न्यू आगरा के रहने वाले रामप्रसाद ने मंजू की शादी कर के यही सोचा था कि वह बेटी से मुक्ति पा गए हैं. लेकिन मंजू को न पति अच्छा लगा था, न उस के घर वाले. यही वजह थी कि एक बेटी पैदा होने के बाद भी वह ससुराल में मन नहीं लगा पाई और एक दिन बेटी को ले कर बाप के घर आ गई.
बेटी ससुराल वालों से लड़ाईझगड़ा कर के हमेशा के लिए मायके आ गई है, यह बात न तो रामप्रसाद को अच्छी लगी थी और न उन की पत्नी को. उन्होंने मंजू को ऊंचनीच समझा कर ससुराल भेजना चाहा तो उस ने साफ कह दिया कि उन्हें उस की चिंता करने की जरूरत नहीं है, वह कहीं नौकरी कर के अपना और बेटी का गुजारा कर लेगी.
मंजू ने यह बात कही ही नहीं, बल्कि कोशिश कर के नौकरी कर भी ली. उसे एक कंपनी में चपरासी की नौकरी मिल गई थी. इस के बाद वह निश्चिंत हो गई, क्योंकि उसे वहां से गुजारे लायक वेतन मिल जाता था. रहने के लिए पिता का घर था ही.
मंजू अपनी नौकरी पर औटो से आतीजाती थी. इसी आनेजाने में कभी मंजू की मुलाकात औटोचालक करन शर्मा से हुई तो दोनों में जल्दी ही जानपहचान हो गई.
करन अकसर मंजू को अपने औटो से लाने ले जाने लगा तो धीरेधीरे उन की यह जानपहचान दोस्ती में बदल गई. उस के बाद दोनों में प्यार हो गया. प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन यहां परेशानी यह थी कि दोनों ही शादीशुदा नहीं, बच्चे वाले थे.