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सुबह के नाश्ते पर आने की कोई बात ही नहीं थी. लेकिन दोपहर का खाना खाने से पहले ज्ञान कौर काफी देर तक अपने पति अमरजीत सिंह की राह देखती रहीं. धीरे धीरे 3 बज गया और अमरजीत सिंह घर नहीं आए तो उन्हें थोड़ी चिंता हुई. यह स्वभाविक भी था.

वह सोचने लगीं, सरदारजी ने रात में न आने  की बात की थी, सुबह भी नहीं आए तो कोई बात नहीं थी. अब वह खाना खाने भी नहीं आए, जबकि फिर वह खाना समय पर खाते थे. आज वह बिना बताए कहां चले गए? कहीं कोई जमीन तो देखने नहीं चले गए या फिर किसी जमीन के कागज बनवाने तो नहीं चले गए? काम में फंसे होने की वजह से बता नहीं पाए होंगे.

ज्ञान कौर ने 3-4 बार अमरजीत सिंह के मोबाइल पर फोन किया था, लेकिन संपर्क नहीं हो सका था. तरहतरह की बातें सोचते हुए ज्ञान कौर ने खाना खाया और आराम करने के लिए लेट गईं. सरदारजी के बारे में ही सोचते हुए वह सो गई तो शाम को उठीं. उस समय भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे थे. शाम को ही नहीं, रात बीत गई और सरदारजी लौट कर नहीं आए.

कई बार ज्ञान कौर के मन में आया कि सरदारजी के घर न आने की बात वह अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह को बता दें. लेकिन उन के मन में आता कि बच्चे बेवजह ही परेशान होंगे. सरदारजी कोई बच्चे तो हैं नहीं कि गायब हो जाएंगे. 70 साल के स्वस्थ और समझदार आदमी हैं. वह ऐसे हैं कि खुद ही दूसरों को गायब कर दें, उन्हें कौन गायब करेगा?

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