उसी बीच बाबा दिल्ली से आया तो सगुना से मिलने उस के घर जा पहुंचा. सगुना मुंह लटकाए दरवाजे पर बैठी थी. उस तरह बैठी देख कर बाबा ने कहा, ‘‘भाभी, लगता है आज तुम खुश नहीं हो, क्या बात है, मुझे बताओ. मैं भी तो तुम्हारा कुछ लगता हूं.’’
‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम्हारे भैया से कब से एक फोन के लिए कह रही हूं. उन के पास पैसा ही नहीं रहता कि एक फोन ला कर दे दें. फोन न होने की वजह से मायके का हालचाल भी नहीं मिल पाता.’’
‘‘बस, इतनी सी बात के लिए मुंह लटकाए बैठी हैं. इस बार आऊंगा तो आप के लिए मोबाइल ले कर आऊंगा.’’ बाबा ने कहा.
सगुना ने उसे घूर कर देखा. वह उस के लिए इतने पैसे खर्च करने को तैयार है. उस का कितना खयाल रखता है. अगले दिन बाबा दिल्ली चला गया. लेकिन अगली बार आया तो सगुना के हाथ पर एकदम नया मोबाइल रख दिया. सगुना हैरान रह गई. वह पति से कब से मोबाइल लाने को कह रही थी. वह सुन ही नहीं रहा था. बाबा से सिर्फ जिक्र किया और उस ने मोबाइल ला कर दे दिया. यह उस का कितना खयाल रखता है.
सगुना को हैरान और सोच में डूबा देख कर बाबा ने कहा, ‘‘भाभी, तुम हैरान क्यों हो रही हो. सच्चाई यह है कि मैं तुम से प्यार करता हूं. इसलिए तुम्हें वे सारी खुशियां देना चाहता हूं, जो मुन्नाभाई तुम्हें नहीं दे पा रहे हैं.’’
‘‘यह कैसे हो सकता है देवरजी.’’ सगुना ने उलझन में कहा, ‘‘मैं शादीशुदा हूं. मैं तुम से प्यार कैसे कर सकती हूं?’’
‘‘प्यार करने वाले कुछ नहीं देखते. उन्हें सिर्फ अपने प्यार की चिंता होती है. अच्छा, यह बताओ, क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करती?’’ बाबा ने सगुना की आंखों में झांकते हुए पूछा.
सगुना ने सिर झुका लिया. बाबा ने इधरउधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने उस के गालों को छू कर होंठों से लगाया और मुसकराते हुए चला गया. सगुना उसे तब तक देखती रही, जब तक बाबा दिखाई देता रहा. आंखों से ओझल होते समय बाबा ने हाथ हिलाया तो उसी तरह हाथ हिला कर सगुना ने भी जवाब दिया.
बाबा का दिया मोबाइल सगुना ने छिपा कर रख दिया. फिर 2 दिनों बाद वह मायके गई और वहां से लौटी तो मुन्नालाल को बताया कि भाई ने उसे मोबाइल खरीद कर दे दिया है. मुन्नालाल ने सोचा, चलो अच्छा ही हुआ, अब सगुना उसे मोबाइल के लिए परेशान तो नहीं करेगी. उसे क्या पता था कि यह मोबाइल उस का घर बारबाद करने के लिए आया है.
इस के बाद सगुना और बाबा के बीच बात होने लगी. इस बातचीत ने दोनों को और करीब ला दिया. फिर अगली बार बाबा गांव आया तो बेखौफ सगुना से मिला और पति के प्यार की प्यासी सगुना को बाबा से इतना प्यार मिला कि वह मुन्नालाल के प्रति बेवफा हो गई. दिल में उस ने मुन्नालाल की जगह बाबा को बैठा लिया.
