कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

तनहाई, 2 जवां दिल और किसी के आने का कोई डर न हो तो बहकने में देर नहीं लगती. कभीकभी रिशा और साहेब के भी दिल बहकने लगते, लेकिन रिशा जल्द ही संभल जाती. इस के बाद वह साहेब को भी बहकने से रोक लेती.

लेकिन संभलते संभलते भी उस रोज ठंड में न चाहते हुए भी रिशा बहक गई थी. इस के बाद तो रिशा को इस आनंद का चस्का सा लग गया था. उस आनंद को पाने के लिए वह हर वक्त उतावली रहने लगी थी. साहेब भी यही चाहता था.

जब दोनों तनहाई का ज्यादा ही फायदा उठाने लगे तो उन के इस मिलन की खुशबू फैलने लगी. पहले यह खुशबू पड़ोस वालों तक पहुंची. इस के बाद उन्होंने ही इसे मुंशी रावत तक पहुंचा दिया. वह तो सन्न रह गए.

मुंशी रावत दोनों पर नजर रखने लगे तो एक दिन उन्हें प्यार भरी बातें करते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया. उन्हें देख कर साहेब तो चुपचाप खिसक गया, लेकिन रिशा की जम कर पिटाई हुई. मारपीट कर मुंशी ने उसे सख्त हिदायत दी, ‘‘आज के बाद साहेब अगर इस घर में आया या तू ने उस से कोई वास्ता रखा तो मैं तेरी जान ले लूंगा.’’

मुंशी की क्रोध से जलती आंखों को देख कर रिशा कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा सकी थी. डर के मारे उस ने अपनी आंखें मूंद ली थीं. मुंशी पैर पटकता हुआ चला गया था. बाप के जाने के बाद ही रिशा की जान में जान आई थी. अब उस पर कड़ी नजर रखी जाने लगी थी. जिस की वजह से रिशा और साहेब का मिलना असंभव हो गया था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 12 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...