घर पहुंच कर अकबर ने एक फैसला कर लिया था. अकबर ने मां को कुछ पैसे देते हुए कहा कि उस ने पार्टटाइम जौब जौइन कर ली है. उस के दिए पैसों से घर के हालात में सुधार हुए. मां के चेहरे पर छाए उदासी के बादल छंटने लगे. 3 दिन तक सोचविचार करने के बाद अकबर ने इकबाल के औफर पर हामी भर दी. इकबाल खुश हो गया.
मगर इकबाल का औफर इतना आसान नहीं था. फिर भी भूखों मरने से तो अच्छा ही था. वह इकबाल का साथ दे और अपने हालात को सुधारे.
अगले दिन सबइंसपेक्टर नासिर अकबर से मिलने उसी घर में आया. वह आम पुलिस वालों की तरह हट्टाकट्टा था और उस के माथे पर जख्म का निशान था. नासिर के मिजाज में एक अजीब सी सख्ती थी, मगर बात करने का अंदाज नरम था. उस की बातें सुन कर अकबर के अंदर समाया भय लगभग खत्म हो गया था.
नासिर ने पूरी प्लानिंग इकबाल के सामने रखते हुए कहा, ‘‘शहर के मेनरोड पर प्राइवेट बैंक की मेन ब्रांच है. यह ब्रांच इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि यहां 3 शुगर मिल्स की पेमेंट जमा होती है. गन्ने के सीजन में यहां हर माह 3 से 5 करोड़ रुपए जमा होते हैं.
रकम के हिसाब से यहां सिक्योरिटी भी काफी सख्त है. शहर की एक एजेंसी उस बैंक को सिक्योरिटी उपलब्ध करा रही है. बैंक में 3 सिक्योरिटी गार्ड हैं, 2 बाहर और एक अंदर. उन पर काबू पाना मुश्किल नहीं है.
असल समस्या है उस एजेंसी के सिक्योरिटी कैमरे और अलार्म सिस्टम. उन्होंने बैंक के एक कमरे को विधिवत अपना सिक्योरिटी रूम बना रखा है, जहां एजेंसी की एक कर्मचारी लड़की काम करती है. मैं ने उसे खरीद लिया है,’’ नासिर ने गर्व के साथ कहा और आवाज दी, ‘‘शीजा.’’
थोड़ी ही देर बाद कमरे में एक मौडर्न लड़की दाखिल हुई. उस ने जींस पर एक हलकी सी शर्ट पहन रखी थी, जिस में उस के शरीर की कयामत बड़ी मुश्किल से कैद नजर आती थी. अकबर ने चौंक कर देखा. शीजा ने मुसकराते हुए इकबाल और अकबर से हाथ मिलाया.
जब शीजा अपनी कुरसी पर बैठ गई तो अकबर ने पूछा, ‘‘नासिर भाई, मेरा एक सवाल है. जब आप के पास शीजा मौजूद है तो फिर मुझे साथ मिलाने की क्या जरूरत थी? काम तो मेरा भी वही है जो शीजा करेगी.’’
अकबर की बात सुन कर नासिर मुसकरा दिया और बोला, ‘‘यार, तुम्हें हमारे ग्रुप की परंपरा तो बताई होगी इकबाल ने. हमारे साथ हर बार अपने काम का माहिर एक बंदा जरूर रहता है और रही शीजा की बात तो वह सिर्फ तुम्हारी मदद करेगी, असल काम तो तुम्हीं करोगे यानी पूरे सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे.
‘‘अगर शीजा यह काम करती है तो जाहिर है कि पुलिस वाले सब से पहले उसी पर हाथ डालेंगे. घटना के बाद इसे कहां हमारे साथ फरार होना है. तुम लोग रिकौर्डिंग गायब करोगे और सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे. बाकी सिक्योरिटी गार्ड्स के लिए मेरे पास एक प्लान है.’’
तभी इकबाल बोल पड़ा, ‘‘मगर भाई, हम नकाब पहन कर जाएंगे तो फिर सिक्योरिटी कैमरों की क्या समस्या?’’
‘‘यार इकबाल, तुम्हें याद नहीं कि पिछली वारदात में तुम्हारा नकाब एक आदमी ने खींच लिया था. इस के अलावा 2-3 वारदातों के दौरान सिक्योरिटी कैमरों में हमारी चालढाल भी रिकौर्ड हुई. इसलिए यह काम करना पड़ेगा. शीजा, तुम बताओ तुम्हारी सिक्योरिटी एजेंसी अपने गार्ड्स को कितनी तनख्वाह देती है?’’ सबइंसपेक्टर नासिर ने इकबाल की वो बात याद दिलाने के बाद शीजा से पूछा.
‘‘ज्यादा से ज्यादा 20-22 हजार.’’ वह मुंह बना कर बोली.
‘‘…इस का मतलब है कि उन्हें आसानी से खरीदा जा सकता है,’’ नासिर ने कहा.
