बात 3 अप्रैल, 2023 की है. राजस्थान के नागौर जिले के दिलढाणी गांव के रहने वाले मनाराम गुर्जर के घर में खुशी का माहौल था. उस की 20 वर्षीय छोटी बेटी रेखा का अगले दिन 4 अप्रैल को गौना या कहें दुरगमन होना था.

यह बात तय थी कि अगले रोज सुबह में ही उस का पति उसे विदा करवाने कुछ लोगों के साथ आएगा. दुरागमन की रस्म दिन में ही पूरी कर ली जाएगी. फिर दोपहर के भोजन के बाद रेखा अपने पति के साथ विदा हो जाएगी. रेखा की मां केसर बहुत खुश थी कि उस की छोटी बेटी भी बड़ी बेटी मीरा की तरह अपनी ससुराल में जा कर बस जाएगी.

इस मौके पर बड़ी बहन मीरा भी अपने परिवार के साथ आई हुई थी. उस का पति और 7 साल का बेटा प्रिंस भी आया हुआ था. रात का खाना खाने के बाद मीरा छोटी बहन रेखा के हाथों पर मेहंदी लगा रही थी. पास में बैठा प्रिंस उबासी लेने लगा था.

“नींद आ रही है तो जा कर सो जाओ,” मीरा बेटे से बोली.

“कहां सोऊं?” प्रिंस ने पूछा.

“नानी के कमरे में चले जाओ, हम लोग भी वहीं आ रहे हैं.” मीरा अपनी मां के कमरे की ओर इशारा कर बोली.

“वहां नाना भी होंगे?” प्रिंस पूछा.

“नहीं, अगर होंगे भी तो तुम्हें क्या? तुम को नानी के साथ बिछावन पर सोना है.” मीरा बोली.

“नाना से डर लगता है,” प्रिंस बोला.

“चलो, अब जाओ यहां से, बड़ा डर लगता है, वह भी नाना से.” मीरा डांटने के अंदाज में बोली.

तभी उस के पिता की आवाज आई, “मैं मार दूंगा...सब को मार दूंगा...कोई मत अइयो मेरे पास...अरे! मैं कब से पानी मांग रहा हूं. कहां मर गए सब के सब.” यह आवाज घर के मुखिया 57 वर्षीय मनाराम गुर्जर की थी.

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