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पति का साथ छूट जाने के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी शंकरी के ही कंधों पर आ गई. तब उन का भाई राजेश ही उन का सहारा बना था. उन की परछाई बन कर उन्हें हौसला दिया था. उन के हर दुखसुख में वह खड़ा रहता था. भाई का उन के जीवन पर बहुत एहसान था, इसीलिए वह उसे अपने साथ हमेशा रखती रहीं.

करोड़ों की संपत्ति देख हुआ हरामखोर...

अमरज्योति शंकरी डे का इकलौता बेटा था. घर में पैसों की तो कोई कमी थी नहीं. मां सरकारी विभाग की मुलाजिम थीं. किराए के रूप में एक अच्छी मोटी रकम भी घर में आ ही रही थी. यह देख कर अमरज्योति का मन बदल गया था. उस ने नौकरी अथवा व्यापार करने की कभी सोची ही नहीं. वह तो ये सोचता था कि मांबाप की धनदौलत आखिर उसे ही तो मिलनी है, फिर नौकरी कर के क्या होगा. यही सोच कर अमर ज्योति ने नौकरी करने के बारे में कभी सोचा तक नहीं.

शादी के बाद भी अमर ज्योति कीसोच में कोई बदलाव नहीं आया था. वंदना कलिता पति को कुछ कामधाम करने को कहती थी तो वह उस पर गुस्सा हो जाता था. वो पत्नी से भी वही बातें कहता कि आखिर मां की कमाई का सुख भोग कौन करेगा? अगर तुम्हें खानेपीने और पहननेओढऩे के लिए न मिले तो मैं दोषी हूं. फिर जब सब कुछ तुम्हें मिल ही रहा है तो इस में हायतौबा मचाने की जरूरत ही क्या है, क्यों खुद परेशान रहती हो और दूसरों को भी परेशान किए रहती हो.

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