कुछ दिनों तक तो सगुना और बाबा के संबंधों की किसी को खबर नहीं लगी. लेकिन जब बाबा का मुन्नालाल के घर कुछ ज्यादा ही आनाजाना हो गया तो उसे ले कर कानाफूसी होने लगी. किसी पड़ोसी ने जब मुन्नालाल को बताया कि बाबा उस की गैरमौजूदगी में उस के घर आताजाता है तो पहले तो उस ने जम कर सगुना की ठुकाई की, उस के बाद बोला, ‘‘आज के बाद बाबा घर में दिखाई दिया तो अच्छा नहीं होगा.’’
इस के बाद उस ने सगुना का मोबाइल फोन ले कर देखा तो उस की जिस नंबर पर सब से ज्यादा बात हुई थी वह बाबा का नंबर था. मुन्नालाल के मन में शक का बीज पड़ गया. उसे एक बार फिर अपनी गृहस्थी बरबाद होती नजर आने लगी.
शक ने मुन्नालाल को पागल कर दिया. वह बातबात में सगुना से लड़ाईझगड़ा और मारपीट करने लगा. उस की मारपीट से तंग आ कर एक दिन सगुना ने फोन पर बाबा से साफ कह दिया, ‘‘तुम्हारी वजह से मैं रोज पिटती हूं. तुम मुझे अपने साथ ले चलो, वरना मुझे छोड़ दो.’’
‘‘ठीक है, तुम तैयार रहना मैं जल्दी ही घर आ रहा हूं. इस बार मैं तुम्हें भी साथ ले आऊंगा.’’ बाबा ने कहा.
इस के बाद एक दिन सगुना गायब हो गई. परेशान मुन्नालाल भाई नरेश के पास पहुंचा और सारी बात बताई. नरेश तो कुछ नहीं बोला, लेकिन उस के बेटे सुलखान ने कहा, ‘‘चाची की वजह से गांव में हमारी बहुत बदनामी हुई है. अगर चाची लौट कर नहीं आती तो समाज में हमारा उठनाबैठना मुश्किल हो जाएगा.’’
इस के बाद काफी सोचविचार कर दोनों भाई बाबा के पिता मुलायम सिंह के पास पहुंचे, जब इन लोगों ने उसे बताया कि बाबा सगुना को भगा ले गया है तो पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ. लेकिन जब इन लोगों ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने सगुना को बाबा के पास से ला कर उन के हवाले नहीं किया तो वे बापबेटे के खिलाफ सगुना को बरगला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा देंगे.
ग्रामप्रधान ने भी मुलायम सिंह पर दबाव बनाया तो मुलायम सिंह ने बेटे को फोन किया. सचमुच सगुना उसी के साथ थी. उस ने उसे गांव ले कर आने को कहा. इस तरह लगभग सप्ताह भर बाद सगुना एक बार फिर मुन्नालाल के पास आ गई.
बेटा दोबारा इस तरह का काम न करे, मुलायम सिंह ने उस के लिए लड़की तलाशने लगा. जल्दी ही उस ने हरदोई में उस की शादी तय कर दी. जब इस बात की जानकारी सगुना को हुई तो उस ने बाबा को फोन कर के साफसाफ कह दिया कि अब वह उस के बिना कतई नहीं रह सकती. तब उस ने उसे आश्वासन दिया कि शादी के बाद भी वह उसी का रहेगा.
मुन्नालाल पत्नी पर नजर रखता था. लेकिन बाबा के प्यार में पागल सगुना को अब उस की जरा भी परवाह नहीं रह गई थी. यही वजह थी कि अब वह आक्रामक होती जा रही थी. दूसरी ओर मुन्नालाल परेशान था कि अगर सगुना चली गई तो इस के बाद कोई उसे अपनी लड़की देने वाला नहीं है.
बाबा की शादी रेखा से हो गई थी. बाबा के घर वाले चाहते थे कि वह अपनी पत्नी को दिल्ली ले जाए. इस शादी से मुन्नालाल ने भी राहत महसूस की थी कि बाबा नईनवेली दुलहन पा कर सगुना को भूल जाएगा. लेकिन यह उस का भ्रम था. क्योंकि कुछ दिनों बाद बाबा नौकरी छोड़ कर गांव आ गया.