वह गांव की सीधीसादी लड़की थी. नाम था उसका लाडो. वह आगरा के थानातहसील शमसाबाद के गांव सूरजभान के रहने वाले किसान सुरेंद्र सिंह की बेटी थी. घर वाले उसे पढ़ालिखा कर कुछ बनाना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

इस की वजह यह थी कि 2 साल पहले उस के कदम बहक गए. उसे साथ पढ़ने वाले देवेंद्र से प्यार हो गया. वह आगरा के थाना डौकी के गांव सलेमपुर का रहने वाला था. शमसाबाद में वह किराए पर कमरा ले कर रहता था.

अचानक ही लाडो को देवेंद्र अच्छा लगने लगा था. जब उसे पता चला कि देवेंद्र ही उसे अच्छा नहीं लगता, बल्कि देवेंद्र भी उसे पसंद करता है तो वह बहुत खुश हुई.

एक दिन लाडो अकेली जा रही थी तो रास्ते में देवेंद्र मिल गया. वह मोटरसाइकिल से था. उस ने लाडो से मोटरसाइकिल पर बैठने को कहा तो वह बिना कुछ कहे देवेंद्र के कंधे पर हाथ रख कर उस के पीछे बैठ गई. देवेंद्र ने मोटरसाइकिल आगरा शहर की ओर मोड़ दी तो लाडो ने कहा, ‘‘इधर कहां जा रहे हो?’’

‘‘यहां हम दोनों को तमाम लोग पहचानते हैं. अगर उन्होंने हमें एक साथ देख लिया तो बवाल हो सकता है. इसलिए हम आगरा चलते हैं.’’ देवेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं, आगरा से लौटने में देर हो गई तो मेरा जीना मुहाल हो जाएगा,’’ लाडो ने कहा, ‘‘इस के अलावा कालेज का भी नुकसान होगा.’’

‘‘हम समय से पहले वापस आ जाएंगे. रही बात कालेज की तो एक दिन नहीं जाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा.’’ देवेंद्र ने समझाया.

लाडो कशमकश में फंस गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह देवेंद्र के साथ जाए या नहीं? जाने का मतलब था उस के प्यार को स्वीकार करना. वह उसे चाहती तो थी ही, आखिर उस का मन नहीं माना और वह उस के साथ आगरा चली गई.

देवेंद्र उसे सीधे ताजमहल ले गया. क्योंकि वह प्रेम करने वालों की निशानी है. लाडो ने प्रेम की उस निशानी को देख कर तय कर लिया कि वह भी देवेंद्र को मुमताज की तरह ही टूट कर प्यार करेगी और अपना यह जीवन उसी के साथ बिताएगी.

प्यार के जोश में शायद लाडो भूल गई थी कि उस के घर वाले इतने आधुनिक नहीं हैं कि उस के प्यार को स्वीकार कर लेंगे. लेकिन प्यार करने वालों ने कभी इस बारे में सोचा है कि लाडो ही सोचती. उस ने ताजमहल पर ही साथ जीने और मरने की कसमें खाईं और फिर मिलने का वादा कर के घर आ गई.

इस के बाद लाडो और देवेंद्र की मुलाकातें होने लगीं. देवेंद्र की बांहों में लाडो को अजीब सा सुख मिलता था. दोनों जब भी मिलते, भविष्य के सपने बुनते. उन्हें लगता था, वे जो चाहते हैं आसानी से पूरा हो जाएगा. कोई उन के प्यार का विरोध नहीं करेगा. वे चोरीचोरी मिलते थे.

लेकिन जल्दी ही लोगों की नजर उन के प्यार को लग गई. किसी ने दोनों को एक साथ देख लिया तो यह बात सुरेंद्र सिंह को बता दी. बेटी के बारे में यह बात सुन कर वह हैरान रह गया. वह तो बेटी को पढ़ने भेजता था और बेटी वहां प्यार का पाठ पढ़ रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि लाडो ऐसा कैसे कर सकती है. वह तो भोलीभाली और मासूम है.

