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घटनास्थल पर होने वाले बवाल को तो पुलिस अधिकारियों ने समझाबुझा कर टाल दिया था, लेकिन उन के मन में जो आग जल रही थी, उसे शांत करने के लिए वे दीपेंद्र की प्रेमिका अंकिता, जिस पर हत्या का शक था, के घर जा पहुंचे. दीपेंद्र की मां आशा, बहन आरती, ज्योति, बुआ बब्बन और चाची कांति अंकिता को पकड़ कर पिटाई करने लगीं. उन्होंने उस के कपड़े भी फाड़ दिए.

अंकिता के पिता राजा और मां ने उसे छुड़ाना चाहा तो साथ आए लोगों ने उन की भी पिटाई कर दी. कपड़े फट जाने से अंकिता अर्धनग्न हो गई थी. उसी हालत में उसे घर के बाहर खींच लाया गया. लोग उस का तमाशा बना रहे थे. तभी इस बात की सूचना पा कर वहां पुलिस पहुंच गई और काफी मशक्कत कर के भीड़ से निकाल कर उसे थाने ले आई.

दीपेंद्र के घर वालों ने अंकिता और उस के मंगेतर विशाल पर हत्या का आरोप लगाया था. अंकिता गिरफ्त में आ चुकी थी. अब विशाल को गिरफ्तार करना था.

पुलिस ने जब मुखबिरों से विशाल के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह बकरमंडी ढाल पर मौजूद है. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह यादव पुलिसबल के साथ वहां पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर विशाल को गिरफ्तार कर लिया. उसे थाना कर्नलगंज ले आया गया. इस तरह लाश मिलने वाले दिन ही यानी 23 जुलाई को दोनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया.

थाने में विशाल से दीपेंद्र की हत्या के बारे में पूछा गया तो बड़ी आसानी से उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि मंगेतर अंकिता और भाई विकास की मदद से उस ने दीपेंद्र की हत्या की थी. इस के बाद अंकिता से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि वह दीपेंद्र से प्यार करती थी. लेकिन उस की जिद, गालीगलौज और धमकियों से परेशान हो कर उस ने अपने मंगेतर विशाल से कह कर उस की हत्या करा दी थी.

विशाल और अंकिता ने दीपेंद्र की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इसलिए थाना कर्नलगंज पुलिस ने मृतक दीपेंद्र की मां आशा देवी की ओर से उस की हत्या का मुकदमा विशाल, विकास और अंकिता के खिलाफ दर्ज कर विस्तार से पूछताछ की. इस पूछताछ में प्रेमत्रिकोण में हुई हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के थाना कर्नलगंज का एक मोहल्ला है मकराबर्टगंज. इसी मोहल्ले में राजा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी मीना के अलावा 2 बेटियां अंकिता उर्फ लाडो और सुनीता थीं. राजा प्राइवेट नौकरी करता था, जिस के वेतन से किसी तरह गुजरबसर हो रहा था.

राजा की आर्थिक स्थिति भले ही बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन संयोग से उस की दोनों ही बेटियां बहुत खूबसूरत थीं. बड़ी बेटी अंकिता थोड़ा आजाद खयाल की थी. उसे सहेलियों के साथ घूमनेफिरने, गप्पे लड़ाने में बड़ा मजा आता था. राजा और मीना को लगा कि अंकिता सयानी हो गई है और उस के कदम बहक सकते हैं तो वे उस की शादी के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी.

उन की कोशिश का सुखद परिणाम निकला. पास के ही मोहल्ले कर्नलगंज में रहने वाला विशाल उन्हें पसंद आ गया. उस के परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई विकास था. विशाल शरीर से हृष्टपुष्ट था ही, देखने में भी सुंदर था. लेकिन अभी वह करता धरता कुछ नहीं था. दिनभर इधरउधर घूमता रहता था. इस के बावजूद ज्यादा दानदहेज न दे पाने की वजह से राजा ने बेटी की शादी उस के साथ तय कर दी.

