यह जनवरी, 2016 की दोपहर की बात है. कड़ाके की सर्दी पड़ने की वजह से आफरीन रहमान जयपुर स्थित अपने घर पर ही थीं. उन का खाना खाने का मन नहीं था, इसलिए कुरसी पर बैठ कर वह सोचने लगीं कि अब क्या किया जाए, क्योंकि घर के सारे काम वह पहले ही निपटा चुकी थीं. वह कुरसी पर बैठी थीं कि तभी उन की नजर सामने सैंटर टेबल पर पड़ी पत्रिका पर पड़ गई.

उसे एक दिन पहले ही वह बाजार से खरीद कर लाई थीं. रात को वह उसे पढ़ रही थीं, तभी उन्हें नींद आ गई थी. तब मैगजीन सैंटर टेबल पर रख कर वह सो गई थीं. मैगजीन देख कर आफरीन को उस कहानी की याद आ गई, जिसे वह पढ़ रही थीं. वह एक महिला की कहानी थी, जिसे पति ने घर से निकाल दिया था. इस समय वह महिला मायके में भाइयों के साथ रह रही थी.

आफरीन ने उसी कहानी को पढ़ने के लिए मैगजीन उठा ली. वह पन्ने पलट रही थीं, तभी डोरबैल बजी. आफरीन सोच में पड़ गईं कि इस समय दोपहर में कौन आ गया? उन्होंने बैठेबैठे ही आवाज लगाई, ‘‘कौन..?’’

बाहर से जवाब आने के बजाय दोबारा डोरबैल बजी तो आफरीन मैगजीन मेज पर रख कर अनमने मन से उठीं और दरवाजे पर जा कर दरवाजा खोलने से पहले एक बार फिर पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैडम, मैं पोस्टमैन.’’ बाहर से आवाज आई.

आफरीन ने दरवाजा खोला तो बाहर खाकी वर्दी में पोस्टमैन खड़ा था. उस ने एक लिफाफा आफरीन की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आप के यहां आफरीन रहमान कौन हैं? यह स्पीड पोस्ट आई है.’’

‘‘मैं ही आफरीन रहमान हूं.’’ उन्होंने कहा.

‘‘मैडम,’’ पोस्टमैन ने एक कागज आफरीन की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘इस पर दस्तखत कर दीजिए.’’

कागज थाम कर आफरीन ने पोस्टमैन की ओर देखा तो उस ने अपनी जेब से पैन निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया. आफरीन ने उस कागज पर दस्तखत कर दिए तो पोस्टमैन ने एक लिफाफा उन्हें थमा दिया. आफरीन ने दरवाजा बंद किया और कमरे में आ कर उस लिफाफे को उलटपलट कर देखने लगी. वह स्पीड पोस्ट उन्हीं के नाम थी. पत्र भेजने वाले की जगह अशहर वारसी, इंदौर लिखा था.

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इंदौर से अशहर का पत्र देख कर आफरीन खुश हो गईं लेकिन तुरंत ही अपनी उस खुशी को झटक कर वह सोचने लगीं कि अगर अशहर को उस की जरूरत होती तो वह खुद आता या फोन करता. पत्र भेजने की क्या जरूरत थी? आफरीन के मन में तरहतरह की आशंकाएं उपजने लगीं. 5-6 महीने बाद उस ने इस तरह क्यों याद किया? यह चिट्ठी क्यों भेजी, वह भी स्पीड पोस्ट से?

आफरीन का मन बैठने सा लगा. उन्होंने कांपते हाथों से स्पीडपोस्ट का वह लिफाफा खोला. उस में से एक कागज निकला. उन्होंने वह कागज खोला तो उस पर लिखा था ‘तलाक…तलाक… तलाक…’. उन्होंने एक बार फिर उस कागज पर लिखी इबारत पढ़ी. उस पर वही लिखा था, जो उन्होंने पहले पढ़ा था.

आफरीन ने उस कागज पर लिखे शब्दों को कई बार पढ़ा. उस तलाकनामा को देख कर उन की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. वह कुरसी पर बैठ गईं. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि उन की खुशियों को इतनी जल्दी ग्रहण कैसे लग गया? उन्हें जो खुशियां मिली थीं, वे इतनी जल्दी कैसे छिन गईं?

उन्होंने तो ऐसी कोई गलती भी नहीं की थी कि उस गलती की इतनी बड़ी सजा मिल रही हो. करीब डेढ़, दो साल पहले अशहर से रिश्ता तय होना, उस की बेगम बन कर जयपुर से इंदौर जाना, कुछ ही दिनों में ससुराल वालों की ओर से दहेज के लिए उन पर अत्याचार करना और फिर एक दिन उन्हें घर से निकाल देने की एकएक घटना उस के जेहन में फिल्म की तरह चलने लगी.

