मुश्किल से एक मिनट लगा होगा. कोठारी रामलाल के चैंबर से बाहर आ गया. उस वक्त उस का चेहरा पसीने से तर था, सांस फूली हुई थी. रूमाल से पसीना पोंछते हुए वह बाहर के गलियारे में निकल आया. औफिस का मुख्य दरवाजा डुप्लिकेट चाबी से खोल कर वह बाहर चला आया और दरवाजा बंद कर दिया. बाहर आते ही उसे टैक्सी मिल गई. टैक्सियां बदलते हुए वह दोपहर का शो खत्म होने के समय सिनेमाहाल के पास पहुंच गया. शो छूटा तो वह हाल से निकली भीड़ में शामिल हो गया और फिर भीड़ से निकल कर मैनेजर के चैंबर में जा पहुंचा. कुछ इस तरह जैसे फिल्म देख कर बाहर आया हो.
मैनेजर के केबिन में बैठ कर उस ने एक सिगरेट पी और फिर उस से विदा ले कर अपने औफिस आ पहुंचा. उस ने टैक्सी ड्राइवर से कहा, ‘‘तुम जरा ठहरो, मैं अभी लौटता हूं.’’
पल भर बाद कोठारी बदहवास दौड़ता हुआ बाहर आया और चिल्ला कर बोला, ‘‘खून, किसी ने उसे मार डाला. ड्राइवर, जल्दी चलो… थाने…’’
थाने पहुंच कर कोठारी ने बदहवासी के आलम में इंसपेक्टर को कत्ल की बात बताई, इंसपेक्टर कोठारी और 2 सिपाहियों के साथ तुरंत जिप्सी ले कर चल दिया.
औफिस में आते ही कोठारी निढाल भाव से एक कुरसी पर गिरते हुए बोला, ‘‘आप चैंबर में खुद जा कर देख लें. मुझ में उस भयानक दृश्य को दोबारा देखने की हिम्मत नहीं है.’’
इंसपेक्टर ने जा कर देखा. रामलाल गोयल का निर्जीव शरीर आराम कुरसी पर पड़ा हुआ था. उस की कनपटी पर गोली का निशान था और कनपटी से ले कर फर्श तक खून फैला था. गोली शायद अंदर ही रह गई थी. पुलिस का डाक्टर, फोटोग्राफर आदि आए. औफिस की तलाशी से कोई खास चीज नहीं मिली. जरूरी काररवाई के बाद इंसपेक्टर ने फोन कर के एंबुलेंस बुलवाई. साथ ही कोठारी से कहा, ‘‘मि. कोठारी, आप अपना बयान लिखवा दें. आगे की काररवाई आप की रिपोर्ट पर निर्भर करेगी.’’
कोठारी ने अटकअटक कर बदहवासी के आलम में अपना बयान लिखवाना शुरू किया, हवलदार उस का बयान नोट करता जा रहा था. कोठारी ने दिन भर की कहानी, मैटनी शो में सिनेमा जाने की बात और लौट कर यह भयानक दृश्य देख कर थाने जाने वगैरह की सारी बातें बयान में लिखवा दीं. हवलदार उस के बयान को पढ़ कर इंसपेक्टर को सुना ही रहा था कि औफस के आगे एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. मोटरसाइकिल खड़ी कर के एक छरहरे, मजबूत शरीर वाले व्यक्ति ने अंदर कदम रखा. कोठारी उसे जानता था.
वह मयंकमोहन था, पत्रकार और शौकिया जासूस. उसे देख कर कोठारी को फिर से पसीना आने लगा. वह सोचने लगा, यह बिना टांग अड़ाए नहीं मानेगा.
इंसपेक्टर ने पूछा, ‘‘कहां से आ रहे हैं मि. मयंक? यहां की गंध आप की नाक तक भी पहुंच गई क्या?’’
‘‘एक खास सिलसिले में थाने गया था, आप मिले नहीं. वहां पता लगा तो इधर आ गया. क्या मामला है?’’
मयंक ने बैठ कर सिगरेट सुलगाई. इंसपेक्टर ने कोठारी के मुंह से सुनी कहानी उसे सुना दी. फिर चैंबर में ले जा कर गोयल की लाश भी दिखाई. वह जानता था कि कई बार मयंक बड़े काम का साबित होता है. मयंक ने चेंबर, मेज पर रखे कागजात, नोटबुक और गोयल की लाश वगैरह का सूक्ष्म निरीक्षण किया. फिर वापस औफिस में आ गया.
इंसपेक्टर ने कोठारी का लिखवाया हुआ बयान खुद मयंक को पढ़ कर सुनाया. इस बीच मयंक चुपचाप सिगरेट के कश लेते हुए सुनता रहा. बीचबीच में वह कोठारी को देख रहा था. कोठारी बेचैन सा नजर आ रहा था. जब इंसपेक्टर बयान पढ़ चुका, तो कोठारी ने पूछा, ‘‘मुझे यहां कब तक बैठना होगा? मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं घर जा कर आराम करना चाहता हूं.’’
