‘‘जीजू, हम लोगों को इस तरह मिलते हुए करीब एक साल हो चुका है. आखिर इस तरह हम लोग चोरीछिपे कब तक मिलते रहेंगे. अगर घर वालों को हमारे संबंधों के बारे में पता चल गया तो क्या होगा? इस से पहले कि किसी को हमारे संबंधों के बारे में पता चले, तुम पापा से बात कर के मेरा हाथ मांग लो वरना मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.’’ कविता ने अपने जीजा वीरेंद्र दयाल से कहा.

‘‘कविता तुम चिंता मत करो. मौका आने दो, मैं पापा से बात कर लूंगा. लेकिन मुझे नहीं लगता कि तुम्हारी बड़ी बहन के रहते वह तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में दे देंगे. मैं खुद इसी उलझन में हूं कि इस मामले को कैसे सुलझाऊं.’’ वीरेंद्र दयाल ने कहा.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. तुम्हें यह बात क्लियर करनी पड़ेगी कि मेरे साथ शादी करोगे या नहीं? यह सब तुम्हें पहले सोचना चाहिए था. पहले तो बड़े लंबेचौड़े वादे करते थे. कहते थे कि तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं. वो वादे कहां गए. इस का मतलब तो यह हुआ कि तुम मेरी इज्जत से खिलवाड़ करने के लिए मुझे बहकाते रहे.’’

‘‘नहीं कविता, ऐसी बात नहीं है. तुम मुझे गलत मत समझो. मैं आज भी तुम से उतना ही प्यार करता हूं. मगर इस समय मैं दुविधा में फंसा हूं. तुम मेरे मन की स्थिति को समझने की कोशिश करो.’’

‘‘देखो जीजू, टालतेटालते कई महीने हो चुके हैं. मैं अब और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. मैं तुम्हें 15 दिन का समय देती हूं. इन 15 दिनों में अगर तुम ने पापा से मेरा हाथ नहीं मांगा तो मैं खुद अपना घर हमेशा के लिए छोड़ कर तुम्हारे घर आ जाऊंगी.’’ कविता ने धमकी दी.

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