सामाजिक कार्य करने के लिए तमाम एनजीओ सरकार से करोड़ों रुपए के प्रोजैक्ट लेते हैं. इस के बाद भी वे समाज के लिए कितना काम करते हैं, यह सभी जानते हैं. लेकिन इकरा कुरैशी अकेली जिस तरह नि:शुल्क समाजसेवा कर रही हैं, वह काबिलेतारीफ है. ऐसी लड़कियां, जो पढ़नेलिखने के बाद भी नए जमाने के साथ चलने में झिझक महसूस करती थीं, इकरा कुरैशी की सोहबत ने उन लड़कियों में नया जोश और उत्साह भर दिया है.
उन की सोहबत और काउंसलिंग का ही नतीजा है कि आज गरीब परिवारों की सैकड़ों लड़कियों के व्यक्तित्व और आत्मविश्वास में गजब का निखार आ गया है. इकरा कुरैशी समाज की उन खातूनों की शख्सियत को निखारने में लगी हैं, जिन की जिंदगी पढ़ाई के बाद भी केवल परदे के पीछे सिमट कर रह गई थी. अपने मिशन की वजह से आज इकरा की राष्ट्रीय स्तर इस तरह की पहचान बन चुकी है कि तमाम इंस्टीट्यूट, कालेजों के अलावा प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स भी उन की काबिलियत का लाभ उठा रहे हैं. पुरानी दिल्ली के जामा मसजिद इलाके में रहने वाली इकरा कुरैशी को समाजसेवा करने की प्रेरणा घर से ही मिली. यूसुफ कुरैशी एक लेखक थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा बेटी इकरा कुरैशी और एक बेटा इर्तजा कुरैशी है.
उन के परिवार में कई प्रशासनिक अधिकारी भी हैं. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डा. वाई.के. कुरैशी उन के छोटे भाई हैं. चूंकि इन का परिवार उच्चशिक्षित था, इसलिए उन्होंने अपने दोनों बच्चों को अच्छे संस्कार के साथसाथ अच्छी तालीम दिलाई. इकरा ने लालकिले के पास स्थित प्रिजेंटेशन कौन्वेंट स्कूल से उच्च माध्यमिक परीक्षा पास की. यूसुफ कुरैशी लेखन कार्य में व्यस्त रहते थे. उन की पत्नी जामा मसजिद इलाके की संकरी गलियों में रहने वाली गरीब महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई आदि सिखाती थीं. वह महिलाओं को इस तरह हुनरमंद करना चाहती थीं कि वे अपनी रोजीरोटी खुद कमा सकें. उन्हें किसी का मोहताज न होना पड़े. इतना ही नहीं, वह जरूरतमंदों की आर्थिक मदद भी करती थीं.