महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी ऐसी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिन के बारे में वे किसी से चर्चा तक नहीं कर पातीं. पैडवूमन के नाम से मशहूर हो चुकी माया विश्वकर्मा ऐसी ही महिलाओं को इस तरह से जागरूक कर
रही हैं कि...

अभिनेता अक्षयकुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ ने उन्हें पैडमैन के रूप में ख्याति दिलाई है तो देश में अब एक एनआरआई माया विश्वकर्मा पैडवूमन के किरदार में तेजी से उभर कर सामने आई हैं. उन्होंने मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाके में न केवल सैनिटरी पैड बनाने की यूनिट लगाई है, बल्कि वह इस बारे में गांवगांव जा कर महिलाओं को जागरूक भी कर रही हैं. दूरदराज के सरकारी स्कूल कालेजों में माया छात्राओं की क्लास लगा कर उन से माहवारी में उपयोग किए जाने वाले सैनिटरी पैड के इस्तेमाल पर खुलेआम चर्चा करती हैं.

ऐसे में छात्राएं भी बेहिचक उन से सवाल पूछ कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान खोजती हैं. जागरूकता फैलाने के लिए फरवरी माह में माया ने ग्रामीण इलाकों की सैकड़ों महिलाओं एवं किशोरियों को नरसिंहपुर के सिनेमा हाल में पैडमैन फिल्म दिखाई. उन के प्रयास का ही नतीजा है कि महिलाएं जिस समस्या पर पहले खुल कर बात नहीं करती थीं अब खुलेआम बेहिचक बातचीत करती नजर आने लगी हैं. माया ने 45 दिनों में 22 आदिवासी जिलों में जनजागरूकता यात्रा निकालकर एक साहसिक काम किया है.

देश के ग्रामीण इलाकों की करीब 80 फीसदी महिलाएं आज भी अपनी माहवारी के कठिन दिनों में होने वाली परेशानियों को किसी से साझा नहीं कर पातीं. हालात ये हैं कि बेटी अपनी मां, पत्नी अपने पति से भी इस विषय पर बात करने से कतराती है. पिछले 2 वर्ष से मासिक धर्म के दौरान साफसफाई पर कार्य कर रही अप्रवासी भारतीय माया विश्वकर्मा ने महिलाओं की इसी झिझक को दूर करने एवं सैनिटरी नैपकिन के उपयोग के प्रति महिलाओं को जागरूक करने का एक अभियान चलाया है. यही कारण है कि अब माया को पैडवूमन के नाम से जाना जाता है.

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