कड़ाके की ठंड में अगर रिमझिम बारिश हो रही हो तो ठंड को अपना विकराल रूप दिखाने का बढि़या मौका मिल जाता है. रोज की तरह ठंड की उस बारिश में दोपहर को साहेब रिशा के घर पहुंचा तो वह रजाई में दुबकी बैठी थी. एकदूसरे को देख कर दोनों मुसकराए. इस के बाद हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए साहेब बोला, ‘‘भई, आज तो गजब की ठंड है.’’
‘‘इसीलिए तो रजाई में दुबकी बैठी हूं.’’ रिशा बोली, ‘‘रजाई छोड़ने का मन ही नहीं हो रहा है. लेकिन इस ठंड में तुम यहां कहां घूम रहे हो?’’
‘‘घूम नहीं रहा हूं. सुबह से तुम्हें देखा नहीं था. इसलिए इस ठंड में नहीं रहा गया तो तुम्हें देखने चला आया,’’ साहेब ने रिशा को लगभग घूरते हुए कहा, ‘‘सोचा था, तुम आग जलाए हाथ सेंक रही होओगी तो थोड़ी देर मैं भी उसी में हाथ सेंक लूंगा. लेकिन यहां तो हाल कुछ और ही है. लगता है, मुझ से ज्यादा तुम्हें गरमी की जरूरत है. अब तुम्हारी ठंड कुछ दूसरी ही तरह से दूर करनी पड़ेगी.’’
इतना कह कर साहेब ने रिशा के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले लिया.
रिशा ने झटके से उस के हाथों को अलग किया और ठंडे हो गए गालों को हथेलियों से मलते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे हाथ कितने ठंडे हैं, एकदम बर्फ हो रहे हैं.’’
‘‘रिशा, कुछ चीजें ऊपर से भले ही ठंडी लग रही हों, लेकिन अंदर से बहुत गरम होती हैं.’’ साहेब ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगर मेरी बात पर विश्वास न हो तो कर के दिखाऊं. अभी मेरे ये ठंडे हाथ तुम्हें पलभर में गरम लगने लगेंगे.’’
साहेब की इस बात से रिशा के गाल शरम से लाल हो गए. उस ने आंखें मटका कर उसे प्यार से डांटते हुए कहा, ‘‘कितनी बार कहा कि इस तरह की बातें मुझ से मत किया करो. तुम्हें तो शरम आती नहीं. अपनी ही तरह दूसरे को भी बेशरम समझते हो.’’
‘‘तो फिर कैसी बातें किया करूं?’’ साहेब ने अपना चेहरा रिशा के चेहरे के एकदम पास ला कर उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.
‘‘उस तरह की अच्छीअच्छी बातें, जैसी दूसरे लोग किया करते हैं.’’
‘‘भई प्रेम करने वालों की बातें कहीं से भी शुरू हों, अंत में वह वहीं पहुंच जाती हैं.’’
‘‘साहेब, अभी हम सिर्फ प्रेम करते हैं, हमारी शादी नहीं हुई है.’’
‘‘प्रेम हो गया है तो शादी भी हो जाएगी.’’
‘‘जब शादी हो जाएगी तब जो मन में आए, वह कर लेना.’’
‘‘जब प्रेम ही करना है तो चाहे शादी के पहले करो या बाद में, क्या फर्क पड़ता है.’’
रिशा को साहेब की इन बातों में मजा आने लगा था. इसलिए उस ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘शादी के बाद कोई दूसरी तरह का प्यार किया जाता है क्या?’’
‘‘वह तो शादी के बाद ही पता चलेगा. लेकिन अगर तुम चाहो तो वह मैं प्यार शादी के पहले भी कर सकता हूं.’’ साहेब ने कहा.
‘‘फिर वही बात करने लगे.’’ रिशा ने आंखें तरेर कर नाराजगी व्यक्त की.
‘‘तुम भी तो उसी तरह की बातें कर रही हो.’’
रिशा साहेब की इस बात का जवाब देने ही जा रही थी कि हवा का तेज झोंका कमरे में घुसा तो ठंड से रिशा और साहेब, दोनों ही कांप उठे. रिशा ने रजाई को लपेटते हुए कहा, ‘‘लगता है, आज की ठंड जान ले कर ही मानेगी.’’
‘‘किसी की जान भले ही न जाए, लेकिन मेरी जरूर चली जाएगी.’’
‘‘वह कैसे?’’
‘‘तुम तो रजाई ओढ़ कर बैठी हो, जबकि में खुले दरवाजे के सामने खड़ा ठंड से कांप रहा हूं.’’ साहेब ने कहा.
‘‘दरवाजा बंद कर के तुम भी रजाई में घुस जाओ.’’ रिशा ने जल्दी से कहा.
साहेब को इसी का तो इंतजार था. रिशा ने दरवाजा बंद करने को कहा था, इसलिए उस ने जल्दी से दरवाजा बंद कर के सिटकनी लगा दी. इस के बाद फुरती से रजाई में घुस गया और रिशा के हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘रिशा, तुम और तुम्हारी रजाई कितनी गरम है. अपनी तरह मुझे भी गरम कर दो न.’’
‘‘मेरी रजाई में तुम क्यों घुस आए?’’ रिशा हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कोई आ गया तो बेकार में बात का बतंगड़ बनेगा.’’
‘‘रिशा, शायद तुम्हें पता नहीं कि प्यार में उन्हीं का नाम होता है, जो बदनाम होते हैं.’’
