Real Crime Story: फरीदाबाद में एक के बाद एक कई ऐसे व्यक्तियों की लाशें मिलीं, जिन के गले अगोंछे से घोंटे गए थे. आखिर क्या रहस्य था, उस खूनी अंगोछे का?
5 अक्तूबर, 2014 को हरियाणा के जिला फरीदाबाद की नेहरू कालोनी में एक सुनसान जगह पर एक युवक की लाश मिली. सूचना मिलने पर स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंची. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर पर तो कोई घाव दिखाई नहीं दिया अलबत्ता उस के गले पर कुछ निशान थे. लाश से थोड़ी दूरी पर एक अंगोछा पड़ा मिला. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

तलाशी लेने पर उस की जेब से भी ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से लाश की शिनाख्त हो सके. पुलिस घटनास्थल की काररवाई पूरी कर ही रही थी कि घटनास्थल पर एक आदमी आया. उस ने उस मरने वाले युवक की पहचान नेहरू कालोनी के ही रहने वाले राममूर्ति के रूप में की. उस आदमी ने बताया कि राममूर्ति एक ड्राइवर था. थोड़ी देर में राममूर्ति के घर वाले भी घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने पंचनामा कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.
2 दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि उस की हत्या दम घुटने से हुई थी. राममूर्ति के घर वालों ने बताया कि वह अपने साथ अंगोछा नहीं रखता था. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि शायद हत्यारे ने उस की हत्या उसी अंगोछे से की होगी, जो लाश के पास मिला था. वह अंगोछा जरूर हत्यारे का होगा. इस घटना के ठीक 14 दिन के बाद 19 अक्तूबर को पुलिस को फरीदाबाद के ही सेक्टर 19 के मेट्रो स्टेशन के पास एक लाश मिलने की इत्तला मिली. इस बार शुरुआती तफ्तीश में पुलिस मरने वाले युवक की शिनाख्त तो नहीं करा सकी, मगर पुलिस को घटनास्थल पर एक अंगोछा पड़ा मिला, यह उसी तरह का अंगोछा था, जो नेहरू कालोनी में राममूर्ति की लाश के पास मिला था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हत्या भी उसी कातिल ने की होगी जिस ने राममूर्ति की हत्या थी.
पुलिस यह भी मान कर चल रही थी कि हो सकता है, इन वारदातों को लूटपाट करने वाले किसी गिरोह ने अंजाम दिया हो. काफी प्रयासों के बाद भी पुलिस लाश की शिनाख्त नहीं करा सकी तो पोस्टमार्टम कराने के बाद उस का अंतिम संस्कार करा दिया गया. पुलिस मामले की जांच कर ही रही थी कि फरीदाबाद के ही एनआईटी थाना क्षेत्र में एक और व्यक्ति की लाश मिली. काफी कोशिशों के बाद भी उस की भी शिनाख्त नहीं हो पाई. इस लाश के पास भी पुलिस को एक अंगोछा मिला. इस के बाद फरीदाबाद पुलिस को टाउन नंबर 5 में एक और लाश के मिलने की सूचना मिली. मौके पर पहुंच कर पुलिस के आला अधिकारियों ने देखा कि इस लाश के पास भी वैसा ही अंगोछा पड़ा था, जैसा पहले की 3 लाशों के पास पड़ा मिला था.
इस लाश की पहचान फतेहाबाद निवासी बांकेबिहारी के रूप में हुई. पुलिस ने घटनास्थल पर पड़े अंगोछे को जब्त कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए बादशाह खान अस्पताल भेज दिया. चारों हत्याओं में सभी की हत्या गला दबा कर की गई थी और सभी लाशों के पास अंगोछा मिला था. इस के अलावा उन की जेबें खाली मिली थीं. एक के बाद एक लगातार एक ही तरीके से हुई हत्याओं के बाद फरीदाबाद पुलिस की नींद उड़ गई. आखिरकार इस सीरियल किलर का पता लगाने के लिए एनआईटी के डीसीपी अमित कुमार ने क्राइम ब्रांच के इंचार्ज इंसपेक्टर विमल राय, सबइंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, जयवीर तथा सीआईए (डीएलएफ) इंचार्ज सत्येंद्र सिंह की एक टीम बनाई.
चारों वारदातों का अध्ययन करने के बाद क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर विमल कुमार की टीम ने एक बात पर गौर किया कि सभी घटनाओं की दूरी हाईवे से करीब ढाई किलोमीटर थी. इस से अनुमान लगाया गया कि इस इलाके में कोई एक ही बदमाश या एक ही गिरोह इन वारदातों को अंजाम दे रहा है. बदमाश या गिरोह का पता लगाने के लिए क्राइम ब्रांच की टीम अलगअलग टुकडि़यों में भेष बदल कर उस इलाके में सक्रिय अपराधियों के बारे में पूछताछ करने लगी. इलाके के सक्रिय बदमाशों पर नकेल कस कर उन से इस बारे में पूछताछ की गई. कई दिनों तक सैकड़ों लोगों से पूछताछ करने के दौरान पुलिस को कुछ ऐसे लोग भी मिले, जो सीरियल किलर का शिकार होने के बावजूद किस्मत से जिंदा बच गए थे. उन्हीं में से एक था रवि शर्मा. रवि शर्मा सीकरी का निवासी था.
