कामुक मन में आया उबाल
नशा कैसा भी हो, चरस गांजा, भांग, यदि अपने सामने कोई इन का नशा करता है तो मन इन्हें सेवन करने को ललचा ही जाता है. अमर पुरी को धीरेधीरे चरस-गांजा, भांग पीने का चस्का लग गया. वह हर प्रकार का नशा करने लगा.
तथाकथित तंत्रमंत्र और ज्योतिष की दुकान चल ही रही थी, पैसा भी आ रहा था. नशेपत्ते ने अमर पुरी की खोपड़ी को ऐसा घुमाया कि वह हवालात में पहुंच गया.
हुआ यूं कि अपने कमरे में अमर पुरी बैठा हुआ शराब की चुस्कियां ले रहा था. तब उस के एक शिष्य ने आ कर बताया कि एक महिला अपनी समस्या ले कर दरवाजे पर आई है, आप से मिलना चाहती है.
‘‘भेज दो अंदर,’’ अमरपुरी ने बोतल का ढक्कन लगा कर बोतल को अलमारी के पीछे छिपाते हुए कहा.
शिष्य बाहर चला गया. कुछ ही देर में एक सुंदर महिला अंदर आ गई. अमर पुरी ने धूनी जला रखी थी. उस के सामने आसन पर वह आंखें मूंद कर बैठा था. महिला ने झुक कर अमर पुरी के चरण
स्पर्श करते हुए कहा, ‘‘बाबा, मैं बहुत दुखी हूं. आप मेरा दुख दूर करें.’’
अमर पुरी ने आंखें खोल कर उस महिला की ओर देखा. उस के चेहरे पर परेशानी और दुख की पीड़ा साफ झलक रही थी. महिला की सुंदरता पर अमर पुरी मोहित हो गया.
कितने ही समय से वह स्त्री सुख से वंचित था,उस का मन महिला पर आया तो वह उसे हासिल करने की जुगत में लग गया. उस के दिमाग में एक योजना आई तो उस की आंखें चमक उठीं.