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दिखने में लग रहा था सरकारी अधिकारी का औफिस...

उपेंद्र अपने कपड़े दुरुस्त कर के आगे बढ़ा तो उस का दिल धडक़ उठा. किसी तरह खुद पर नियंत्रण पाने की कोशिश करते हुए उपेंद्र ने दरवाजे पर पहुंच कर अंदर देखा. दरवाजे पर सफेद परदा पड़ा था. उपेंद्र ने परदा हटा कर शीशे में से झांका, अंदर बड़ी टेबल के पीछे व्हीलचेयर पर एक हृष्टपुष्ट कदकाठी का व्यक्ति बैठा हुआ फाइल देख रहा था. उस की टेबल पर सफेद कपड़ा बिछा हुआ था. टेबल पर ग्लोब रखा था. उस के पास बेशकीमती पैन स्टैंड, कुछ फाइल्स, पेपर वेट और ताजे फूलों का गुलदस्ता रखा हुआ था. गुलदान में गुलाब के ताजे फूल खिले हुए नजर आ रहे थे.

टेबल के दाईं ओर पीतल की नेम प्लेट रखी थी, जिस पर अमित कुमार, सीबीआई रैंक इंसपेक्टर लिखा हुआ था. जहां अमित कुमार की व्हीलचेयर थी, उस के पीछे सफेद दीवार पर महात्मा गांधी की फोटो लगी हुई थी. बाहर से ही कमरे का निरीक्षण कर लेने के बाद उपेंद्र ने धीरे से शीशे का दरवाजा खटखटाते हुए कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’

अमित कुमार ने चौंकते हुए सिर उठाया और दरवाजे पर उपेंद्र को देख कर गंभीर लहजे में कहा, ‘‘वेलकम. आप अंदर आ सकते हैं?’’

उपेंद्र ने शीशे का दरवाजा खोला और अंदर आ गया. उस ने अमित कुमार को गुड मार्निंग कहा और उन के इशारे पर सामने रखी कुरसी पर बैठ गया.

“अपना रिज्यूमे लाए हैं आप?’’ अमित कुमार ने फाइल बंद करते हुए पूछा.

“जी सर,’’ कहते हुए उपेंद्र ने फाइल में से रिज्यूमे निकाल कर अमित कुमार के सामने रख दिया.

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