आगे वाली गाड़ी से रजत, उस के मातापिता तथा त्रिलोचन के उतरते ही पत्रकारों और टीवी चैनलों के रिपोर्टरों ने घेर लिया. रजत को देखने वालों की भीड़ पत्रकारों से ज्यादा बेताब थी तभी पुलिस की जीप आ पहुंची. जीप के रुकते ही कई सिपाही फुर्ती से उतरे और लोगों को धकियाते हुए रास्ता बनाने लगे.
‘‘चाचाजी, मुझे माफ करिएगा.’’ इंसपेक्टर अनिल ने आगे बढ़ कर त्रिलोचन का रास्ता लगभग रोकते हुए कहा, ‘‘मैं आप को यह सब नहीं करने दूंगा.’’
‘‘क्या नहीं करने देंगे इंस्पेक्टर साहब?’’ त्रिलोचन ने हैरानी से पूछा.
‘‘इस तरह से किसी के घर में घुसना गलत है, अतिक्रमण है यह...’’
‘‘इन लोगों को गिरफ्तार कर लीजिए दरोगाजी, ये हमारे खिलाफ साजिश करने आए हैं...’’ अचानक एक तेज आवाज गूंज उठी. त्रिलोचन ने मुड़ कर देखा, सफेद कुर्ता धोती पहने ऊंचातगड़ा एक आदमी भीड़ को चीर कर उन के सामने आ खड़ा हुआ. उस ने कंधे पर दोनाली बंदूक टांग रखी थी. त्रिलोचन और अनिल कुछ कहने ही वाले थे कि रजत अपनी मां से हाथ छुड़ा कर दौड़ा और उस व्यक्ति से जा कर लिपट गया.
‘‘चाचा, मैं आ गया...’’ रजत की आवाज में खुशी उमड़ी पड़ रही थी. वह व्यक्ति कुछ कहता या पूछता, इस के पहले ही रजत अपने मातापिता से मुखातिब हुआ, ‘‘मम्मी... पापा... ये मेरे चाचा हैं. धुरंधर चाचा.’’
धुरंधर तोमर के चेहरे पर हैरानगी उभर आई. वह चाह कर भी बच्चे को झिड़क नहीं सके.
‘‘आप ने इस बच्चे को आज से पहले कभी देखा है?’’ इंसपेक्टर अनिल ने पूछा.
‘‘नहीं, कभी नहीं.’’ धुरंधर के मुंह से निकला.
‘‘इस के मांबाप को जानते हैं?’’