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सन 1991 में सोफिया शेख का निकाह चैंबूर के शिवाजीनगर के रहने वाले इमरान हाजीवर शेख के बड़े भाई के साथ हुआ तो मानो उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. इस की वजह यह थी कि उस का पति उसे जान से ज्यादा प्यार करता था. उस का दांपत्यजीवन बड़ी हंसीखुशी से बीत रहा था. दोनों अपनी गृहस्थी जमाने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक उन की इस गृहस्थी पर किसी की काली नजर पड़ गई.

अभी सोफिया के हाथों की मेहंदी भी ठीक से नहीं छूटी थी कि जिस पति ने उस का हाथ थाम कर जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था, वह हाथ ही नहीं, बल्कि हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चला गया. हैवानियत की एक ऐसी आंधी आई, जिस में उस का सुहाग पलभर में उड़ गया. सन 1992 में मुंबई में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उस में उस का पति मारा गया था.

पति की आकस्मिक मौत ने सोफिया को तोड़ कर रख दिया. उसे दुनिया से ही नहीं, अपनी जिंदगी से भी नफरत हो गई. वह जीना नहीं चाहती थी, लेकिन आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी. वह हमेशा सोच में डूबी रहने लगी. मुसकराने की तो छोड़ो, वह बातचीत भी करना लगभग भूल सी गई थी. उस की हालत देख कर मातापिता परेशान रहने लगे थे. उस ने जिंदगी शुरू की थी कि उस के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया था. अभी उस की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की जिंदगी को संवारने के लिए उस के मातापिता उस के दूसरे निकाह के बारे में सोचने लगे.

सोफिया के मातापिता उस का दूसरा निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख से करना चाहते थे. सोफिया की ससुराल वालों से बातचीत कर के जब उस के मातापिता ने इमरान से निकाह का प्रस्ताव सोफिया के सामने रखा तो उस ने मना कर दिया. लेकिन उन्होंने उसे ऊंचनीच का हवाला दे कर खूब समझायाबुझाया तो वह देवर इमरान हाजीवर शेख के साथ निकाह करने को तैयार हो गई.

इस के बाद दोनों परिवारों की उपस्थिति में बड़ी सादगी से सोफिया का निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख के साथ हो गया. यह 1996 की बात थी. इमरान औटो चलाता था.

निकाह के बाद सोफिया अपने दूसरे पति से भी वैसा ही प्यार चाहती थी, जैसा उसे पहले पति से मिला था. यही वजह थी कि वह उसे भी उसी तरह प्यार कर रही थी. निकाह के कुछ दिनों बाद तक तो इमरान ने उसे उसी तरह प्यार किया, जिस तरह उस के पहले पति ने किया था. तब वह अपनी सारी कमाई ला कर सोफिया के हाथों में रख देता था. उस बीच उस ने उस के हर दुखसुख का खयाल भी रखा.

उसी बीच सोफिया उस के 2 बच्चों की मां बनी. पहला बच्चा बेटा था तो दूसरा बेटी. बच्चों के बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं. जिम्मेदारियां बढ़ीं तो खर्च बढ़ा, जिस के लिए इमरान को कमाई बढ़ाने के लिए ज्यादा समय देना पड़ता था. अब वह पहले की तरह न सोफिया को प्यार कर पाता था, न समय दे पाता था. इस से सोफिया का मन बेचैन रहने लगा, जिस से छोटीछोटी बातों को ले कर बड़ेबड़े झगड़े होने लगे. धीरेधीरे ये झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों ने अलग रहने का निर्णय ले लिया. इस तरह दोनों के संबंध खत्म हो गए.

