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एक घंटे में मोनिका को थाने में ले आया गया. एसएचओ ने रविरतन को पहले ही दूसरे कमरे में बिठा दिया था. मोनिका काफी घबराई हुई दिखाई दे रही थी. उस के चेहरे का रंग भी उड़ा हुआ था.

एसएचओ ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे सासससुर का कत्ल तुम्हारे इशारे पर हुआ है मोनिका, तुम ने कातिलों को अंदर आने के लिए दरवाजा खोला था.’’

“यह झूठ है साहब,’’ मोनिका जल्दी से बोली.

“लेकिन आशीष तो यही कह रहा है कि दरवाजा तुम्हीं ने खोला था.’’ प्रवीण कुमार ने अंधेरे में तीर चलाया.

मोनिका बुरी तरह घबरा गई, ‘‘क्या आशीष पकड़ा गया है?’’

“हां, उस ने राधेश्याम और बीना देवी का कत्ल करने की बात कुबूल ली है.’’ प्रवीण कुमार अपनी बात का असर होते देख कर बोले, ‘‘अब तुम भी अपना जुर्म कुबूल कर लो. मैं कोशिश करूंगा तुम्हें कम से कम सजा मिले.’’

मोनिका रोने लगी. रोते हुए ही उस ने कहा, ‘‘मैं ने ही सासससुर का कत्ल करवाया है साहब. मैं आशीष के प्यार में पागल हो गई थी. मैं सासससुर को रास्ते से हटाने के बाद पति को भी मरवाना चाहती थी.’’

इस खुलासे पर वहां उपस्थित सभी पुलिसकर्मी हैरान रह गए. एसएचओ ने मोनिका को घूरा, ‘‘तुम ऐसा आशीष को पाने के लिए कर रही थीं?’’

“जी हां, मैं आशीष भार्गव से बहुत प्यार करती हूं, उसी के साथ घर बसाना चाहती थी. सासससुर की मैं ने आशीष से हत्या करवा दी, पति रवि भी रास्ते से हट जाता तो सारी संपत्ति की मैं मालकिन बन जाती.’’

“अब यह बताओ, आशीष कहां पर है?’’ प्रवीण कुमार ने कुटिल मुसकान चेहरे पर ला कर पूछा.

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