घर आ कर उस ने लाडो से सवाल किए तो उस ने कहा, ‘‘पापा, देवेंद्र मेरे साथ पढ़ता है, इसलिए कभीकभार उस से बातचीत कर लेती हूं. अगर आप को यह पसंद नहीं है तो मैं उस से बातचीत नहीं करूंगी.’’

सुरेंद्र सिंह ने सोचा, लोगों ने बातचीत करते देख कर गलत सोच लिया है. वह चुप रह गया. इस तरह लाडो ने अपनी मासूमियत से पिता से असलियत छिपा ली. लेकिन आगे की चिंता हो गई. इसलिए वह देवेंद्र से मिलने में काफी सतर्कता बरतने लगी.

लाडो भले ही सतर्क हो गई थी, लेकिन लोगों की नजरें उस पर पड़ ही जाती थीं. जब कई लोगों ने सुरेंद्र सिंह से उस की शिकायत की तो उस ने लाडो पर अंकुश लगाया. पत्नी से उस ने बेटी पर नजर रखने को कहा.

टोकाटाकी बढ़ी तो लाडो को समझते देर नहीं लगी कि मांबाप को उस पर शक हो गया है. वह परेशान रहने लगी. देवेंद्र मिला तो उस ने कहा, ‘‘मम्मीपापा को शक हो गया है. निश्चित है, अब वे मेरे लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर देंगे.’’

‘‘कोई कुछ भी कर ले लाडो, अब तुम्हें मुझ से कोई अलग नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, इसलिए तुम्हें पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ देवेंद्र ने कहा.

प्रेमी की इस बात से लाडो को पूरा विश्वास हो गया कि देवेंद्र हर तरह से उस का साथ देगा. लेकिन बेटी के बारे में लगातार मिलने वाली खबरों से चिंतित सुरेंद्र सिंह उस के लिए लड़का देखने लगा. उस ने उस की पढ़ाई पूरी होने का भी इंतजार नहीं किया.

जब लाडो के प्यार की जानकारी उस के भाई सुधीर को हुई तो उस ने देवेंद्र को धमकाया कि वह उस की बहन का पीछा करना छोड़ दे, वरना वह कुछ भी कर सकता है. तब देवेंद्र ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘भाई सुधीर, मैं लाडो से प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारी यह हिम्मत?’’ सुधीर ने कहा, ‘‘फिर कभी इस तरह की बात की तो यह कहने लायक नहीं रहोगे.’’

देवेंद्र परेशान हो उठा. लेकिन वह लाडो को छोड़ने को राजी नहीं था. इसी बीच परीक्षा की घोषणा हो गई तो दोनों पढ़ाई में व्यस्त हो गए. लेकिन इस बात को ले कर दोनों परेशान थे कि परीक्षा के बाद क्या होगा? उस के बाद वे कैसे मिलेंगे? यही सोच कर एक दिन लाडो ने कहा, ‘‘देवेंद्र, परीक्षा के बाद तो कालेज आनाजाना बंद हो जाएगा. उस के बाद हम कैसे मिलेंगे?’’

‘‘प्यार करने वाले कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं, इसलिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम भी कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे.’’ देवेंद्र ने कहा.

सुरेंद्र सिंह के घर से कुछ दूरी पर मनोज सिंह रहते थे. उन के 4 बच्चे थे, जिन में सब से बड़ी बेटी पिंकी थी, जो 8वीं में पढ़ती थी. पिंकी थी तो 12 साल की, लेकिन कदकाठी से ठीकठाक थी, इसलिए अपनी उम्र से काफी बड़ी लगती थी.

सुरेंद्र सिंह और मनोज सिंह के बीच अच्छे संबंध थे, इसलिए बड़ी होने के बावजूद लाडो की दोस्ती पिंकी से थी. लेकिन लाडो ने कभी पिंकी से अपने प्यार के बारे में नहीं बताया था. फिर भी पिंकी को पता था कि लाडो को अपने साथ पढ़ने वाले किसी लड़के से प्यार हो गया है.

गांव के पास ही केला देवी मंदिर पर मेला लगता था. इस बार भी 5 मार्च, 2017 को मेला लगा तो गांव के तमाम लोग मेला देखने गए. लाडो ने देवेंद्र को भी फोन कर के मेला देखने के लिए बुला लिया था. क्योंकि उस का सोचना था कि वह मेला देखने जाएगी तो मौका मिलने पर दोनों की मुलाकात हो जाएगी. प्रेमिका से मिलने के चक्कर में देवेंद्र ने हामी भर ली थी.

