सैंट्रल पार्क के उत्तरपश्चिमी कोने में हलका अंधेरा छाया हुआ था. आसपास फैली गगनचुंबी इमारतों की खिड़कियों से निकलता मद्धिममद्धिम प्रकाश वहां पहुंच रहा था, मगर फिर भी घने पेड़ों के नीचे अंधेरा था. ठीक 10 बजे निक ने पार्क में कदम रखा और सावधानीपूर्वक उत्तरपश्चिमी कोने की ओर बढ़ा. उस की तेज नजरें चारों ओर का जायजा ले रही थीं. पेड़ों के अंधेरे में पहुंच कर वह रुका और हौले से नारमन को आवाज दी.
यकायक उसे हलकी आहट सुनाई दी. वह आवाज की दिशा में मुड़ने का इरादा कर ही रहा था कि उसे अपनी कमर में कोई ठोस चीज चुभती हुई महसूस हुई. वह पत्थर की तरह अपनी जगह पर जम गया.
‘‘कोई हरकत मत करना.’’ किसी ने उस के कान में धीमे से कहा, ‘‘तुम्हारी कमर में जो चीज चुभ रही है वह 28 बोर की साइलेंसर लगी पिस्तौल की नाल है.’’
‘‘मैं इस हरकत का मतलब नहीं समझा, मिस्टर नारमन?’’ निक ने कहा.
उसी वक्त एक आदमी निक के सामने पहुंच गया और जल्दी से उस की जेब से पर्स निकाल लिया.
‘‘हमें उलझाने की कोशिश मत करो.’’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘यहां कोई नारमन नहीं है.’’
‘‘तुम कौन हो?’’
‘‘इतने अंजान मत बनो.’’ पर्स निकालने वाले ने कहा, ‘‘हमें बस माल चाहिए, इत्मिनान से खड़े रहोगे तो तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे.’’
‘‘मैं इत्मिनान से ही खड़ा हूं.’’ निक ने कहा, ‘‘अपने हाथपैर गंदे करने का मेरा कोई इरादा नहीं है.’’
‘‘इसी में समझदारी भी है. ’’ वह आदमी पर्स से कैश निकालते हुए बोला. फिर उस ने चौंक कर कहा, ‘‘अरे, तुम तो बिलकुल ही कंगले मालूम होते हो. इस में तो एक समय के खाने के पैसे भी नहीं हैं.’’