9 अगस्त की सुबह फताराम सो कर उठा तो घर में पत्नी मेहर और बच्चों को न पा कर वह परेशान हो उठा. उस ने पूरे गांव में उन्हें इधरउधर खोजा. जब वे कहीं नहीं मिले तो वह किसी अनहोनी के बारे में सोच कर चिंतित हो उठा. उस ने पत्नी और बच्चों की तलाश रिश्तेदारों एवं जानपहचान वालों के यहां की. लेकिन वे वहां भी नहीं थे.
जब मेहर और बच्चों का कहीं कुछ पता नहीं चला तो अगले दिन यानी 10 अगस्त को परिजनों की सलाह पर फताराम ने थाना पल्लू में अपनी पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी. अब फताराम और उस के घर वालों के साथ पुलिस भी मेहर और बच्चों की तलाश करने लगी.
लेकिन कई दिनों बाद भी मेहर और बच्चों का कुछ पता नहीं चला. जब इस बात की जानकारी गांव के ही मनीराम और रूपाराम को हुई तो उन्होंने फताराम के घर जा कर बताया कि कई दिन पहले रात को उन्होंने मेहर को गांव के बाहर वाले तालाब के पास राजमिस्त्री कृष्ण से बातें करते देखा था. तब बच्चे भी उस के साथ थे..
कृष्ण और मेहर के बीच अवैध संबंधों की जानकारी फताराम को थी. लेकिन मेहर बच्चों को ले कर उसके साथ भाग जाएगी, यह उस ने नहीं सोचा था. एक बार उसे विश्वास भी नहीं हुआ कि मेहर ऐसा करेगी. लेकिन जब उस ने इस बात पर गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि मेहर बच्चों को ले कर उसी के साथ चली गई है.
19 अगस्त को फताराम अपने एक रिश्तेदार नंदलाल के साथ कृष्ण के गांव आशाखेड़ा पहुंचा. उन दोनों को देख कर कृष्ण के होश उड़ गए. मेहर का मोबाइल फोन कृष्ण के हाथ में देख कर फताराम ने पूछा, ‘‘मेहर कहां है?’’