लाडो ने घर वालों से मेला देखने की इच्छा जाहिर की तो घर वालों ने मना कर दिया. लेकिन जब उस ने कहा कि उस के साथ पिंकी भी जा रही है तो घर वालों ने उसे जाने की अनुमति दे दी. क्योंकि गांव के और लोग भी मेला देखने जा रहे थे, इसलिए किसी तरह का कोई डर नहीं था.

लाडो और पिंकी साथसाथ मेला देखने गईं. कुछ लोगों ने उन्हें मेले में देखा भी था, लेकिन वे घर लौट कर नहीं आईं. दोनों मेले से ही न जाने कहां गायब हो गईं? शाम को छेदीलाल के घर से धुआं उठते देख लोगों ने शोर मचाया. छेदीलाल उस घर में अकेला ही रहता था और वह रिश्ते में सुरेंद्र सिंह का ताऊ लगता था. आननफानन में लोग इकट्ठा हो गए.

दरवाजा खोल कर लोग अंदर पहुंचे तो आंगन में लपटें उठती दिखाई दीं. ध्यान से देखा गया तो उन लपटों के बीच एक मानव शरीर जलता दिखाई दिया. लोगों ने किसी तरह से आग बुझाई. लेकिन इस बात की सूचना पुलिस को नहीं दी गई. मरने वाला इतना जल चुका था कि उस का चेहरा आसानी से पहचाना नहीं जा सकता था.

लोगों ने यही माना कि घर छेदीलाल का है, इसलिए लाश उसी की होगी. लेकिन लोगों को हैरानी तब हुई, जब किसी ने कहा कि छेदीलाल तो मेले में घूम रहा है. तभी किसी ने लाश देख कर कहा कि यह लाश तो लड़की की है. लगता है, लाडो ने आत्महत्या कर ली है. गांव वालों को उस के प्यार के बारे में पता ही था, इसलिए सभी ने मान लिया कि लाश लाडो की ही है.

लेकिन तभी इस मामले में एक नया रहस्य उजागर हुआ. मनोज सिंह ने कहा कि लाडो के साथ तो पिंकी भी मेला देखने गई थी, वह अभी तक घर नहीं आई है. कहीं यह लाश पिंकी की तो नहीं है. लेकिन गांव वालों ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और कहा कि पिंकी मेला देखने गई है तो थोड़ी देर में आ जाएगी. उसे कोई क्यों जलाएगा. इस बात को छोड़ो और पहले इस मामले से निपटाओ.

लोगों का कहना था कि लाडो ने आत्महत्या की है. अगर इस बात की सूचना पुलिस तक पहुंच गई तो गांव के सभी लोग मुसीबत में फंस जाएंगे, इसलिए पहले इसे ठिकाने लगाओ. मुसीबत से बचने के लिए गांव वालों की मदद से सुरेंद्र सिंह ने आननफानन में उस लाश का दाहसंस्कार कर दिया. लेकिन सवेरा होते ही गांव में इस बात को ले कर हंगामा मच गया कि पिंकी कहां गई? क्योंकि लाडो के साथ मेला देखने गई पिंकी अब तक लौट कर नहीं आई थी.

मनोज सिंह ने पिंकी को चारों ओर खोज लिया. जब उस का कहीं कुछ पता नहीं चला तो घर वालों के कहने पर वह थाना शमसाबाद गए और थानाप्रभारी विजय सिंह को सारी बात बता कर आशंका व्यक्त की कि लाडो और उस के घर वालों ने पिंकी की हत्या कर उस की लाश जला दी है और लाडो को कहीं छिपा दिया है.

