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सुनील की परेशानी वासिफ से भी छिपी नहीं थी. कुछ महीने नौकरी कर के वासिफ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मेरठ चला आया और लालकुर्ती इलाके में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा. सुनील से उस का दोस्ताना भी बना रहा और संपर्क भी. उधर सुनील नितिन और पूजा के मुद्दे पर जितना सोचता उस की परेशानी उतनी ही बढ़ जाती. जिंदगी की राहों में मिलनाबिछड़ना कोई नई बात नहीं होती.

यूं भी इंसान की जिंदगी और रिश्ते ठीक वैसे नहीं होते जैसे वह खुद चाहता है. कुछ लोग विपरीत स्थितियों से भी संतुलन बैठा कर अपनी राह आसान कर लेते हैं, लेकिन कुछ ऐसा नहीं कर पाते. सुनील भी कुछ ऐसा ही था. वह नितिन को अपना सब से बड़ा दुश्मन मानता था. यह बात अलग थी कि नितिन को इस का अहसास भी नहीं था. यदाकदा वह सुनील से हालचाल पूछने के लिए फोन कर लिया करता था.

जिंदगी का एक सच यह भी है कि खूबसूरत यादें जल्दी नहीं भूली जातीं. सुनील ने पूजा की खूबसूरत यादों की नींव रख कर ख्वाबों का जो खूबसूरत आशियाना बनाया था वह उस की मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गया था. यह अलग बात है कि यह उस का एकतरफा जुनून था. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए अब वह बुरी कल्पनाएं करने लगा था. एक दिन वह मेरठ आया, तो काफी परेशान था.

उस की परेशानी भांप कर वासिफ ने पूछा तो वह रोष में बोला, ‘‘मैं नितिन को रास्ते से हटाना चाहता हूं. चाहे जो भी हो, अब मैं पूजा को पा कर ही रहूंगा. नितिन मेरे रास्ते से हट जाए तो सब ठीक हो जाएगा. तू इस काम में मेरा साथ दे.’’

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