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उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना बेवर के गांव बर्रा के रहने वाले मुन्नालाल कठेरिया का दांपत्य  जीवन गुस्से की वजह से कभी भी  सुखमय नहीं रहा. गुस्से की ही वजह से आज वह अपनी तीसरी पत्नी की हत्या के आरोप में जेल में है. उस की पहली पत्नी की मौत हो गई थी तो उस के गुस्सैल स्वभाव से आजिज आ कर दूसरी पत्नी ने उस के साथ रहने से मना कर दिया था. काफी कोशिश कर के उस के भाई नरेश ने उस की तीसरी शादी औरैया के रमपुरा कटरा के रहने वाले डबली की बेटी सगुना से करा कर एक बार फिर उस की गृहस्थी आबाद करा दी थी.

डबली के 2 बेटे, उमेश और सतीश के अलावा एक बेटी सगुना थी. लेकिन घर के हालात कुछ ऐसे थे कि उसे अपनी एकलौती बेटी का ब्याह मुन्नालाल जैसे आदमी से करना पड़ा था, जिस की 2 शादियां पहले ही हो चुकी थीं. मांबाप की मजबूरी की वजह से सगुना कुर्बान हो गई थी. लेकिन मुन्नालाल से उसे कभी वह जुड़ाव नहीं हो सका था, जो पतिपत्नी में होता है. इस की वजह थी मुन्नालाल का गुस्सैल स्वभाव और उम्र में अंतर.

सगुना गरीब बाप की बेटी थी, इसलिए उसे पता था कि ब्याह के बाद अब उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका है. न चाहते हुए भी वह मुन्नालाल से जुड़ने की कोशिश करने लगी थी.  समय के साथ मुन्नालाल सगुना के 2 बच्चों अलकेश और अतुल का बाप बन गया. इस के बावजूद उस के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया. बातबात में भड़क उठने वाले मुन्नालाल को गुस्सा चढ़ता तो उसे अच्छेबुरे का खयाल नहीं रहता.

ऐसे में सगुना का मन आहत होता रहता, क्योंकि मुन्नालाल गुस्से में गालीगलौज तो करता ही था, मारपीट करने में भी पीछे नहीं रहता था. सगुना ने जब इस बात की शिकायत मांबाप से की तो मांबाप ने ही नहीं, भाइयों ने भी साफसाफ कह दिया था कि अब उस का घर वही है और उसे अपनी तरह से संभालना है. हां, भाइयों ने इस बात का आश्वासन जरूर दिया था कि वे मुन्नालाल को समझाएंगे. इन बातों से साफ हो गया था कि चाहे जो भी हो, उसे हर हाल में मुन्नालाल के साथ ही रहना था.

चारों ओर से निराश सगुना मुन्नालाल में मन लगाने की कोशिश कर रही थी कि तभी अचानक एक दिन मायके से लौटते समय बेवर बसस्टैंड पर उस की मुलाकात गांव के ही रहने वाले बाबा से हो गई. गांव के रिश्ते से वह उस का देवर लगता था. वह बच्चों को ले कर टैंपो पकड़ने के लिए सड़क की ओर बढ़ रही थी, तभी बाबा ने उस के पास आ कर कहा था, ‘‘कहां से आ रही हो भाभी?’’

‘‘मां के यहां गई थी, वहीं से आ रही हूं.’’

‘‘मैं भी घर चल रहा हूं.’’ सगुना का बैग उठाते हुए बाबा ने कहा, ‘‘लाइए, अनुज को मुझे दे दीजिए.’’

बाबा ने सड़क पर आ कर टैंपो रुकवाया और सगुना के बगल में बैठ कर एक बच्चा उस की गोद में बैठा दिया और दूसरा अपनी गोद में बैठा लिया. टैंपो चला तो बाबा ने पूछा, ‘‘भाभी, आप मुन्नाभाई के साथ कैसे रह लेती हो?’’

‘‘मजबूरी है, क्या कर सकती हूं. इस के अलावा कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं है.’’ सगुना ने उदास हो कर कहा.

‘‘भाभी, आप जवान भी हैं और खूबसूरत भी. मुन्ना भाई जैसे आदमी को ले कर क्या बैठी हैं.’’

‘‘भैया, 2 बच्चों की मां को कौन पूछेगा?’’

‘‘लेकिन मुझे तो आप बहुत अच्छी लगती हैं.’’ बाबा ने कहा तो सगुना हैरानी से उस की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप मुझे अच्छी लगती हैं तो अच्छी लगती हैं. इस में मतलब की क्या बात?’’ बाबा ने कहा.

सगुना बेवकूफ नहीं थी कि अच्छी लगने का मतलब न समझती. लेकिन वह 2 बच्चों की मां थी तो बाबा कुंवारा था. हालांकि दोनों की उम्र में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था. लेकिन एकाएक उस पर विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता था. फिर भी सगुना बाबा के बारे में सोचने को मजबूर हो गई थी.

बाबा गांव के ही मुलायम सिंह का बेटा था. वह दिल्ली में रह कर किसी फैक्ट्री में नौकरी करता था. महीने-2 महीने पर गांव आता रहता था. शहर में रहने की वजह से वह बनठन कर रहता था, इसलिए मुन्नालाल जैसे लोग उसे शोहदा कहते थे. यही वजह थी कि एक दिन जब सगुना को बाबा से बात करते मुन्नालाल ने देख लिया तो बोला, ‘‘तुझे बात करने के लिए यही शोहदा मिला था. ऐसे लोगों को मुंह लगाना ठीक नहीं है.’’

‘‘दिल्ली में कमाता है, इसलिए बनठन कर रहता है. मुझे तो उस में शोहदे वाले कोई लक्षण नहीं दिखाई देते.’’ सगुना ने कहा.

‘‘तू मुझ से ज्यादा जानती है क्या. मुझे पता है, वह क्या करता है और कैसे रहता है.’’

मुन्नालाल ने पत्नी को झिड़का तो सगुना चुप हो गई. वह जानती थी इस से बहस करना ठीक नहीं है. इसे कब गुस्सा आ जाए, पता नहीं. गुस्सा आ गया तो वह मारपीट भी कर सकता था. इसलिए बात बदलते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम तो मोबाइल फोन लाने गए थे. उस का क्या हुआ?’’

‘‘ला दूंगा भई मोबाइल फोन. मैं भी चाहता हूं कि हमारे पास भी मोबाइल हो, लेकिन अभी पैसे नहीं हैं. कुछ दिन और रुको. पैसों की व्यवस्था कर के खरीद दूंगा.’’

सगुना को लगता था कि अगर उस के पास भी मोबाइल फोन हो तो घर बैठे वह मांबाप और भाइयों का हालचाल ले लेती. आज सब के पास तो मोबाइल है. मुन्नालाल जिस घर में रहता था, उसी के आधे हिस्से में उस का भाई नरेश पत्नी रामकली तथा 5 बच्चों के साथ रहता था. सगुना को जब कभी मांबाप का हालचाल लेना होता था, जेठ के घर जा कर फोन कर लेती थी.

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