कुछ ऐसा ही हाल कंचन का भी था. वह भी अपनी बरबादी का कारण प्रमोद को मानती थी. इसलिए वह प्रमोद को अकसर ताना मारती रहती थी. इसी के बाद दोनों में लड़ाईझगड़ा होता और मारपीट हो जाती. कंचन प्रमोद से पीछा छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उस ने प्रमोद से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उस ने जिला कौशांबी के रहने वाले अपने एक परिचित सुरेश दूबे से बात की. वह कौशांबी के मंझनपुर में भार्गव इंटर कालेज में बाबू था. सुरेश ने कंचन का भार्गव इंटर कालेज में दाखिला ही नहीं करा दिया, बल्कि उसे इंटर पास भी कराया.
इस के बाद सुरेश दूबे ने ही डिग्री कालेज मंझनपुर से कंचनलता को प्राइवेट फार्म भरवा कर बीए करा दिया. सन 2010 में कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर की भरती हुई तो कंचनलता होमगार्ड में प्लाटून कमांडर बन गई. वर्तमान में वह महिला थाना कौशांबी में तैनात थी. प्लाटून कमांडर होने के बाद कंचन कौशांबी में रहने लगी तो प्रमोद मीरजापुर में अकेला ही रहता रहा. दोनों बच्चे भी बाहर रहते थे. प्रमोद कालीन बुनाई का काम करता था. वह अकेला पड़ गया तो कारखाना मालिक ने उस से कारखाने में ही रहने को कहा. इस से दोनों का ही फायदा था.
मालिक को कम पैसे में चौकीदार मिल गया तो प्रमोद को सोने के भी पैसे मिलने लगे थे. अब प्रमोद 24 घंटे कारखाने में ही रहने लगा था. पतिपत्नी में वैसे भी नहीं पटती थी.अलगअलग रहने से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. कंचनलता जब तक प्रमोद के साथ रही, डर की वजह से उस ने मायके वालों से संपर्क नहीं किया था. लेकिन जब वह कौशांबी में अकेली रहने लगी तो वह घर वालों से संपर्क करने की कोशिश करने लगी.