‘‘बिलकुल, बाहर वाले दोनों गार्ड्स खरीदे जा सकते हैं, क्योंकि वे उस नौकरी से तंग हैं. हां, अंदर वाला गार्ड ईमानदार बंदा है, उसे खरीदना मुश्किल है,’’ शीजा के पास पूरी जानकारी थी.
‘‘उस पर हम लोग काबू पा लेंगे,’’ इकबाल बोला.
यह मीटिंग लगभग एक घंटा चली. उन्होंने अपनी योजना के हर पहलू पर ध्यान दिया. उस के बाद वे इस वादे के साथ अपनेअपने घरों की ओर चल दिए कि वे इस प्लान की पूरी तरह रिहर्सल करेंगे. फिर अगले 20 दिन अकबर, इकबाल, शीजा और नासिर उस घर में इकट्ठे हो कर रोजाना एक घंटा अपने काम में लगे रहते.
इस दौरान नासिर ने बैंक के बाहर वाले दोनों गार्डों को अपने साथ मिला लिया था. वह एक चालाक पुलिस वाला था और अपना हर काम बखूबी निकालना जानता था. ठीक एक महीने बाद आखिर वह दिन आ पहुंचा, जिस की तैयारी हो रही थी.
सर्दियों का सूरज अपनी नर्म धूप लिए चमक रहा था. प्राइवेट बैंक की उस मेन ब्रांच में लंच का समय हो गया था लेकिन आज दोनों गार्ड्स गेट पर नहीं थे. थोड़ी देर पहले एक गार्ड खाना लेने के लिए चला गया था जबकि दूसरा गार्ड वाशरूम में था.
ठीक उसी समय एक सुजुकी कार बैंक के गेट पर आ कर रुकी. उस में सवार तीनों लोगों ने अपने चेहरों पर नकाब चढ़ा रखी थी और उन के हाथों में आधुनिक हथियार थे. वे दौड़ते हुए आगे बढ़े.
बैंक के अंदर घुसते ही उन्होंने गेट बंद कर लिया. अंदर मौजूद सिक्योरिटी गार्ड्स ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो नासिर द्वारा चलाई गई गोली उस की गरदन में सुराख कर गई. नासिर मैनेजर के औफिस की ओर बढ़ा जबकि इकबाल कैशियर के काउंटर की तरफ बढ़ गया था.
अकबर दौड़ता हुआ कंप्यूटर रूम की ओर बढ़ा. वहां शीजा के साथ एक अन्य आदमी बैठा था. उस ने उस के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे बेहोश कर दिया. कुछ देर बाद अकबर और शीजा ने सभी सिक्योरिटी कैमरों और अलार्म को निष्क्रिय कर दिया और उन की रिकौर्डिंग नष्ट कर दी.
इस के बाद अकबर ने शीजा के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे भी बेहोश कर दिया. ठीक 10 मिनट बाद जब तीनों लोग सफलतापूर्वक डकैती डाल कर बाहर निकले तो नासिर के शिकंजे में मैनेजर की गरदन थी जबकि अकबर और इकबाल ने नोटों से भरे बैग उठा रखे थे. नासिर की पिस्टल की नाल मैनेजर की कनपटी से लगी हुई थी.
बाहर के सिक्योरिटी गार्डों ने उन्हें देखते ही अपनी बंदूकें फेंक दीं. अगर वे गोली चलाते तो मैनेजर की जान जा सकती थी. तीनों लोग हवाई फायर करते हुए बाहर निकले.
मैनेजर को गाड़ी में बिठा कर इकबाल ने गाड़ी आगे बढ़ा दी फिर 2-3 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद उन्होंने एक सुनसान जगह पर मैनेजर को गाड़ी से धक्का दे कर गिरा दिया और आगे बढ़ चले.
गाड़ी चोरी की थी, जो उन लोगों ने शहर से बाहर पहुंच कर एक जंगल में खड़ी कर दी. फिर आगे का रास्ता तीनों ने अलगअलग तय किया. नोटों के दोनों बैग नासिर अपने साथ ले गया था.
बैंक में पड़ी डकैती का मामला 3 हफ्तों बाद ठंडा पड़ गया. डकैतों के चेहरे पर नकाब होने के कारण कोई भी आदमी उन्हें नहीं पहचान पाया. इस के अलावा डकैतों ने ऐसा कोई सबूत घटनास्थल पर नहीं छोड़ा था कि उन का सुराग लगाया जा सकता.
वैसे जांच करने वाले पुलिस इंसपेक्टर ने बाहर के दोनों सिक्योरिटी गार्डों पर शक जाहिर किया था, मगर वह उन से कुछ उगलवा नहीं सका.
ठीक एक महीने बाद जाड़े की शुरुआत हो गई थी. ऐसी ही एक शाम को अकबर उस किराए के मकान में अपना हिस्सा लेने के लिए पहुंचा, जो नासिर और इकबाल का अड्डा था. यह कार्यक्रम भी पहले से तय था.