बचपन में जिस विक्की ने अपने मांबाप का खून होते हुए अपनी आंखों से देखा था, उसे वह चाह कर भी भुला नहीं पाया था. उस के अंदर जल रही बदले की आग 27 साल बाद जब ज्वाला बनी तो उस में 5 लोग भस्म हो गए. आखिर कौन थे वो लोग?
इस बार दीपावली के पहले 33 वर्षीय विशाल उर्फ विक्की गुप्ता अहमदाबाद से घर आया और अपनी दादी शारदा देवी से बोला, ''दादी, मैं दीवाली के दिन मम्मीपापा के हत्यारे को जिंदा नहीं छोड़ूंगा. उस दिन दीवाली के पटाखों के शोर में किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’
अपने पोते के मुंह से यह बात सुनते ही शारदा देवी चिंता में पड़ गईं. उन्होंने विक्की को पास बुलाया और उस के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाते हुए बोलीं, ''देख विक्की, जो बीत गया, उसे भूल जा. वैसे ही मेरे पास बस यही एक बेटा राजेंद्र बचा है. बेटा, इस तरह का खयाल मन से निकाल दे, खूनखराबा करने से आखिर क्या हासिल होगा.’’
''दादी, आखिर मैं कैसे भूल जाऊं कि 27 साल पहले राजेंद्र ताऊ ने मेरे मम्मीपापा को किस तरह मेरे सामने गोलियों से भून दिया था और तो और, जेल से आने के बाद दादाजी को मरवा डाला था.’’ विक्की आवेश में आते हुए बोला.
''मुझे देख ले बेटा, तेरे दादाजी की मौत का गम सह कर भी मैं ने राजेंद्र को माफ कर दिया है. आखिर इतना बड़ा कारोबार संभालता कौन? दीवाली खुशियों का त्यौहार है, इसे मातम में मत बदल देना.’’ शारदा देवी उसे पुचकारते हुए बोलीं.