आदमी हो या औरत, जवानी में अगर उस के पैर बहक जाएं तो फिर दिल्लगी दिल की लगी बन कर ऐसा कहर ढाती है कि खून भी पानी सा लगने लगता है. माया और टुल्लू के बीच...
चित्रकूट जिले के गांव लोहदा का रहने वाला फूलचंद विश्वकर्मा कानपुर की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में ट्रक ड्राइवर की नौकरी करता था. उस की मां और बड़े भाई का परिवार गांव में रहते थे. ट्रक ड्राइवर का पेशा ऐसा है, जिस में कई बार आदमी को लौटने में महीनोंमहीनों लग जाते हैं. इसी वजह से फूलचंद पिछले एक साल से गांव में रह रही बूढ़ी मां और भाई के परिवार से नहीं मिल सका था. समय मिला तो उस ने 5 जुलाई, 2018 को गांव जाने का फैसला किया.
फूलचंद तहसील राजापुर स्थित अपने गांव लोहदा पहुंचा तो उस की वृद्धा मां तो पुश्तैनी घर में मिल गई, लेकिन अलग रह रहा बड़ा भाई शिवलोचन और उस का परिवार घर में नहीं था. वह मां से मिला तो उस की आंखें भर आईं और वह उस के गले लग कर रो पड़ी. फूलचंद को लगा कि मां से एक साल बाद मिला है, इसलिए वह भावुक हो गई है. उस ने जैसेतैसे सांत्वना दे कर मां को चुप कराया और बड़े भाई शिवलोचन और उस के परिवार के बारे में पूछा.
उस की मां चुनकी देवी ने रोते हुए बताया कि पिछले 8 महीने से शिवलोचन का कोई पता नहीं है. बहू माया भी 7-8 महीने पहले दोनों बच्चों को ले कर अपने मायके चली गई थी. तब से वापस नहीं लौटी. मां की बात सुन कर फूलचंद परेशान हो गया. उस ने इस बारे में मां से विस्तार से पूछा तो उस ने बताया कि 8 महीने पहले जब कई दिनों तक शिवलोचन दिखाई नहीं दिया तो उस ने और गांव वालों ने बहू माया से उस के बारे में पूछा. माया ने बताया कि शिवलोचन अपनी नौकरी पर कर्वी चला गया है. इस के कुछ दिन बाद माया भी यह कह कर दोनों बच्चों के साथ मायके चली गई कि घर में राशन खत्म हो गया है. जब शिवलोचन लौट आएं तो खबर भिजवा देना, मैं आ जाऊंगी.