दिल्ली के तालकटोरा गार्डन में फव्वारे के पास बैठी रजनी की आंखें पार्क के मुख्य गेट पर टिकी हुई थीं. उस के चेहरे पर बेचैनी साफ झलक रही थी, इस का कारण था पलपल आगे बढ़ता हुआ समय. रजनी ने मां से कहा था कि वह सहेली प्रीति से नोटबुक लेने जा रही है और वह 7 बजे तक घर लौट आएगी. लेकिन वह सहेली का बहाना कर प्रेमी उपेंद्र से मिलने गई थी.
वह इस पार्क में साढ़े 5 बजे आ गई थी. उसे आधा घंटा बीत गया था, उपेंद्र का इंतजार करते हुए. उपेंद्र ने 5 बजे पार्क में उस से मिलने का वादा किया था, लेकिन जब रजनी यहां आई थी तो उपेंद्र पार्क में नहीं पहुंचा था. उपेंद्र को रजनी दिल से प्यार करती थी. उपेंद्र भी उसे दिलोजान से चाहता था. वे दोनों एक ही कोचिंग सेंटर से एसएससी की तैयारी कर रहे थे. सेंटर में उन का रोज ही मिलना होता था, लेकिन वहां मौजूद अन्य युवकयुवतियों के बीच दिल की बात करना मुमकिन नहीं था, इसलिए सप्ताह में एक बार वे इस पिकनिक पार्क में अवश्य आ कर मिलते थे.
समय पलपल आगे सरक रहा था. उपेंद्र हर बार दिए गए समय से आधा घंटा पहले ही पहुंच जाता था. आज न जाने वह क्यों नहीं आया था. यदि वह किसी जरूरी काम में फंस गया है तो उसे फोन कर के बता देना चाहिए था. अभी तक उपेंद्र ने फोन भी नहीं किया था. रजनी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. जब साढ़े 6 बज गए तो रजनी ने उपेंद्र को फोन करने का मन बना कर मोबाइल सामने किया तो उसे पार्क की गेट में प्रवेश करता उपेंद्र नजर आ गया.