उदयन के पड़ोसियों की नजर में वह अजीबोगरीब यानी असामान्य व्यक्ति था, जो खुद को दुनिया से छिपा कर रखना चाहता था. दरअसल, वह अपनी बुनी एक काल्पनिक दुनिया में रहता था और उसे ही सच मान बैठा था. यानी व्यवहारिकता से उस का कोई सरोकार नहीं रह गया था. सुबहसुबह जब साकेतनगर में रहने वाले संभ्रांत और धनाढ्य लोगों के घरों से नाश्ता बनने की खुशबू आती थी, तब उदयन के घर से गांजे की गंध आ रही होती थी.
उदयन की कोई नियमित या तयशुदा दिनचर्या नहीं थी. वह अकसर शराब के नशे में धुत रहता था. पड़ोसियों के लिए वह एक रहस्य था. कभीकभार बात भी करता था तो खुद को इंटेलीजेंस ब्यूरो का अफसर बताता था. साथ ही जल्द ही अमेरिका शिफ्ट होने की बात भी करता था.
वह ऐसा शायद इसलिए करता था कि लोग उस की शाही जिंदगी के बारे में ज्यादा सिर न खपाएं. महंगी कारों का मालिक उदयन कभीकभार आटोरिक्शा में भी आताजाता दिखता था और रिक्शाचालक को 25-30 रुपए की जगह 500 रुपए थमा दिया करता था. नजदीक की दुकान से वह मैगी दूध बिस्किट जैसे आइटम लाता रहता था और दुकानदार को एकमुश्त भुगतान करता था.
पुलिस वालों ने जब उस के मांबाप के बारे में पूछा तो वह खामोश रहा. इस खामोशी में एक और तूफान छिपा हुआ था. आकांक्षा के कत्ल और लाश बरामदगी में उलझी पुलिस को इतना ही पता चला था कि उदयन के पिता का नाम बी.के. दास है और वे भोपाल के भेल के रिटायर्ड अफसर हैं और मां इंद्राणी भी सरकारी कर्मचारी रह चुकी हैं.