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रंजना थोड़ी देर उन मैलेकुचैले कपड़ों को देखती रही, उस के बाद सिर हिलाते हुए बोली, ‘‘नहीं.’’

‘‘इसे पहचानो.’’ एक अंगूठी दिखाते हुए टीआई ने कहा.

‘‘हां साहब, यह तो मेरी ही अंगूठी है. मैं ने ही पति को ठीक करवाने के लिए दी थी. इस का घिसा हुआ नग ठीक वैसे ही है, आप को कहां मिली?’’ रंजना बोली.

‘‘तुम्हारे पति की अंगुली से.’’ टीआई ने कहा.

‘‘मतलब?’’

‘‘इधर आओ मेरे साथ, लेकिन इस कुरते को एक बार फिर से देखो.’’ यह कह कर टीआई श्वेता मौर्या ने उस के सामने कुरते को अब पूरी तरह फैला दिया था.

‘‘अरे यह तो मेरे पति का ही कुरता है. इस की एक जेब फटी हुई है.’’ रंजना बोली.

‘‘इस का मतलब मेरा अनुमान सही था कि हो न हो वह लाश रामसुशील पाल की ही है.’’ वह बोलीं.

‘‘कहां हैं मेरे पति?’’ रंजना ने पूछा.

‘‘तुम्हीं ने तो बताया था कि वह 2 दिन पहले रीवा गया है. तो फिर तुम ही बताओ न वह कहां होगा.’’

‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम.’’ रंजना ने कहा.

‘‘उस की मौत हो चुकी है. उस की किसी ने हत्या कर दी है, वह भी डेढ़ साल पहले. उस की लाश अब मिली है, एकदम से सूखी हुई, कंकाल की तरह.’’

टीआई की यह बात सुन कर रंजना रोने लगी, तभी टीआई ने उस के गालों पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिए. डपटती हुई बोलीं, ‘‘बताओ, तुम ने अपने पति की हत्या क्यों की?’’

‘‘मैं ने? नहीं तो मैं ने कुछ नहीं किया. मैं भला क्यों..?’’ रंजना सुबकती हुई बोलने लगी.

‘‘तुम ने ही अपने पति की हत्या की है. देवर से तुम्हारे नाजायज संबंध हैं. इस बारे में गांव के कई लोग जानते हैं. तुम्हारा पति भी जानता था.’’

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