिस में सिपाही थे.

जोदसिंह 3 बच्चों का बाप बन चुका था. लेकिन वह पत्नी से चोरीछिपे बंटू की आर्थिक मदद करता रहता था. जबकि हेमलता इस का विरोध करती रहती थी.

मिथिलेश को रोटी कपड़ा तो मिल रहा था लेकिन इन के अलावा उस की और जरूरतें भी थीं. उस का मन भी करता था कि जेठानी की तरह उस के पास भी जरूरत की तमाम चीजें हों. वह भी रोजाना बढि़या से बढि़या कपड़े पहने. उस के पास भी इतने पैसे हों कि अपनी जरूरत के मुताबिक खर्च कर सके ऐसी ही तमाम महत्त्वाकांक्षाएं उस के मन में दबी पड़ी थीं.

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