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एक दिन आरती को कृष्ण कुमार की याद आई. वह कभीकभी उस से फोन पर बातें किया करती थी. उस ने मुकीम को भी उस के बारे में बता कर कहा, ‘‘कृष्ण कुमार बड़े आदमी हैं. अगर इन अंकल से एक बार मोटी रकम मिल जाए तो फिर हमें छोटीछोटी वारदातें करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

‘‘लेकिन इन्हें फांसा कैसे जाएगा?’’ मुकीम ने पूछा.

‘‘देखो, उन्हें मैं बुला तो सकती हूं. लेकिन आगे का सारा काम तुम लोग ही करना.’’ आरती ने कहा.

इस तरह बातोंबातों में इस गिरोह का निशाना कृष्ण कुमार पर सध गया. 29 दिसंबर, 2013 को आरती ने मुकीम के मोबाइल से कृष्ण कुमार के मोबाइल पर फोन किया, ‘‘अंकल मुझे अच्छा सा परफ्यूम और एक बढि़या सी घड़ी चाहिए. क्या आप ये चीजें कैंटीन से ला सकते हैं?’’

‘‘हां बेटा, ला दूंगा. मगर तू मुझे मिलेगी कहां?’’ कृष्ण कुमार ने पूछा.

‘‘मैं आज ही ले आऊंगा और तेरे कमरे पर सामान देता हुआ घर निकल जाऊंगा.’’

उस के बाद आरती ने उन्हें पूरे दिन में करीब 6-7 बार फोन किया.

‘‘अंकल मैं ने उस दिन आप को जो लोनी वाला पता दिया था, वहीं पर रह रही हूं.’’

कैंटीन से सामान लेने के बाद कृष्ण कुमार उस दिन ड्यूटी पूरी होने से एक घंटे पहले ही निकल गए. वह सीधे आरती के बताए पते पर पहुंचे, जहां आरती उन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

उस को देख कर आरती चहकते हुए बोली, ‘‘मैं आप का कब से इंतजार कर रही थी. आप ने आने में इतनी देर क्यों लगा दी?’’

‘‘क्या करूं बेटा, काम ही इतना ज्यादा था कि निकलतेनिकलते देर हो गई. फिर भी तुम्हारी खातिर एक घंटे पहले निकल आया था. यह लो तुम्हारा परफ्यूम और तुम्हारे लिए बढि़या सी घड़ी.’’

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