‘‘बस, ऐंबुलेंस को आने दीजिए, आ ही रही होगी. हम डैड बौडी को भिजवा कर औफिस में ताला लगा कर सील कर देंगे. अभी आप को औफिस बंद रखना पड़ेगा,.’’
चपरासी लंच कर के कभी का लौट आया था. पुलिस ने उस का भी बयान लिया था. कोठारी ने उस की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘ताले सील की क्या जरूरत है? यह रहेगा यहां.’’
‘‘नहीं मि. कोठारी, मर्डर हुआ है यहां. जब तक हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच जाते हमें औफिस सील करना पड़ेगा. थोड़ी काररवाई और हो जाए तो आप चले जाइएगा. लेकिन आप शहर के बाहर नहीं जा पाएंगे.’’
कोठारी चुपचाप बैठा रहा.
मयंकमोहन इस बीच घूमघूम कर औफिस के ताले की चाबी के छेद, दरवाजे आदि को देख रहा था. इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘मि. कोठारी, आप के बयान की पुष्टि हो ही जाएगी. कौन सी फिल्म देखी थी आप ने?’’ आप दोपहर वाले शो में प्लाजा सिनेमा में थे न?
‘‘जी हां, प्लाजा में मैं ने ‘सुनहरा तीर’ फिल्म देखी थी. यह क्या पता था कि आज ही यह मनहूस घटना घटेगी.’’
औफिस की बारीकी से छानबीन कर रहे मयंकमोहन ने कोठारी की बात सुनी तो उसे स्थिर दृष्टि से देखने लगा.
इंसपेक्टर ने पूछा, ‘‘आप के पास कोई सुबूत है कि आप ने आज ही वह फिल्म देखी है?’’
‘‘जी, मेरे पास आधा टिकट है,’’ कोठारी ने आधा टिकट निकाल कर दिखाते हुए इतमीनान से जवाब दिया, ‘‘सिनेमा का मैनेजर और वहां के गेटकीपर्स वगैरह मुझे जानते हैं. इत्तेफाक से आज मैं मैनेजर से भी मिला था.’’
मयंकमोहन के होंठों पर हलकी सी मुसकराहट उभर आई. उस ने इंसपेक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर तो देख कर गया है, उस के विचार से हत्या कब हुई होगी.’’
‘‘डाक्टर का अंदाजा है कि हत्या 12 से डेढ़ या 2 बजे के बीच हुई होगी.’’ वैसे आटोप्सी के बाद ठीक पता तो कल ही लगेगा.’’
एंबुलेंस आ गई. अटेंडेंटों ने बौडी को एंबुलेंस में रख दिया. एंबुलेंस चली गई.
इंसपेक्टर ने सिपाहियों से कहा, ‘‘औफिस में ताला और सील लगा दो.’’
मयंकमोहन ने टोका, ‘‘थोड़ा ठहरें, इंसपेक्टर साहब.’’
कोठारी ने इंसपेक्टर से कहा, ‘‘तो, मैं अब जा सकता हूं? यहां तो आप सील लगाएंगे.’’
‘‘जरा आप भी ठहरें मि. कोठारी, मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं,’’ मयंक ने कहा.
अनिच्छा दिखाते कोठारी ने पूछा, ‘‘क्या बातें?’’
‘‘मि. कोठारी, आप आज दिन के 12 बजे से 3 बजे तक सिनेमा हाल में ही थे न?’’
‘‘बेशक,’’ कोठारी ने तपाक से जवाब दिया.
‘‘क्या आप मुझे फिल्म की कहानी संक्षेप में सुनाएंगे? फिल्म का नाम भी दोहराने की कृपा करें.’’
‘‘वह सब मैं इंसपेक्टर साहब को बता चुका हूं.’’ कोठारी बोला, तो मयंक ने अनुरोध किया, ‘‘बस, एक बार और. इंसपेक्टर साहब, प्लीज आप एक कागज पर इन का बयान दोबारा नोट कर लें.’’
कोठारी ने बताया, ‘‘फिल्म का नाम था ‘सुनहरा तीर.’ उस की कहानी भी दिलचस्प है.’’ वह संक्षेप में कहानी का सारांश बता कर बोला, ‘‘खास कर वह सीन, जब अंत में हीरो तीरों की बौछार में हीरोइन को घोड़े पर बैठा कर भागता है, बेजोड़ है.’’
‘‘कोठारी साहब, आप यह सब सचसच बता रहे हैं?’’ मयंक ने पूछा.
मगनलाल कोठारी का चेहरा लाल हो गया. वह कुछ बिगड़ कर बोला, ‘‘तो क्या आप को झूठ लग रहा है? आप तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे मैं ने ही खून किया हो?’’
‘‘नहीं, मैं ने ऐसा कब कहा,’’ मयंकमोहन ने इतमीनान से कहा, ‘‘मैं आप की बात पर पूरा विश्वास कर रहा हूं. बस, आप को गवाहों के सामने अपने इस बयान पर हस्ताक्षर करने होंगे.’’
‘‘मुझे कोई ऐतराज नहीं है.’’ कोठारी ने जोश में कहा.
क्रमशः