दोनों लोग कमरे में मौजूद थे. उन्होंने अकबर का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से किया. वे खूब खापी कर बैंक डकैती की कामयाबी का जश्न मना रहे थे.
उन्होंने अकबर से भी शराब पीने को कहा, लेकिन उस ने इनकार कर दिया. थोड़ी देर बाद नासिर ने इकबाल से कहा, ‘‘अकबर को जल्दी घर जाना होगा. जाओ, अंदर से बैग उठा लाओ.’’
इकबाल बैग उठा लाया. तब नासिर ने कहा, ‘‘कुल 2 करोड़ 75 लाख हाथ में आए हैं. दोनों गार्ड्स के हिस्से के 5-5 लाख उन्हें पहुंचा दिए गए हैं.
25 लाख शीजा के और 50 लाख तुम्हारे हैं. बाकी मेरा और इकबाल का हिसाब है.’’
तभी अचानक अकबर की नजर अपने पीछे खड़े इकबाल पर पड़ गई, जिस ने पिस्टल निकाल कर अकबर की ओर तान दिया. यह देख कर अकबर का कलेजा मुंह को आ गया. वह हैरत से बोला, ‘‘यह क्या कर रहे हो इकबाल भाई. नासिर साहब, यह सब क्या है?’’
नासिर और इकबाल मुसकरा उठे.
‘‘हमारे गु्रप की परंपरा है कि हम हर वारदात में अपना साथी बदल देते हैं. तिजोरियों के माहिर की लाश समुद्र में डुबो दी थी. उस से पहले एक अन्य घटना में गाडि़यों का सामान चुराने वाला हमारे साथ था. उस की लाश इसी मकान के आंगन में दफन है.
‘‘अभी हाल में हम ने सरकारी खजाना लूटा था, जिस के लिए राइफल के एक निशानेबाज की जरूरत थी. बाद में हम ने उसे भी यहीं दफना दिया. यहां ऐसे ही कई हुनरमंद लोग दफन हैं. लेकिन अब मैं सोच रहा हूं कि तुम्हारी लाश का क्या किया जाए.