सन 2014 के मईजून महीने की बात रही होगी. जयपुर की रहने वाली 23 साल की आफरीन रहमान अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी कर नौकरी तलाश रही थी. उस के पिता मोहम्मद नसीर की सन 2009 में कौर्डियक अटैक से मौत हो गई थी. उस के बाद परिवार की जिम्मेदारी आफरीन के 2 भाइयों पर आ गई थी.

परिवार में आफरीन, मां और 2 भाई थे. भाई चाहते थे कि आफरीन का जल्द से जल्द निकाह हो जाए. वैसे भी आफरीन शादी लायक हो चुकी थी. उस की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी. भाई उस के लिए रिश्ता तलाश रहे थे. उसी बीच एक मैट्रीमोनियल वेबसाइट के माध्यम से अशहर वारसी और आफरीन में जानपहचान हुई.

अशहर वारसी मध्य प्रदेश के शहर इंदौर के रहने वाले थे. वह वकालत करते थे. जानपहचान हुई तो बात शादी की चली. अशहर ने आफरीन को देखा और आफरीन ने अशहर को. दोनों ही एकदूसरे को पसंद आ गए. इस के बाद घर वालों की रजामंदी से नातेरिश्तेदारों की मौजूदगी में रिश्ता तय हो गया.

रिश्ता तय होने पर आफरीन अपने सपनों के राजकुमार अशहर के साथ भविष्य के सपने बुनने लगी. अशहर जवान थे और खूबसूरत भी. आफरीन ने पहले ही तय कर लिया था कि वह किसी अच्छे पढ़ेलिखे लड़के से ही शादी करेगी. अशहर वकालत की पढ़ाई कर के प्रैक्टिस कर रहे थे.

सब कुछ ठीकठाक था, इसलिए आफरीन के भाई और मां इस बात से बेफिक्र थे कि नाजनखरों में पली उन की लाडली को ससुराल में कोई परेशानी नहीं होगी. आफरीन की मां को केवल इसी बात का दुख था कि आफरीन जयपुर से सैकड़ों किलोमीटर दूर इंदौर चली जाएगी.

मां की इस बात पर आफरीन के भाई यह कह कर उन्हें सांत्वना देते थे कि आजकल इतनी दूरी कुछ भी नहीं है. सुबह जा कर रात में जयपुर आया जा सकता है. अशहर के घर वाले चाहते थे कि निकाह धूमधाम से हो. उन की चाहत को देखते हुए आफरीन के भाइयों ने शादी की तैयारी शुरू कर दी.

बहन की शादी के लिए उन्होंने इधरउधर से कर्ज भी लिया. लेकिन भाइयों ने शादी 4 सितारा होटल में की. 24 अगस्त, 2014 को आफरीन रहमान और अशहर वारसी की शादी धूमधाम से हो गई. आफरीन की शादी में उस के भाइयों ने अपनी हैसियत से ज्यादा दहेज दिया, ताकि उन की बहन को ससुराल में कोई परेशानी न हो.

शादी के बाद आफरीन इंदौर चली गई. शुरुआती दिन हंसीखुशी में निकल गए. अशहर भी खुश था और आफरीन भी. आफरीन को अपने शौहर के वकील होने का फख्र था तो अशहर को भी अपनी बेगम के उच्च शिक्षित होने की खुशी थी. न तो आफरीन को कोई गिलाशिकवा था और ना ही अशहर को.

दोनों मानते थे कि पढ़ालिखा होने से वे अपनी जिंदगी को खुशहाल बना लेंगे. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. लेकिन आफरीन की खुशियां ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं रह सकीं. शादी के 3-4 महीने बाद ही अशहर और उस के घर वालों का व्यवहार बदलने लगा. जो अशहर आफरीन से प्यारमोहब्बत की बातें करते नहीं थकता था, वह उसे आंखें तरेर कर बातें करने लगा.

ससुराल वालों का भी व्यवहार बदल गया था. वे दहेज और अन्य बातों को ले कर ताने मारने लगे थे. आफरीन समझ नहीं पा रही थीं कि यह सब क्यों होने लगा? मौका मिलने पर वह अशहर को समझाने की कोशिश करती, लेकिन अशहर समझने के बजाय उन्हें ही दोषी ठहराता.

आफरीन पढ़ीलिखी और समझदार थीं. वह जानती थीं कि इन बातों का परिणाम अच्छा नहीं होगा. वह भाइयों की स्थिति को भी जानती थीं. अब वे इस हालत में नहीं थे कि बहन की ससुराल वालों की दहेज की मांग पूरी कर सकते. वह यह भी जानती थीं कि अगर एक बार इन की दहेज की मांग पूरी भी कर दी गई तो क्या गारंटी कि ये आगे कुछ नहीं मांगेंगे. उन्हें परेशान नहीं करेंगे.

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यही सोच कर आफरीन ससुराल वालों के अत्याचार सहती रहीं. वह जब भी अकेली होतीं, उस समय को कोसती रहतीं, जब उन की अशहर से जानपहचान हुई थी. उन का सोचना था कि शायद कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा. लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ. ससुराल वालों के अत्याचार लगातार बढ़ते ही गए. अब उन के साथ मारपीट भी होने लगी थी, जिसे वह यह सोच कर सहन करती रहीं कि एक न एक दिन यह सब ठीक हो जाएगा.

अशहर घर वालों के कहने पर चल रहा था. वह आफरीन से सीधे मुंह बात भी नहीं करता था. बात सिर से गुजरने लगी तो आफरीन ने अपनी परेशानी भाइयों को बताई. भाई इंदौर गए और अशहर तथा उस के घर वालों को समझाया. अपनी आर्थिक स्थिति भी बताई.

इस के बाद महीना, 15 दिन तक आफरीन के प्रति ससुराल वालों का रवैया ठीक रहा, पर इस के बाद फिर वे उसे परेशान करने लगे. यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा. शादी के करीब एक साल बाद अगस्त, 2015 में अशहर और उस के घर वालों ने पैसे और कई तरह का अन्य सामान लाने की बात कह कर आफरीन से मारपीट की और उन्हें घर से धक्के मार कर निकाल दिया.

आफरीन सब के सामने गिड़गिड़ाती रहीं और कहती रहीं कि उन के भाइयों की इतनी हैसियत नहीं है कि वे उन की मांगें पूरी कर सकें. ससुराल वालों ने उन की एक भी बात नहीं सुनी. आफरीन क्या करती? वह जयपुर भाइयों के पास आ गईं. भाइयों ने अशहर और उन के घर वालों से बात की. नातेरिश्तेदारों से दबाव डलवाया.

आखिर 7-8 दिनों बाद आफरीन के ससुराल वाले आ कर उन्हें इंदौर ले गए. आफरीन भी यह सोच कर उन के साथ चली गईं कि शायद अब इन्हें अक्ल आ गई होगी. लेकिन जल्दी ही ससुराल में उन के साथ फिर वैसा ही व्यवहार होने लगा. अशहर और उन के घर वाले फिर दहेज की मांग करते हुए उन के साथ मारपीट करने लगे. ऐसा कोई दिन नहीं होता था, जिस दिन उन्हें ससुराल न मारा जाता रहा हो.

आफरीन ने एक बार फिर अशहर को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. सितंबर, 2015 में अशहर और उस के घर वालों ने एक बार फिर मारपीट कर आफरीन को घर से निकाल दिया. आंखों से आंसू लिए आफरीन एक बार फिर जयपुर स्थित अपने मायके आ गईं. आफरीन अपने भाइयों पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं.

आफरीन पढ़ीलिखी थीं, इसलिए अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थीं. जयपुर में वह नौकरी की तलाश करने लगीं. उसी बीच उन पर दुखों का एक और पहाड़ टूट पड़ा. अक्तूबर, 2015 में जयपुर से जोधपुर जाते समय सड़क दुर्घटना में आफरीन की मां की मौत हो गई. हादसे में उन्हें भी चोटें आई थीं.

आफरीन की ससुराल वालों को सूचना भेजी गई. अशहर जयपुर आया जरूर, लेकिन 2-3 दिन रुक कर चला गया. उस ने आफरीन को ले जाने की बात एक बार भी नहीं की. आफरीन के भाइयों ने कहा भी तो उस ने कोई जवाब नहीं दिया. आफरीन जयपुर में रहते हुए अपने भविष्य के बारे में सोच रही थीं.

कभीकभी उन्हें लगता था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. अशहर को जिस दिन उस की अहमियत का अहसास होगा, वह जयपुर आ कर उसे ले जाएगा. लेकिन उन का यह सोचना केवल मन को तसल्ली देने वाली बात थी. जयपुर में रहते हुए आफरीन को पता नहीं था कि उस के शौहर अशहर के मन में क्या चल रहा है? जनवरी, 2016 के आखिरी सप्ताह में स्पीडपोस्ट से अशहर का भेजा तलाकनामा आ गया.

तलाकनामा में 3 बार लिखे ‘तलाक…तलाक…तलाक…’ को पढ़ कर आफरीन की आंखों में आंसू आ गए. वह सोचने लगीं कि अब क्या किया जाए? उन्होंने अपने भाइयों तथा मिलनेजुलने वालों से राय ली. सभी ने उन की हिम्मत बढ़ाई. वह कुछ महिला संगठनों, मुसलिम संगठनों एवं वकीलों से मिलीं. आखिर उन्होंने 3 तलाक के सिस्टम को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया.

इस बीच, अप्रैल 2016 में आफरीन के बड़े भाई फहीम की दुर्घटना में मौत हो गई. एक तरफ आफरीन का विवाह टूट रहा था और दूसरी ओर 7 महीने के अंदर मां और बड़े भाई की हादसों में हुई मौत ने उन्हें तोड़ कर रख दिया था. परिवार में भाभी और एक छोटा भाई ही बचा था.

इस के बावजूद आफरीन ने अपना दिल कड़ा किया. 3 तलाक के खिलाफ अपने वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने मई, 2016 में आफरीन की यह याचिका स्वीकार कर ली.

3 तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली आफरीन देश की दूसरी महिला थीं.

इस से पहले उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने फरवरी, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 3 तलाक और बहुविवाह को खत्म करने का आग्रह किया था.

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आफरीन का कहना है कि 3 तलाक पूरी तरह से नाइंसाफी है. उन की तलाक की इच्छा थी या नहीं, यह उन से एक बार भी नहीं पूछा गया. इस तरह चिट्ठी के जरिए तलाक देना अपने आप में क्रूरता है. इस तरह तलाक दे कर महिलाओं के अधिकारों और इच्छाओं को पूरी तरह नजरअंदाज किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अब आफरीन पति से मेहर की रकम और गुजारा भत्ता चाहती हैं.

दर्द के दरिया में डूबी मुमताज

उत्तर प्रदेश के झांसी के थाना सीपरी के इलाके की आवास विकास कालोनी की रहने वाली मुमताज बेगम का निकाह 21 दिसंबर, 2003 को वहीं के रहने वाले वारिस उज्जमा के साथ हुआ था. शादी के बाद वह जल्दी ही गर्भवती भी हो गई. लेकिन उस के पति और ससुराल वालों ने कहना शुरू कर दिया कि उन्हें बेटा चाहिए.

जब दिसंबर, 2004 में मुमताज बेटी की मां बनी तो उस पर मुसीबतें टूट पड़ीं. उत्पीड़न के साथ पति और ससुराल वाले उस पर यह कह कर मायके से 5 लाख रुपए लाने के लिए दबाव डालने लगे कि उस की बेटी मायके की है. उस की शादी के लिए पैसे की जरूरत पड़ेगी.

बात बेटी की शादी बचाने की थी. पूरा हालहवाल जान कर मायके वालों ने यह कह कर कि जब बेटी बड़ी हो जाए तो प्लौट बेच कर उस की शादी कर दी जाएगी. मुमताज के नाम एक प्लौट की रजिस्ट्री करा दी गई. कुछ समय शांति रही. इस बीच मुमताज एक बेटे और एक बेटी की मां बनी. इस के बावजूद फिर से मुमताज के साथ बदसलूकी शुरू हो गई. मारपीट भी होने लगी.

जल्दी ही वह दिन भी आ गया, जब 3 तलाक कह कर वारिस उज्जमा ने उसे घर से निकाल दिया. बाद मे उस ने बाकायदा लिख कर शरिया हिसाब से उसे तलाक दे दिया.

मुमताज ने समाज के ठेकेदारों से न्याय दिलाने की मांग की. मुसलिम पर्सनल लौ बोर्ड  से संबंद्ध अदालत के काजी (जज) से संपर्क किया.  लेकिन सब ने एक ही बात कही कि यह धर्म का मामला है, तलाक हो चुका है. इसलिए कुछ नहीं किया जा सकता. औल इंडिया पर्सनल लौ बोर्ड से संबंद्ध दारुल कजा शरई अदालत के मुफ्ती सिद्दीकी नकवी ने कहा कि बेशक तलाक का तरीका गलत है, पर तलाक तो हो ही गया है, इसलिए कुछ नहीं किया जा सकता.

अब सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद मुमताज को न्याय मिल सकेगा. अभी तक वह न्याय के लिए धर्म के ठेकेदारों के पास भटकती रही, जिन्होंने उसे दिलाशा देना तक उचित नहीं समझा.

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