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उस दिन दिसंबर 2018 की 5 तारीख थी. वैसे तो कानपुर कोर्ट में हर रोज चहलपहल रहती है, लेकिन उस दिन  अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (द्वितीय) ज्योति कुमार त्रिपाठी की अदालत में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. पूरा कक्ष लोगों से भरा था. कक्ष के बाहर भी भीड़ जुटी थी.

दरअसल उस दिन एक ऐसे मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था, जिस ने पूरी मानवता को शर्मसार किया था. लोग तरहतरह के कयास लगा रहे थे. कोई फांसी की सजा की बात कह रहा था तो कोई आजीवन कारावास होने का अनुमान लगा रहा था.

अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ज्योति कुमार त्रिपाठी ने ठीक साढ़े 10 बजे न्यायालय कक्ष में प्रवेश किया और कुरसी पर विराजमान हो गए. मुकदमे के 4 अभियुक्त पीयूष वर्मा, मुकेश वर्मा, चंद्रपाल वर्मा तथा संतोष कुमार उर्फ मिश्राजी कठघरे में खड़े थे. उन के आसपास पुलिस का पहरा था. उन के चेहरों पर न्याय का भय साफ झलक रहा था.

माननीय न्यायाधीश ने अंतिम बार अभियोजन व बचावपक्ष के वकीलों की बहस सुनी और अभियोजन पक्ष के गवाहों की सूची पर नजर डाली, 39 गवाह थे. फैसले की यह घड़ी आने में 8 साल का समय लग गया था.

आखिर मामला क्या था, जिस के फैसले को जानने के लिए सैकड़ों लोग अदालत पहुंचे थे. इस के लिए हमें 8 साल पहले घटी उस घटना को जानना होगा, जो बेहद हृदयविदारक थी.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कल्याणपुर थाने के अंतर्गत एक मोहल्ला है रोशननगर. इसी मोहल्ले में राजन शुक्ला के मकान में सोनू भदौरिया नाम की महिला किराए पर रहती थी. सोनू के परिवार में पति हमीर सिंह के अलावा 2 बेटियां दिव्या (10 वर्ष) तथा दीक्षा (7 वर्ष) थीं. सोनू भदौरिया माल रोड स्थित एक मौल में काम करती थी. मौल से मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का भरणपोषण होता था.

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