‘‘पापा, तुम लखनऊ क्यों नहीं आ जाते, मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है. मम्मी और नाना तो साथ रहते ही हैं, तुम भी साथ रहोगे तो बहुत अच्छा लगेगा.’’ 8 साल के बिल्लू ने अपने पापा राजकुमार से फोन पर ये बातें कहीं तो उस का दिल भर आया. उस ने अपनी आंखों के आंसू पोंछे और बेटे को आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘अभी कुछ दिनों पहले ही तो आया था. परेशान मत होओ, फिर जल्दी ही आऊंगा.’’
‘‘तुम जब भी आते हो बहुत जल्दी चले जाते हो. न मेला घुमाने ले जाते हो न चाट खिलाते हो.’’ बिल्लू ने दूसरी ओर से कहा.
‘‘ठीक है, इस बार आऊंगा तो मेला भी दिखाऊंगा और चाट भी खिलाऊंगा. तुम फोन रखो, मैं जल्दी ही आऊंगा.’’
‘‘ठीक है पापा, इस बार आना तो यहीं रहना. मुझे छोड़ कर मत जाना. मम्मी और नाना से लड़ाई भी मत करना.’’
बिल्लू की बातें सुन कर राजकुमार को लगा कि बिल्लू ये बातें अपने मन से नहीं कह रहा है, बल्कि उस की पत्नी सीमा उस से कहलवा रही है. सीमा की याद आते ही राजकुमार की आंखों के सामने 9 साल पहले का एकएक पल किसी फिल्म की रील तरह गुजरने लगा.
उस समय सीमा 20 साल की थी तो राजकुमार उस से साल, डेढ़ साल बड़ा था. सीमा छत्तीसगढ़ के जिला विलासपुर के थाना पंचपीढ़ी के गांव बेलहा की रहने वाली थी. अपनी 3 बहनों में सांवले रंग और छरहरे बदन की सीमा सब से ज्यादा सुंदर लगती थी. लाल रंग की साड़ी पहन कर जब वह निकलती, राजकुमार उसे देखता ही रह जाता. सीमा के पिता मान सिंह मेहनतमजदूरी कर के परिवार को पालपोस रहा था. इस में उस की पत्नी शांति भी उस की मदद करती थी.