उत्तर प्रदेश का अमेठी हाल ही में पूरे देश में चर्चा का विषय रहा है. इस का कारण यह था कि अमेठी सीट पर अधिकांशत: कांग्रेस के गांधी परिवार का कब्जा रहा. पहले स्व. राजीव गांधी, फिर उन की पत्नी सोनिया गांधी और इस के बाद उन के बेटे राहुल गांधी अमेठी से सांसद चुने गए थे.

राहुल लगातार 3 बार अमेठी से सांसद चुने गए. लेकिन इस बार भाजपा की स्मृति ईरानी ने राहुल को शिकस्त दे कर अमेठी लोकसभा सीट पर कब्जा कर लिया. गनीमत यह रही कि राहुल गांधी केरल में वायनाड लोकसभा सीट पर चुनाव जीत गए, वरना कांग्रेस पार्टी को बहुत बड़ा झटका लगता. कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने वाले राहुल की अमेठी से पराजय को राजनीतिक नजरिए से करारा झटका माना गया.

लोकसभा चुनाव की मतगणना 23 मई, 2019 को हुई थी. शाम तक चुनाव परिणाम घोषित हो गया था. पूरे अमेठी इलाके में भाजपा की ओर से स्मृति ईरानी की जीत की खुशी का जश्न मनाया जा रहा था. दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी की पराजय से कांग्रेसियों के चेहरे पर मायूसी छाई हुई थी.

चुनाव परिणाम आने के 2 दिन बाद ही 25 मई की रात करीब साढ़े 11 बजे अमेठी इलाके के बरौलिया गांव में पूर्व प्रधान भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई. उन की हत्या सोते समय की गई थी. गरमी का मौसम होने के कारण सुरेंद्र सिंह अपने घर के बाहर अर्द्धनारीश्वर मंदिर के पास चारपाई पर सो रहे थे. हमलावर 2 बाइकों पर सवार हो कर आए थे.

सिर में गोली लगने से सुरेंद्र गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उन्हें इलाज के लिए तुरंत जायस स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. डाक्टरों ने वहां से उन्हें रायबरेली जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया.

परिजनों को लगा कि सुरेंद्र सिंह का इलाज रायबरेली के बजाए लखनऊ मैडिकल कालेज में अच्छा हो सकता है, इसलिए वे उन्हें रात को ही लखनऊ ले जा रहे थे, तभी रास्ते में उन्होंने दम तोड़ दिया. बाद में लखनऊ में ही सुरेंद्र सिंह के शव का पोस्टमार्टम किया गया.

भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह अमेठी से नवनिर्वाचित सांसद स्मृति ईरानी के काफी नजदीकी थे. उन्होंने स्मृति को लोकसभा चुनाव जिताने के लिए काफी मेहनत की थी. इस के चलते चर्चा यह होने लगी कि सुरेंद्र सिंह की हत्या राजनीतिक कारणों से चुनावी रंजिश को ले कर की गई.

भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह की मौत की जानकारी मिलने पर बरौलिया ही नहीं, पूरे अमेठी में रोष छा गया. लोगों ने सांसद स्मृति ईरानी और पुलिस को घटना की सूचना दी. हाईप्रोफाइल मामला होने और हत्या राजनीतिक रंजिश में किए जाने के कारण पुलिस ने पूरे इलाके में नाकेबंदी कर हत्यारों की तलाश शुरू कर दी. दिवंगत भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह के बड़े भाई नरेंद्र सिंह की तहरीर पर 26 मई, 2019 को जामो थाने में पुलिस ने 2 सगे भाइयों नसीम और वसीम के अलावा गोलू, धर्मनाथ गुप्ता और रामचंद्र के खिलाफ षडयंत्र रच कर हत्या करने का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस को दी तहरीर में नरेंद्र सिंह ने बताया कि 25 मई की रात मेरे छोटे भाई सुरेंद्र और भतीजा अभय घर के बाहर सोए हुए थे. फायर की आवाज सुन कर हम लोग जागे तो देखा कि वसीम, नसीम और गोलू मेरे भाई सुरेंद्र सिंह को गोली मार कर भाग रहे थे.

सड़क पर रामचंद्र खड़ा था. पुरानी राजनीतिक रंजिश होने के कारण धर्मनाथ गुप्ता भी इस षडयंत्र में शामिल है. रामचंद्र से मेरे भतीजे अभय का पहले भी विवाद हुआ था. भाई की हत्या में अन्य लोगों का भी हाथ हो सकता है.

इन में रामचंद्र ब्लौक डेवलपमेंट काउंसिल यानी बीडीसी सदस्य है. धर्मनाथ गुप्ता ग्रामप्रधान का पूर्व प्रत्याशी है. ये सभी आरोपी कांग्रेस से जुड़े हैं. वसीम को झोलाछाप डाक्टर बताया गया था.

