सोनाली के घर के चौकीदार त्रिलोक चंद अपना अनुभव सुनाते हैं, ‘‘एक बार गांव में जनसभा थी. सोनाली की नजर उन पर पड़ी. उन्होंने इशारा कर मुझे स्टेज पर बुला लिया और कहा, ‘‘आ साथ में फोटो खिंचाते हैं.’’
त्रिलोक चंद गरीबों के साथ सोनाली के व्यवहार के बारे में बताते हैं, ‘‘गरीब से गरीब आदमी के साथ सोनाली मजबूती से खड़ी हो जाती थी. उस की ऐसी ही सोच ने उसे राजनीति में आगे बढ़ाया. जब बीजेपी ने उसे नलवा हल्का सौंपा तो उन्होंने बहुत मेहनत की. वहां की परफौरमेंस देख कर ही उसे आदमपुर से कुलदीप बिश्नोई के सामने खड़ा करवाया.
‘‘सब जानते थे कि ये बहुत मुश्किल काम था. वह उन का गढ़ था. और तो और, सोनाली को टाइम भी मिला बस 15 दिन का. पर उस ने ना नहीं किया. मजबूती से जुटी और अपने विपक्षी की चूलें हिला दीं. थोड़ा टाइम मिल गया होता तो शायद जीत भी जाती. संघर्षशील थी, समझदार थी.’’
जून 2020 में एक कृषि अधिकारी को चप्पल से पीटने का वीडियो वायरल होने के बारे में उन के पड़ोसी भजन लाल बताते हैं कि उसे ये बरदाश्त नहीं था कि किसान भाइयों का हक कोई मारे. वो अफसर यही कर रहा था. वह अपने लिए नहीं, समाज के लिए, देश के लिए लड़ रही थी. उस के इस पक्ष को भी देखना चाहिए. हमारे गांव का दुर्भाग्य है कि हम ने उस जैसा जिंदादिल लीडर खो दिया.
सोनाली फोगाट की मौत को ले कर भूथन कलां के लोग उदास हो गए हैं. उन का कहना है कि गांव की गलियां अपनी बेटी की खिलखिलाहट कभी नहीं सुन सकेंगी. गली की छांव में ताश खेलते बुजुर्गों के कान तक सोनाली की ‘राम-राम’ नहीं पहुंच सकेगी. गांव में रह जाएंगे तो बस उस के फसाने. वे यादें जहां लोग उस की जिंदादिली की बात कर सकेंगे.