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इस के बाद शालिनी ने सुमन को जो समझाया, उस से सुमन की आंखों में चमक आ गई. उसे लगा कि शालिनी ठीक कह रही है. सुमन ने सहमति जाहिर कर दी, लेकिन जब उसे लगा कि अगर अवधेश पुलिस के पास चला गया तो शालिनी ने कहा, ‘‘ऐसे ठरकी पुलिस के पास नहीं जाते, क्योंकि उन्हें खुद की बदनामी का डर रहता है. ऐसे लोग परदे के पीछे कुछ भी करते रहें, लेकिन सब के सामने साफसुथरा बने रहना चाहते हैं. अवधेश भी पुलिस के पास जाने की हिम्मत नहीं कर पाएगा.’’

‘‘लेकिन हम दोनों यह सब करेंगे कैसे?’’ सुमन ने पूछा.

‘‘तुझे इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे कुछ परिचित हैं, जो प्रेस में काम करते हैं. मैं उन से आज ही बात कर लूंगी.’’ शालिनी ने कहा.

‘‘अच्छा, मनोज, जिस के साथ तुम रहती हो?’’ सुमन ने कहा.

‘‘हां, वह बहुत तेज आदमी है, सब कुछ आसानी से कर लेगा. अब तू वही कर, जैसा मैं कहूं.’’ शालिनी ने कहा.

सुमन वह सब करने को तैयार हो गई, जैसा शालिनी ने कहा था. अगले दिन शालिनी मनोज को अपने साथ ले कर सुमन के घर आई. मनोज ‘साधना टीवी’ में नौकरी करता था. उस के पिता का नाम बख्तावर सिंह था, जो मंडावली के मकान नंबर 245/3ए गली नंबर-7 में रहते थे. वैसे वह उत्तर प्रदेश के कानपुर का रहने वाला था. शालिनी उसी के साथ रहती थी.

बातचीत में मनोज ने सुमन को यकीन दिलाया कि वह अपने एक दोस्त के साथ मिल कर अवधेश मिश्रा को इस तरह फांसेगा कि मजबूरन वह मोटी रकम उन्हें थमा देगा. इस के बाद मनोज ने नीरज मेहरा नाम के अपने एक दोस्त को अपनी इस योजना में शामिल कर लिया. वह साधना चैनल में कैमरा मैन था और इटावा का रहने वाला था.

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