रवि शर्मा ने इंस्पेक्टर विमल राय को बताया कि वह फरीदाबाद में ही एक फैक्ट्री में काम करता था. 22 अक्तूबर, 2014 की रात को वह ओल्ड फरीदाबाद पुलिस चौकी के नजदीक खड़ा था. तभी एक रिक्शाचालक उस के पास पहुंचा और उसे अपने रिक्शे में बैठने को कहा. रवि को बीयर खरीदनी थी, इसलिए वह उस के रिक्शे में बैठ गया. थोड़ी दूर आगे चल कर एक सुनसान सी जगह पर रिक्शाचालक ने पीछे से उस के गले में अंगोछा डाला और पूरी ताकत से कसने लगा. गले पर दबाव पड़ने पर उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. कुछ घंटे बाद होश आने पर उस ने देखा कि उस की जेब का पर्स तथा मोबाइल गायब था.
इस घटना में उस की जान तो बच गई, मगर वह एक बड़ी मुसीबत में फंस गया था. हुआ यह कि उस रिक्शाचालक ने उस की जेब से लूटा हुआ पर्स फरीदाबाद के सेक्टर-15 में एक निर्माणाधीन मेट्रो स्टेशन के पास फेंक दिया था. पर्स में उस का फोटो भी था. पुलिस ने उस का पर्स बरामद किया और उस पर्स के जरिए पूछताछ के लिए उसे ही थाने ले आई. पुलिस ने उसे ही सीरियल किलर समझ कर कई दिनों तक उस से पूछताछ की. जब पुलिस को विश्वास हो गया कि वह सीरियल किलर नहीं, बल्कि वह खुद उस का शिकार हुआ था, तब कहीं जा कर उसे छोड़ा.
सीरियल किलर के हाथों मरने से बचे दूसरे व्यक्ति टाउन-5 निवासी तेजेंद्र ने पुलिस को बताया कि उसे रिक्शाचालक ने अंगोछे से बेहोश करने के बाद लूटा और फिर उसे बेहोशी की हालत में एनआईटी इलाके में डाल कर चला गया. काफी देर बाद जब उसे होश आया तो वह उठ कर अपने घर चला गया. दिल्ली निवासी राकेश ने भी इंसपेक्टर विमल राय को रिक्शाचालक के हुलिया तथा कदकाठी के बारे में बताया. इन लोगों से बात कर के पुलिस को विश्वास हो गया कि चारों हत्याएं लूटपाट करने वाले उसी रिक्शाचालक ने की थीं. इंसपेक्टर विमल राय की टीम ने अब शहर के उन लोगों की सूची तैयार की, जो किराए पर रिक्शाचालकों को अपना रिक्शा देते थे. पुलिस ने बारीबारी से सभी से पूछताछ की, मगर वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके.
क्राइम ब्रांच की टीम और अन्य पुलिस टीमें उस सीरियल किलर की तलाश कर ही रही थीं कि उसी बीच 31 दिसंबर को हाथरस के विशुनदास के रहने वाले वीरेंद्र की फरीदाबाद में सेक्टर-20 के पेट्रोल पंप के पास गला घोंट कर हत्या कर दी गई. इस वारदात ने जैसे उस हत्यारे ने पुलिस को चुनौती दी थी. उस चालाक सीरियल किलर तक पहुंचने के लिए पुलिस ने एक दूसरी योजना बनाई. पुलिस टीम के सदस्य सादे लिबास में एक मुसाफिर की तरह फरीदाबाद में फैल गए. साथ ही मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया. इंसपेक्टर विमल राय को उम्मीद थी कि कुछ ही दिनों में वह रिक्शाचालक किसी न किसी शख्स को अपना शिकार अवश्य बनाएगा.
इसी दौरान एक मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि एक रिक्शे वाले की हरकतें कुछ मामलों में दूसरे रिक्शे वालों से अलग हैं. मुखबिर की सूचना मिलने पर इंसपेक्टर विमल राय ने एक कांस्टेबल को ओल्ड फरीदाबाद के बसस्टैंड पर भेज दिया. 9 जनवरी, 2015 को वह कांस्टेबल हाथ में टै्रवलिंग बैग ले कर बसस्टैंड पर खड़ा हो गया. मुखबिर द्वारा बताए गए उस रिक्शे में एक जगह जाने की बात तय कर के बैठ गया. इंसपेक्टर विमल राय और उन की टीम के सदस्य उस रिक्शे पर नजर रखे हुए थे. वह रिक्शाचालक उस कांस्टेबल को ले कर थोड़ी दूर चला ही था कि उस ने एक सुनसान जगह पर पेशाब करने के बहाने रिक्शा रोक दिया. वह कांस्टेबल सतर्क हो गया. इसी दौरान रिक्शाचालक दबे पांव पीछे से आया और रिक्शे में बैठे कांस्टेबल के गले में अंगोछा डाल कर उस का गला घोंटने की कोशिश करने लगा.
