प्रेमी पंकज से विवाह करने के बाद नीतू ठाकुर खुश थी, लेकिन बिहार पुलिस में सिपाही की नौकरी मिल जाने के बाद वह घमंडी हो गई. इसी दौरान उस का सिपाही सूरज ठाकुर के साथ चक्कर चल गया. वासना की आग में वह इतनी अंधी हो गई कि खूनी खेल के नतीजे में 5 मौतों का मंजर सामने आया...
बिहार पुलिस की कांस्टेबल नीतू ठाकुर रात होने पर औफिस से अपने क्वार्टर पर आई थी. उस के 2 बच्चे, सास और पति काफी समय से उस का इंतजार कर रहे थे. छोटी बेटी श्रेया तो सो गई थी. सास आशा कुंवर रसोई में खाना पका रही थीं, पति पंकज कुमार सिंह साढ़े 4 साल के बेटे शिवांश के साथ बैडरूम में था. बाहर खिड़की से कमरे में बाइक की जैसे ही तेज रोशनी आई, शिवांश बोल उठा, ''मम्मी आ गइल...आ गइल.’’
भागता हुआ वह घर के मेन दरवाजे पर जा पहुंचा. मम्मी को देख कर उसे दोनों हाथों से पकड़ लिया. नीतू उसे गोद में उठाते हुए बोली, ''शिब्बू, खाना खइल!’’
''ना मम्मी!’’ प्यार से शिकायती लहजे में शिवांश बोला.
''ना खइल अभी तक, दादी ने कुछ देले बिया... आ पापा कहां बाडऩ हो बेटा!’’ नीतू गोद में लिए बेटे को पुचकारने लगी.
''का हो कनिया, आज फिर देर से अइलू? देख तो श्रेया दूध पीए खातिर तोहरा के इंतजार करतेकरते सुत गइल बिया!’’
''काहे, दूध नइखे देवलो होकरा के!’’ नीतू बोली.
''कहत रही, महतारी से दूध पीयब!’’
सास रसोई में रोटी बेलती हुई बोली.
''पंकज का करत रहुवें? हम औफिसो में ड्यूटी करीं और घर संभालीं...आ उहां के घर में खाली पलंग तोडि़हें...कोई काम करत नइखे तो कम से कम बचवन के तो संभाले के चाही!’’