दूसरी ओर भाजपा के कर्मठ नेता सुरेंद्र सिंह की हत्या की जानकारी मिलने पर स्मृति ईरानी 26 मई को बरौलिया गांव पहुंच गईं. उन्होंने दिवंगत सुरेंद्र सिंह की मां, बड़े भाई, पत्नी, दोनों बेटियों और बेटे से मुलाकात कर ढांढस बंधाया और उन्हें हरसंभव मदद का वादा किया. उन्होंने कहा कि भाई सुरेंद्र सिंह के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए वह सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगी.

भाजपा जिलाध्यक्ष दुर्गेश त्रिपाठी ने सुरेंद्र सिंह की हत्या को ले कर यह फैसला किया कि 13 दिन तक जिले में पार्टी की जीत का किसी भी तरह का कोई जश्न नहीं मनाया जाएगा.

सुरेंद्र सिंह की हत्या को उत्तर प्रदेश सरकार ने गंभीरता से लिया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए कि हत्या के आरोपियों को 24 घंटे में गिरफ्तार करें. मामला सत्तापक्ष से जुड़ा हुआ था, इसलिए पुलिस जांच में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी. पुलिस के कई उच्चाधिकारियों ने बरौलिया गांव में कैंप डाल लिया. अफसरों के निर्देशन में पुलिस ने सुरेंद्र सिंह की हत्या के आरोपियों की तलाश में लगातार कई जगह छापे मारे.

27 मई को पुलिस ने 3 आरोपियों नसीम, रामचंद्र और धर्मनाथ गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने इन से .315 बोर का देशी तमंचा, मोबाइल फोन और एक तौलिया बरामद किया. तौलिए पर खून के निशान लगे हुए थे.

29 मई को एक अन्य आरोपी अतुल सिंह उर्फ गोलू को भी गिरफ्तार कर लिया गया. गोलू से भी एक तमंचा बरामद किया गया. बाद में पुलिस ने 30 मई की रात को पांचवें आरोपी वसीम को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया. मुठभेड़ में जामो कोतवाली प्रभारी राजीव सिंह भी घायल हुए.

वसीम उस रात जामो से बाइक पर जगदीशपुर की ओर जा रहा था. रास्ते में सलाहापुर तिराहे पर पुलिस ने उसे रोकने की कोशिश की तो उस ने फायरिंग कर दी. मुठभेड़ में वसीम के पैर और जामो थानाप्रभारी के बाएं हाथ में गोली लगी. पुलिस ने वसीम से बाइक के अलावा तमंचा और कारतूस बरामद किए. कहा जाता है कि सुरेंद्र सिंह ने किसी मामले में सन 2013 में वसीम को जेल भिजवाया था. हत्या का एक कारण यह भी रहा.

पुलिस ने सुरेंद्र सिंह हत्याकांड में गलत ट्वीट करने के मामले में एक युवक गौरव पांधी पर 1 जून को अमेठी जिले के गौरीगंज थाने में मुकदमा दर्ज किया. इस युवक ने अपने ट्विटर एकाउंट पर लिखा था, ‘डीजीपी महोदय ने लखनऊ में प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि पूर्वप्रधान सुरेंद्र सिंह की हत्या बीजेपी के नेताओं ने कराई है.’

सोशल मीडिया पर इस तरह के गलत ट्वीट से समाज में वैमनस्यता और भ्रम फैलने की आशंका में उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने मामले में संज्ञान लेते हुए अमेठी के एसपी को संबंधित व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए.  कहा जाता है कि सियासत में सुरेंद्र सिंह का बढ़ा कद ही उन की जान का दुश्मन बन गया. सुरेंद्र के बढ़ते राजनीतिक वर्चस्व को खत्म करने के लिए विरोधियों ने उन की जान ले ली.

बरौलिया गांव के साथ जामो ब्लौक की सियासत में पिछले 4 दशक से सक्रिय सुरेंद्र सिंह को पहला राजनीतिक मुकाम सन 2005 में तब मिला, जब वह बरौलिया गांव की सामान्य सीट से ग्रामप्रधान चुने गए. पिछड़ी और दलित जाति की बहुलता वाली ग्राम पंचायत के मुखिया का पद मिलने के बाद सुरेंद्र सिंह का प्रभाव जल्द ही बढ़ गया. इस से पहले वह भाजपा संगठन में जामो मंडल अध्यक्ष थे.

इस बीच सन 2010 में हुए पंचायत चुनाव में बरौलिया में प्रधान पद की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई. इस से विरोधियों को लगा कि अब सुरेंद्र सिंह की राजनीति खत्म हो जाएगी. लेकिन जब चुनाव हुए तो सुरेंद्र सिंह के खास आदमी शोभन की पत्नी सूर्यसती रिकौर्ड वोटों से प्रधान बन गई.

बाद में 2015 के चुनाव में प्रधान पद की सीट पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित हुई तो एक बार सुरेंद्र सिंह का करीबी रामप्रकाश गांव का प्रधान बन गया.

इन 15 सालों में सुरेंद्र सिंह भी गांव की सियासत से निकल कर अमेठी की राजनीति का जानापहचाना चेहरा बन गए. इस दौरान वह भाजपा के जिला उपाध्यक्ष के पद पर भी रहे. जामो ब्लौक में पैतृत गांव अमर बोझा से 2 किलोमीटर दूर कमालनगर में अर्द्धनारीश्वर मंदिर के पास बना उन का आशियाना राजनीति का अड्डा बन गया. यहां हर आम और खास लोग बैठने लगे. यह बात उन के विरोधियों को हजम नहीं हो रही थी.