शादी हो पाती, उस के पहले ही राजा की तबीयत खराब हो गई. राजा की बीमारी काफी गंभीर थी. जांच में पता चला था कि उसे कैंसर है. कैंसर का इलाज काफी महंगा था. अंकिता अपनी शादी को भूल कर मां की मदद से पिता का इलाज कराने लगी. इस के लिए मीना को दूसरे के घरों में जा कर काम करना पड़ रहा था, फिर भी उस ने हिम्मत नहीं हारी.

पिता की बीमारी की वजह से अंकिता की शादी टल गई थी. मजबूरी की वजह से विशाल भी चुप था.

मकराबर्टगंज के जिस हाता नंबर 8 में अंकिता रहती थी, उसी में दीपेंद्र सैनी भी रहता था. वह सुरेंद्र मोहन सैनी का बेटा था, लेकिन उन की मौत हो चुकी थी. उस के परिवार में मां आशा देवी के अलावा एक भाई अतुल तथा 2 बहनें, अनीता और ज्योति थीं. अनीता की शादी हो चुकी थी. खातेपीते परिवार का दीपेंद्र शरीर से स्वस्थ और हंसमुख स्वभाव का था. वह मैग्ना फाइनैंस कंपनी में नौकरी करता था. आकर्षण व्यक्तित्व वाला दीपेंद्र रहता भी बनसंवर कर था.

पड़ोस में रहने की वजह से अकसर दीपेंद्र की नजर अंकिता पर पड़ जाती थी. जवानी की दहलीज पर खड़ी अंकिता धीरेधीरे उस के दिल में हलचल पैदा करने लगी. दीपेंद्र का दिल उस पर आया तो वह उस की एक झलक पाने के लिए उस के घर के चक्कर लगाने लगा. तभी उसे पता चला कि अंकिता के पिता को कैंसर हो गया है. हमदर्दी जताने के बहाने वह उस के घर आनेजाने लगा.

अंकिता ने दीपेंद्र की चाहत को भांप लिया था. इसलिए जब दीपेंद्र उस के घर आता, वह उस के आसपास ही बनी रहती और इस बात की कोशिश करती कि दीपेंद्र ज्यादा से ज्यादा देर तक उस के घर रुके. उसे रोकने के लिए ही वह उसे चाय पिए बिना नहीं जाने देती थी.

अंकिता अब दीपेंद्र की नींद हराम करने लगी थी. उसी की यादों में वह पूरी की पूरी रात करवटें बदलता रहता था. दिन में भी उस की वजह से उस का मन काम में नहीं लगता था. लगभग वही हाल अंकिता का भी था. दीपेंद्र की चाहत ने अंकिता को मंगेतर से बेवफाई के लिए मजबूर कर दिया. चाहत की आग दोनों ओर बराबर लगी थी, इसलिए दोनों को अपनेअपने दिलों की बात एकदूसरे से कहने में जरा भी झिझक नहीं हुई.

मीना पति को अस्पताल ले कर चली जाती तो अंकिता घर में अकेली रह जाती थी, क्योंकि उस की बहन भी मां की मदद के लिए उस के साथ चली जाती थी. अंकिता से मिलने का दीपेंद्र के लिए यह उचित समय होता था. जल्दी ही दोनों इस एकांत का गलत फायदा उठाने लगे. धीरेधीरे दोनों की प्रेमकहानी बढ़ती ही गई. अंकिता के शरीर पर जो हक उस के मंगेतर विशाल का होना चाहिए था, अब वह उस के प्रेमी दीपेंद्र का हो गया था.

अंकिता से प्रेमसंबंध बनने के बाद दीपेंद्र का उस के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया था. अंकिता से वह उस के घर में तो मिलता ही था, उसे होटल रेस्टोरेंट भी ले जाता था. कमाई का एक बड़ा हिस्सा वह अंकिता और उस के घर वालों पर खर्च करने लगा था.

वह अंकिता का पूरा खर्च तो उठाता ही था, उस के बाप के इलाज के साथसाथ घर खर्च के लिए भी पैसे देता था. उस की इस मदद से राजा और मीना भी उस के एहसानों तले दब गए थे. कहा जाता है कि जब राजा का औपरेशन हुआ था तो उस ने 50 हजार रुपए दिए थे.

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