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3 महीने तक चले इलाज के दौरान डाक्टरों ने कई बार जोहान को ब्लड देने की मांग की, तब एक बार खालिद और एक बार दादा जाकिर अली ने भी उसे खून दिया था. जबकि 2 बार खालिद के परिचितों ने जोहान के लिए ब्लड डोनेट किया था.

मैक्सकेयर हौस्पिटल (Max care Hospital) के डाक्टरों का ध्यान जोहान की सेहत के बजाय रुपए वसूलने पर ज्यादा था, इसलिए जोहान की हालत में कोई सुधार नहीं आया. रुपए खर्च कर परिवार के लोग थक चुके थे.

परिवार के लोग जोहान की हालत देख कर चिंतित हो जाते थे, उस के शरीर में केवल हड्डी और चमड़ी ही बची थी. एक दिन खालिद ने अस्पताल की संचालक डाक्टर से सवाल किया, ''सर, हमारे लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं. आखिर बच्चे की हालत में सुधार क्यों नहीं हो रहा? सुधार की जगह हमें गिरावट ही दिख रही है. डाक्टर साहब, उस की हालत कब सुधरेगी. अब तो हमारे पास पैसे भी नहीं बचे हैं.’‘

इस पर डाक्टर ने झल्ला कर जबाव दिया, ''हम लोग उस का इलाज कर रहे हैं न, पैसों की इतनी दिक्कत है तो किसी खैराती अस्पताल में जा कर उस का इलाज कराओ.’‘

जनवरी की वह रात बहुत सर्द थी. कमरे के अंदर भी हाथपांव ठंड की वजह से सुन्न हो रहे थे. मध्य प्रदेश के जिला भोपाल (Bhopal) के टीला जमालपुरा स्थित हाउसिंग बोर्ड कालोनी में रहने वाले 28 वर्षीय खालिद अली का 3 महीने का बेटा जोहान भी ठंड की वजह से परेशान था, उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. अपनी अम्मी की बाजू में लेटे जोहान के बदन की गरमाहट से उस की अम्मी का बुरा हाल था. उस ने घड़ी देखी, उस समय रात के 2 बज रहे थे. सुबह होने में अभी काफी वक्त था. शौहर खालिद गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था.

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