रिक्शाचालक को यह पता नहीं था कि जिस सवारी को वह शिकार बनाने की कोशिश कर रहा है, वह पुलिस वाला है. कांस्टेबल ने अपना बचाव करते हुए किसी तरह उस अंगोछे से अपनी गरदन निकाली और रिक्शे वाले को दबोच लिया. उतनी देर में इंसपेक्टर विमल राय रिक्शे के पास पहुंच गए और हमलावर रिक्शे वाले को गिरफ्त में ले लिया. उस रिक्शे वाले ने अपना नाम रिंकू बताया. 27 वर्षीय सीरियल किलर रिंकू मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के थाना दातागंज के गांव भटौली का रहने वाला था और अविवाहित था. वह एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था. वह मेहनतमजदूरी कर के किसी प्रकार अपना पेट पाल रहा था.
रिंकू की दोस्ती कई नशेड़ी युवकों से थी. उन की सोहबत में वह गांजा, सुल्फा और शराब पीने लगा था. धीरेधीरे वह नशे का इतना आदी हो गया कि बिना नशा किए उसे नींद नहीं आती थी. उसे किसी ने बताया कि दिल्ली में रिक्शा चला कर ज्यादा आमदनी हो जाती है. इसी ख्वाहिश में वह दिल्ली आ गया. दिल्ली में उस की आमदनी तो बढ़ी, लेकिन यहां भी उस की दोस्ती कई नशेडि़यों से हो गई. उन की सोहबत में वह अपनी कमाई नशे पर ही खर्च करने लगा. कभीकभी वह सुबह के समय ही इतना नशा कर लेता था कि दिन भर रिक्शा नहीं चला पाता था. जब उस के लिए बिना नशे के रहना मुश्किल हो गया तो उस ने अपराध की डगर पकड़ ली. 2 दोस्तों की मदद से उस ने 2009, 2011 और 2012 में दिल्ली के मानसरोवर पार्क, नंदनगरी और शकरपुर में 3 कत्ल किए.
2012 में दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार भी किया था. लगभग डेढ़ साल जेल में रहने के बाद जुलाई, 2014 में वह जमानत पर जेल से छूट गया. जेल से बाहर आने के बाद वह अपने गांव चला गया. मुफलिसी में गांव में रहना मुश्किल था, इसलिए नशे की तलब को पूरा करने के लिए 3 महीने बाद उस ने फिर से शहर जाने का निश्चय किया. चूंकि वह दिल्ली पुलिस के लिए वांछित अपराधी था, इसलिए अब उस के लिए दिल्ली में आ कर वारदात करना खतरे से खाली नहीं था. उस की बहन दिल्ली से सटे फरीदाबाद के संजय गांधी नगर में रहती थी. वह दिल्ली के बजाय अपनी बहन के पास फरीदाबाद पहुंच गया. वहां भी वह रिक्शा चलाने लगा. मगर दिन भर रिक्शे पर सवारियां ढो कर वह जितने रुपए कमाता था, उस से उस की नशे की तलब पूरी नहीं हो पाती थी. आखिरकार उस ने फिर से अपराध का रास्ता चुन लिया.
वह सुनसान जगह पर पेशाब के बहाने रिक्शा रोकता और गले में अंगोछा डाल कर सवारी का गला घोंट देता. इस तरह 3 महीने फरीदाबाद में रहने के दौरान उस ने एक के बाद एक 5 हत्याएं कर डालीं. मर्डर करने के बाद वह अपने शिकार की जेब में रखे मोबाइल, नकदी व अन्य कीमती सामान निकाल लेता था. इस के बाद नया शिकार करने के लिए फिर नया अंगोछा खरीदता था. एक हत्या करने के करीब 20 दिन बाद वह दूसरी हत्या को अंजाम देता था. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर विमल राय ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.
11 जनवरी को शिनाख्त परेड में पुलिस के गवाह ने उसे आसानी से पहचान लिया. फरीदाबाद के अलगअलग थानों की पुलिस ने रिमांड पर ले कर बारीबारी से उस से पूछताछ की. सीरियल किलर रिंकू के गिरफ्तार होने के बाद पुलिस ने राहत की सांस ली. पुलिस इसे बड़ी कामयाबी मान रही है. Real Crime Story
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित






