Hindi Kahani: गरीबों, अपाहिजों और मजलूमों की कहानियां लिखने वाले सुधांशु को अचानक ऐसा क्या हो गया कि उस की कहानियों से दर्द और हमदर्दी खत्म हो गई.सुधांशु एक ऊंचे दर्जे का लेखक था. वह ज्यादातर अपाहिज, मजलूम और गरीबों की कहानियां लिखता था. अपनी कहानियों में वह उन के दुखदर्द, परेशानियों को इस तरह बयान करता था कि जैसे वे दुखदर्द और परेशानियां उस की व्यक्तिगत हों. वह खुद भी कहा करता था कि अगर वह लेखक न होता तो शायद कुछ भी न होता. ये कहानियां उस की आत्मा से निकली वे आवाजें होती थीं, जिन्हें वह दुनिया को अपनी कलम की मदद से अवगत कराता था.
दुनिया के सारे सुख उस के पास थे. सुंदर सा घर, मातापिता, प्रेम करने वाली बहन और जान छिड़कने वाली मंगेतर, जो उसे भी बहुत प्रिय थी. सुधांशु की मंगेतर सुधा का कहना था कि सुधांशु ने उस से मंगनी तो यों ही कर ली थी, सच्चा प्रेम तो उसे अपनी कहानियों से था, जिन में वह सदैव खोया रहता है. सुधा को वह दिन अच्छी तरह याद था, जब वह सुधांशु और उस की बहन के साथ उस के एक दोस्त मिस्टर राठौर के यहां पार्टी में गई थी. उस पार्टी में बड़ेबड़े लोग आए थे. सभी हंसीमजाक कर रहे थे. सुधांशु बहुत प्रसन्न था और शराफत से सुधा को चाहतभरी नजरों से घूर रहा था. सुधा उसे बहुत प्यारी लग रही थी, जबकि वह बेचारी तमाम लोगों के बीच उस की उन नजरों से परेशान हो रही थी. दीदी भी उस की इस शरारत पर धीरेधीरे मुसकरा रही थीं.