पति से अलग होने के बाद सोफिया दोनों बच्चों को ले कर मानखुर्द में मुंबई म्हाण द्वारा मिले मकान में आ कर रहने लगी. बच्चों के साथ यहां आ कर सोफिया खुश तो थी, लेकिन एक बात यह भी है कि पति से अलग होने के बाद हर औरत बहुत दिनों तक अपने दिलोदिमाग पर काबू नहीं रख पाती. अगर वह जवान हो तो यह समस्या और बढ़ जाती है. क्योंकि इस उम्र में जो जोश होता, उसे संभालना हर किसी के वश की बात नहीं होती. उस औरत के लिए यह और मुश्किल हो जाता है, जो उस का स्वाद चख चुकी होती है. ऐसे में वह उस सुख के लिए मर्यादा तक भूल जाती है.

ऐसा ही सोफिया के साथ भी हुआ. पति इमरान हाजीवर से अलग होने के बाद वह अपने तनमन पर काबू नहीं रख पाई और स्वयं को समीर शेख की बांहों में झोंक दिया.

25 वर्षीय समीर शेख अपने भाई के साथ गोवड़ी शिवाजीनगर के उसी इलाके में रहता था, जहां सोफिया अपने पति इमरान हाजीवर शेख के साथ रहती थी. समीर शेख देखने में जितना सुंदर और स्वस्थ था, उतना ही दिलफेंक भी था. इसी वजह से लड़कियां उस की कमजोरी बन चुकी थीं. समीर के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. वह दुबई की किसी कंपनी में नौकरी करता था. अच्छी कमाई थी, इसलिए खर्च करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह हमेशा हीरो की तरह सजधज कर रहता था. उस की शादी भी नहीं हुई थी, इसलिए कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी.

अपने दिलफेंक स्वभाव की ही वजह से जब उस ने सोफिया को अपने एक रिश्तेदार के यहां देखा तो पहली ही नजर में उसे अपने दिल में बैठा लिया. कुंवारा समीर अपनी उम्र से बड़ी और 2 बच्चों की मां सोफिया पर मर मिटा. सोफिया जब तक अपने उस रिश्तेदार के घर रही, तब तक महिलाओं को पटाने में माहिर समीर की नजरें सोफिया के इर्दगिर्द ही घूमती रहीं.

सोफिया को भी एक ऐसे पुरुष की जरूरत थी, जो उस के भटकते तनमन को काबू में ला सके. इसलिए समीर से नजरें मिलते ही उस ने उस के दिल की बात जान ली. सोफिया ने समीर को तब देखा था, जब वह लड़का था. आज वही समीर जवान हो कर उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था.

समीर का भरापूरा चेहरा, चौड़ी छाती और मजबूत बांहें देख कर सालों से शारीरिक सुख से वंचित सोफिया का मन विचलित हो उठा. वह उसे चाहत भरी नजरों से ताक ही रहा था, इसलिए सोफिया ने भी उस पर अपनी नजरें इनायत कर दीं तो बातचीत में होशियार समीर को उस पर अपना प्रभाव जमाने में देर नहीं लगी. उसी दौरान दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर भी ले लिए. इस के बाद मोबाइल पर शुरू हुई बातचीत जल्दी ही मेलमुलाकात में ही नहीं, प्यार और शारीरिक संबंधों में बदल गई.

2 बच्चों की मां होने के बावजूद सोफिया की सुंदरता में जरा भी कमी नहीं आई थी. उस के रूपसौंदर्य और शालीन स्वभाव में समीर डूब सा गया. औरतों का रसिया समीर शेख जब तक दुबई में रहता, फोन से बातें कर के सोफिया को अपने प्यार में इस कदर उलझाए रहता कि उसे उस की दूरी का अहसास नहीं हो पाता.

दुबई से आने पर समीर सोफिया के लिए ढेर सारे उपहार तो लाता ही, उसे इस कदर प्यार करता कि बीच का खालीपन भर जाता. जब तक वह यहां रहता, सोफिया को इतना प्यार देता कि वह पूरी दुनिया भूली रहती. समीर के प्यार को पा कर सोफिया एक सुंदर भविष्य के सपनों में खो गई. उस के मन में उम्मीद जाग उठी कि समीर उस का पूरे जीवन साथ देगा. समीर ने वादा भी किया था, इसलिए सोफिया उस से निकाह के लिए कहने लगी. जबकि समीर टालता रहा.

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