लाडो की लाश का बिना पुलिस को सूचना दिए अंतिम संस्कार कर दिया गया था, इसलिए जब सुरेंद्र सिंह को पता चला कि मनोज सिंह थाने गए हैं तो डर के मारे वह घर वालों के साथ घर छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. लेकिन पुलिस ने भी मान लिया था कि लाडो ने आत्महत्या की है, क्योंकि उस का देवेंद्र से प्रेमसंबंध था और घर वाले उस के प्रेमसंबंध का विरोध कर रहे थे. लेकिन पिंकी का न मिलना भी चिंता की बात थी. तभी अचानक थाना शमसाबाद पुलिस को मुखबिरों से सूचना मिली कि लाडो आगरा के बिजलीघर इलाके में मौजूद है. इस बात की जानकारी लाडो के घर वालों को भी हो गई थी. लेकिन बेटी के जिंदा होने की बात जान कर वे खुशी भी नहीं मना सकते थे.

आखिर वे आगरा पहुंचे और लाडो को ला कर पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस ने लाडो से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जली हुई लाश पिंकी की थी. उसी ने उस की हत्या कर के लाश को कंबल में लपेट कर जलाने की कोशिश की थी, ताकि लोग समझें कि वह मर गई है. इस के बाद वह अपने प्रेमी के साथ कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसाना चाहती थी.

पिंकी के पिता मनोज की ओर से अपराध संख्या 88/2017 पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत सुरेंद्र सिंह, सुधीर सिंह और लाडो के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी गई. पुलिस को लग रहा था कि लाडो पिंकी की हत्या अकेली नहीं कर सकती, इसलिए पुलिस ने शक के आधार पर 24 अप्रैल, 2017 को देवेंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

देवेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने लाडो के साथ मिल कर पिंकी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो सनसनीखेज कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली कहानी कुछ इस प्रकार थी.

घर वालों की बंदिशों से परेशान लाडो और उस के प्रेमी देवेंद्र को अपने प्यार का महल ढहता नजर आ रहा था, इसलिए वे एक होने का उपाय खोजने लगे. इसी खोज में उन्होंने पिंकी की हत्या की योजना बना कर उसे लाडो की लाश के रूप में दिखा कर जलाने की योजना बना डाली. उन्होंने दिन भी तय कर लिया.

पिंकी और लाडो की उम्र में भले ही काफी अंतर था, लेकिन उन की कदकाठी एक जैसी थी. लाडो को पता था कि उस के दादा छेदीलाल मेला देखने जाएंगे, इसलिए मेला देखने के बहाने वह पिंकी को छेदीलाल के घर ले गई. कुछ ही देर में देवेंद्र भी आ गया, जिसे देख कर पिंकी हैरान रह गई. वह यह कह कर वहां से जाने लगी कि इस बात को वह सब से बता देगी.

लेकिन प्यार में अंधी लाडो ने उसे बाहर जाने का मौका ही नहीं दिया. उस ने वहीं पड़ा डंडा उठाया और पिंकी के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. पिंकी जमीन पर गिर पड़ी. इस के बाद लाडो ने उस के गले में अपना दुपट्टा लपेटा और देवेंद्र की मदद से कस कर उसे मार डाला.

लाश की पहचान न हो सके, इस के लिए लाश को छेदीलाल के घर में रखे कंबल में लपेटा और उस पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी. आग ने तेजी पकड़ी तो दोनों भाग खड़े हुए, पर योजना के अनुसार दोनों आगरा में मिल नहीं पाए. दरअसल, देवेंद्र काफी डर गया था. डर के मारे वह लाडो से मिलने नहीं आया. जबकि लाडो ने सोचा था कि वह देवेंद्र के साथ रात आगरा के किसी होटल में बिताएगी. लेकिन देवेंद्र के न आने से उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. लाडो के पास पैसे नहीं थे, इसलिए रात उस ने बिजलीघर बसस्टैंड पर बिताई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. चूंकि लाडो और देवेंद्र से पूछताछ में सुरेंद्र सिंह और उस के घर वाले निर्दोष पाए गए थे, इसलिए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया.

लाडो ने जो सोचा था, वह पूरा नहीं हुआ. वह एक हत्या की अपराधिन भी बन गई. उस के साथ उस का प्रेमी भी फंसा. जो सोच कर उस ने पिंकी की हत्या की, वह अब शायद ही पूरा हो. क्योंकि निश्चित है उसे पिंकी की हत्या के अपराध में सजा होगी.

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