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अपनी सफेद रंग की डीएल-13 सीसी 2442 नंबर की होंडा इमेज कार के इंडीकेटर जलाए अवधेश मिश्रा जीआईपी मौल की पार्किंग में सब से अलग  खड़ी किए ड्राइविंग सीट पर बैठा बेचैनी से पहलू बदल रहा था. कभी उस की नजर गाड़ी के दोनों ओर लगे मैजिक मिरर पर जाती तो कभी कलाई घड़ी या फिर बगल की सीट पर रखे मोबाइल फोन पर. बेचैनी काफी बढ़ गई तो वह होंठों ही होंठों में बड़बड़ाया, ‘किसी भी चीज की एक हद होती है, 10 बजे आने को कहा था, 11 बज रहे हैं. न खुद आई और न फोन किया. मैं फोन करता हूं तो उठाती भी नहीं है.’

न जाने कितनी बार अवधेश के मन में आया कि अब उसे वापस चले जाना चाहिए. लेकिन सुमन से मिलने की लालसा उसे रोक देती कि थोड़ी देर और इंतजार कर ले. शायद वह आ ही जाए. ऐसा करतेकरते उसे लगा कि अब उसे चले जाना चाहिए, वह नहीं आएगी. उस ने कार स्टार्ट भी कर ली. लेकिन तभी उस की नजर मैजिक मिरर पर गई तो पीछे से सुमन आती दिखाई दे गई. सुमन को आते देख उस का गियर पर गया हाथ रुक गया. सुमन करीब आई और कार का दरवाजा खोल कर उस की बगल वाली सीट पर बैठते हुए बोली, ‘‘आई एम रियली वैरी सौरी. क्या करती, ट्रैफिक जाम में इस तरह से फंस गई कि समय पर पहुंच ही नहीं सकी.’’

‘‘तुम फोन नहीं कर सकती थी तो कम से कम मेरा ही फोन उठा लिया होता. मन को संतोष हो जाता.’’ अवधेश ने झल्ला कर कहा.

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