पुलिस एक महीने तक इस मामले की जांचपड़ताल में उलझी रही. लेकन नतीजा शून्य ही रहा. नितिन ने अलीगढ़ से पढ़ाई की थी. हत्या वाली रात जो युवक उस के बेड के पास देखा गया था उस ने भी खुद को अलीगढ़ का ही रहने वाला बताया था. शायद अलीगढ़ से ही कोई क्लू मिल जाए यह सोच कर एसआई संजीव कुमार शर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम अलीगढ़ भेजी गई.
पुलिस ने वहां पूछताछ भी की. लेकिन नितिन की किसी रंजिश के बारे में पता नहीं चल सका. कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस टीम वापस लौट आई. नितिन की हत्या पुलिस के लिए पहेली बन गई थी. हत्या का खुलासा नहीं हो सका तो नितिन के घर वालों ने डीआईजी के. सत्यनारायण से मुलाकात कर के हत्यारे को पकड़ने की मांग की. इस मामले को ले कर पुलिस की किरकिरी हो रही थी. पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे थे. डीआईजी के. सत्यनारायण और एसएसपी ओंकार सिंह इस मामले को ले कर काफी परेशान थे.
अस्पताल में हुई हत्या का यह केस पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. उन्होंने एसपी (सिटी) ओमप्रकाश, सीओ विकास त्रिपाठी और सर्विलांस टीम के साथ मीटिंग कर के जांच की समीक्षा की और पूरे मामले की नए सिरे से जांच के निर्देश दिए. इस बीच थाना मैडिकल प्रभारी का स्थानांतरण कर के बचन सिंह सिरोही को इंचार्ज बना दिया गया था.
नए सिरे से जांच की कड़ी में पुलिस ने नितिन के मोबाइल के इंटरनेशनल मोबाइल इक्विपमेंट आईडेंटिटी (आईएमइआई) नंबर के जरिए पता करने की कोशिश की कि क्या उस मोबाइल में और भी सिमकार्ड इस्तेमाल किए गए थे. इस से पुलिस को 2 और नंबर मिल गए. उन नंबरों का इस्तेमाल हत्या से पहले किया जाता रहा था. ये दोनों नंबर भी नितिन के ही नाम पर थे. उन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. पता चला कि उन में से एक नंबर ऐसा था जिस पर अकसर बातचीत और एसएमएस होते थे.