‘‘समझने की कोशिश करो साहेब,’’ रिशा ने कहा, ‘‘तुम लड़के हो, तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा. लेकिन मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगी.’’
‘‘मैं चाहता भी यहीं हूं कि मेरे अलावा तुम्हारा मुंह कोई दूसरा न देखे. तुम्हारा यह मुंह सिर्फ मैं देखूं.’’ साहेब ने रजाई के अंदर ही रिशा को बांहों में भर कर कहा.
साहेब की इस हरकत से रिशा के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. साहेब के इस स्पर्श ने उसे इस तरह रोमांचित किया कि वह भी उस से लिपट गई. उस की पलकें लगभग मुंद सी गई थीं. साहेब ने इस का भरपूर लाभ उठाया और फिर वही हुआ, जो रिशा शादी के बाद करना चाहती थी.
उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के थाना रामसनेही घाट के गांव अंगदपुर बुढ़ेला में रहते थे मुंशी रावत. उस का भैंसों का कारोबार था. उस के परिवार में पत्नी राधा के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी आयशा का विवाह हो चुका था. रिशा हाईस्कूल में पढ़ रही थी. जबकि दोनों बेटे कैलाश और विमलेश अभी छोटे थे. वे भी पढ़ रहे थे.
बात उस समय की है, जब रिशा दसवीं में पढ़ रही थी. उस समय उस की उम्र 16 साल थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही रिशा की खूबसूरती में एकदम से निखार आ गया था. उसे चाहने वालों की कमी नहीं थी. लेकिन उसे तो घनश्याम उर्फ साहेब भा गया था.
मुंशी रावत के मकान के बराबर वाले मकान में परशुराम रावत उर्फ परशू रहते थे. अगलबगल घर होने की वजह से दोनों परिवारों में खूब मेलजोल था. दोनों ही घरों के लोग एकदूसरे के घर बेरोकटोक आतेजाते थे. परशुराम की पत्नी का भतीजा था घनश्याम उर्फ साहेब. वह बाराबंकी के थाना असंद्रा के गांव देवीगंज का रहने वाला था. उस के पिता शंकरलाल रावत खेतीकिसानी करते थे. साहेब अकसर अपनी बुआ के यहां गांव अंगदपुर बुढ़ेला आताजाता रहता था.
इसी आनेजाने में उस की नजर खूबसूरत रिशा पर पड़ी तो पहली ही नजर में वह उसे दिल दे बैठा. जैसी लड़की की चाहत उस के दिल में थी, रिशा ठीक वैसी थी. रिशा का हसीन चेहरा उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गया.
साहेब को रिशा से मिलनेजुलने में वैसे भी कोई दिक्कत नहीं थी, क्योंकि उस की बुआ के घर वाले उस के यहां खूब आतेजाते थे. उन्हीं की वजह से वह भी रिशा के घर आनेजाने लगा. फिर जल्दी ही उस ने रिशा से दोस्ती गांठ ली. दोनों में खूब पटने लगी. वजह यह थी कि रिशा भी साहेब को पसंद करती थी. दोनों ही एकदूसरे को चाहते थे. इसलिए उन्हें इजहार करने में देर नहीं लगी.
दोनों घरों की छतें मिली थीं, इसलिए साहेब छत के रास्ते रिशा के पास पहुंच जाता था. इस के बाद छत पर बने कमरे में बैठ कर दोनों घंटों प्यार की बातें करते रहते. प्रेम के भंवर में डूबतीउतराती रिशा कहती, ‘‘साहेब, मैं ने तुम से प्यार ही नहीं किया, बल्कि तुम्हें अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया है. इस की लाज रखना. कभी मेरा दिल मत तोड़ना.’’
‘‘कैसी बात करती हो रिशा, तुम्हारा दिल अब मेरी जिंदगी है. हर कोई अपनी जिंदगी को संभाल कर रखता है.’’
‘‘इसी भरोसे पर तो मैं ने तुम से प्यार किया है. मन और आत्मा से वरण कर के सात जन्मों के लिए मैं तुम्हारी हो चुकी हूं. अब देखना है कि तुम किस हद तक अपना यह प्यार और वादा निभाते हो.’’
‘‘प्यार निभाने की कोई हद नहीं होती रिशा. प्यार और किया गया वादा निभाने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूं.’’ साहेब ने रिशा को आश्वस्त किया.
‘‘पता नहीं, वह दिन कब आएगा, जब मैं पूरी तरह से तुम्हारी हो जाऊंगी.’’
‘‘विश्वास रखो रिशा, वह दिन जल्दी ही आएगा.’’ रिशा का हाथ अपने हाथों में ले कर साहेब ने कहा, ‘‘क्योंकि हमारी शादी में कोई अड़चन नहीं है. हम एक ही धर्मजाति के हैं. हमारा सामाजिक और आर्थिक स्तर भी एक जैसा है. सब से बड़ी बात तो यह कि हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं.’’
साहेब की बातें रिशा को यकीन दिलाती ही थीं, उसे खुद भी पूरा यकीन था कि उस की शादी में कोई अड़चन नहीं आएगी. इसलिए उसे अपने प्यार और भविष्य के प्रति कभी नकारात्मक विचार नहीं आते थे. उसे हर पल साहेब का इंतजार रहता था. उस के आते ही वह खुली आंखों से भविष्य के सपने देखने लगती थी.