इस बार हुए लोकसभा चुनाव में सुरेंद्र सिंह भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी के प्रचार में जीजान से जुट गए. सुरेंद्र ने अपनी मेहनत से बरौलिया के अलावा आसपास के इलाके के वोट स्मृति ईरानी को दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सुरेंद्र सिंह चुनाव प्रचार के दौरान लगातार स्मृति ईरानी के संपर्क में रहे. वैसे स्मृति के संपर्क में वह कई साल से थे.

सन 2014 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में अमेठी से ही चुनाव लड़ा था, तब वह जीत नहीं सकी थीं. उस समय भी सुरेंद्र सिंह ने उन का पूरा साथ दिया था. सुरेंद्र की मेहनत से स्मृति ईरानी ने इन चुनावों में बरौलिया गांव से सर्वाधिक वोट हासिल किए थे.

इस का परिणाम यह रहा कि बाद में स्मृति ईरानी ने केंद्र सरकार में मंत्री बनने पर राज्यसभा सांसद मनोहर पर्रिकर को बरौलिया गांव को गोद लेने का आग्रह किया. पर्रिकर ने प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत इस गांव को गोद लिया और 5 साल में सुरेंद्र सिंह के मार्फत 16 करोड़ से ज्यादा के विकास कार्य करवाए थे. अब स्मृति ईरानी के जीतने पर यह तय था कि वह केंद्र सरकार में फिर से मंत्री बनाई जाएंगी. इस से सुरेंद्र सिंह के विरोधियों को अपनी राजनीति खत्म होती नजर आई.

इस बीच चुनाव परिणाम घोषित होने के दूसरे दिन 24 मई को भाजपा की जीत पर बरौलिया गांव में स्मृति ईरानी की जीत पर सुरेंद्र सिंह के नेतृत्व में भाजपा की ओर से बड़े जश्न का आयोजन किया गया. इस दौरान निकाले गए विजय जुलूस को देख कर सुरेंद्र सिंह के विरोधियों के सीने पर सांप लोट गया और उन्होंने सुरेंद्र को खत्म करने का निर्णय लिया.

कहा जाता है कि वारदात से पहले पांचों आरोपियों ने गांव में एक जगह बैठ कर शराब पी. इस के बाद वे सुरेंद्र सिंह की हत्या के लिए कमालनगर पहुंचे. सुरेंद्र को गोली मारे जाने की घटना से कुछ देर पहले ही गांव की बिजली गुल हो गई थी, जो वारदात के कुछ देर बाद ही आ गई.

इस तरह अचानक बिजली गुल हो जाने की बात को भी लोगों ने इस घटना से जोड़ कर देखा. हालांकि प्रशासन या बिजली विभाग की ओर से इस बारे में कुछ नहीं बताया गया, लेकिन लोगों का मानना था कि इस मामले में मिलीभगत कर बिजलीघर से कुछ देर के लिए सप्लाई बंद कराई गई.

सुरेंद्र सिंह के 90 साल के पिता शिवभवन सिंह और बूढ़ी मां कमला अभी जीवित हैं. बूढ़े शिवभवन सिंह के लिए बेटे सुरेंद्र सिंह की मौत किसी वज्रपात से कम नहीं थी.

इस से पहले उन के छोटे बेटे जितेंद्र सिंह की मौत हो गई थी. अब शिवभवन सिंह का केवल एक बड़ा बेटा नरेंद्र सिंह ही रह गया है. 2 बेटों को खो देने वाले शिवभवन सिंह चारपाई पर बेसुध पड़े रहते हैं.

दिवंगत सुरेंद्र के परिवार में उन की पत्नी रुक्मणि सिंह के अलावा 2 विवाहित बेटियां पूजा और प्रतिभा हैं. एक बेटा अभय प्रताप सिंह अभी अविवाहित है. पैतृक गांव अमरबोझा वाले मकान में सुरेंद्र के मातापिता और भाइयों का परिवार रहता है. सुरेंद्र का परिवार अमरबोझा के पास ही बरौलिया गांव के कमालनगर में रहता है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने सुरेंद्र सिंह की मौत के बाद उन के बेटे अभय प्रताप सिंह को पुलिस सुरक्षा मुहैया करा दी है. उन के घर पर भी सुरक्षा के लिहाज से पुलिस तैनात की गई है. सांसद स्मृति ईरानी ने घोषणा की है कि जिस जगह सुरेंद्र सिंह की हत्या की गई थी, वहां उन की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी ताकि उन की याद बनी रहे.

पुलिस ने हालांकि सुरेंद्र सिंह की हत्या के आरोप में सभी मुलजिमों को गिरफ्तार कर लिया है. लेकिन इस मामले में  पुरानी राजनीतिक रंजिश की बात भी सामने आई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हुआ कि सुरेंद्र सिंह की हत्या किस के इशारे पर की गई. पुलिस इस की जांच कर रही है.

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

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