23 जनवरी, 2017 को भागलपुर के लोदीपुर थाने के थानाप्रभारी भारतभूषण ने सचिवालय थाने के थानाप्रभारी प्रकाश सिंह को फोन कर के बताया कि उन के थानाक्षेत्र में आने वाली कलवलिया नदी के किनारे झाड़ी में एक सड़ीगली लाश मिली है, जिस का हुलिया लापता विनोद कुमार सिंह से मिलता है.
सूचना मिलते ही रामजी सिंह, छोटे बेटे मनोज कुमार सिंह और एसआई अरविंद कुमार को साथ ले कर भागलपुर के थाना लोदीपुर पहुंचे. उन्होंने लाश देखी तो हतप्रभ रह गए. उस लाश का चेहरा बुरी तरह जला हुआ था. इस के बावजूद लाश देख कर रामजी सिंह ने उस की शिनाख्त अपने बेटे विनोद के रूप में कर दी.
विनोद की हत्या की सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. उस की पत्नी वीणा और उस के दोनों बच्चों प्रियांशु और सोनाली का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. 17 दिनों से रहस्य बनी अंतरराष्ट्रीय तैराक विनोद कुमार सिंह की गुमशुदगी की कहानी हत्या के रूप में सामने आई.
मृतक विनोद के पिता रामजी सिंह ने बेटे की हत्या का आरोप राज्यस्तर की महिला वौलीबाल खिलाड़ी रंजना कुमारी, उस की मां सबरी देवी, पिता राधाकृष्ण मंडल उर्फ वकील मंडल, रंजना के मौसेरे भाई बिट्टू और बहनोई शंभू मंडल पर लगाया.
उन के आरोपों के आधार पर पटना पुलिस ने थाना लोदीपुर के थानाप्रभारी भारतभूषण की मदद से उसी दिन कोहड़ा गांव से रंजना कुमारी, सबरी देवी, राधा मंडल उर्फ वकील और शंभू मंडल को गिरफ्तरार कर लिया. पांचवां आरोपी बिट्टू घर से फरार था.
गिरफ्तार चारों आरोपियों को पटना पुलिस सचिवालय थाने ले आई. थाने में सचिवालय रेंज के एएसपी अशोक कुमार चौधरी ने उन से अलगअलग पूछताछ की. चारों आरोपियों ने अंतरराष्ट्रीय तैराक विनोद कुमार सिंह की हत्या की बात स्वीकार कर ली.
पुलिस ने अगले दिन चारों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. विनोद कुमार सिंह की हत्या के पीछे प्यार, धोखा और ब्लैकमेलिंग की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—
36 वर्षीय विनोद कुमार सिंह मूलरूप से बिहार के सीवान जिले के बड़ा सिकवा गांव का रहने वाला था. उस के पिता रामजी सिंह पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले में रहते थे. विनोद के बाबा ने यहीं रह कर नौकरी की थी. तभी उन्होंने वहां मकान बनवा लिया था. तब से उन का परिवार यहीं रह रहा था. विनोद के पिता रामजी सिंह ने यहीं रह कर शिक्षा विभाग में नौकरी की थी और यहीं से सेवानिवृत्त हुए थे.
रामजी सिंह के 4 बच्चों में 2 बेटियां और 2 बेटे थे. बेटियों से छोटे विनोद कुमार सिंह और मनोज कुमार थे. विनोद पैदाइशी दिव्यांग था. कंधे से नीचे उस के दोनों बाजू नहीं थे. धीरेधीरे विनोद बड़ा हुआ. दोनों बाजू न होने की वजह से विनोद कभी मायूस या दुखी नहीं हुआ, बल्कि उस ने अपनी इसी कमजोरी को ताकत बनाया.
पैरों को उस ने हाथ बनाया. उन्हीं पैरों के सहारे वह अपने सारे दैनिक कार्य करता था. वह पैर के सहारे अपनी कमीज के बटन बंद करने से ले कर पढ़नेलिखने, यहां तक कि चकले पर बेलन के सहारे गोल रोटियां बेलने, चावल पकाने, पैरों से चम्मच के सहारे खाना खाने और कंप्यूटर चलाने जैसे सारे काम कर लेता था. उसे सिर्फ पैंट के बटन बंद करने में दूसरे की मदद लेनी पड़ती थी.
विनोद ने उत्तरी 24 परगना जिले के नइहट्टी कालेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की और मगध विश्वविद्यालय गया से स्नातक. वह अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहता था. उस की मंजिल उसे तब मिली, जब उस ने कुछ लड़कों को पानी में तैराकी सीखते देखा.
इसी जिले के श्यामनगर में स्विमिंग क्लब था. यहां बच्चे तैराकी सीखने आते थे. विनोद भी अपने दोस्तों के साथ वहां आताजाता था. बच्चों को तैरता देख कर विनोद के मन में आया कि वह भी तैरना सीखेगा. वहां के कोच अशोक पाल थे. कोच से उस ने तैराकी सीखने की इच्छा जाहिर की. लेकिन उस के दोनों हाथ न देख कर कोच ने उसे तैराकी सिखाने से मना कर दिया.
कोच अशोक पाल की बातों का विनोद ने कतई बुरा नहीं माना, बल्कि उन की नकारात्मकता से उसे ऊर्जा मिली. विनोद ने उन से फिर आग्रह किया. कई दिनों की मिन्नतों के बाद कोच अशोक पाल उसे तैराकी सिखाने को तैयार हो गए. उन्होंने 4-5 लड़कों के साथ उसे पानी में उतार दिया. उन्होंने दूसरे लड़कों को हिदायत दी कि कोई भी उसे पकड़े न, देखें यह कैसे क्या करता है, बस इतना ध्यान रखना कि यह डूबने न पाए.
लड़कों ने वैसा ही किया. पहली बार पानी में उतरे विनोद ने दोनों पैरों के सहारे पानी में अद्भुत करतब दिखाए. विनोद के अदम्य साहस को देख कर सभी दंग रह गए. तैरने के लिए पहली बार पानी में उतरे विनोद ने कोच अशोक पाल का दिल जीत लिया. वह उसे तैराकी सिखाने को राजी हो गए. उन्होंने विनोद को तैराकी के गुर सिखाए.
धीरेधीरे वह इस कला में पारंगत हो गया. पहले जिला, फिर राज्य, फिर देश और विदेशों में जा कर उस ने अपने नाम का झंडा फहराया. उस ने 6 बार अंतरराष्ट्रीय तैराकी में मैडल और कई बार नेशनल तैराकी में मैडल जीते. बिहार सरकार ने सन 2012 में खेल कोटे से विनोद को पटना सचिवालय में लघु सिंचाई विभाग में नौकरी दे दी.
जिन दिनों तैराकी में विनोद कुमार के नाम का देशविदेश में डंका बज रहा था, उन्हीं दिनों उस की जिंदगी में वीणा कुमारी सिंह ने जीवनसंगिनी के रूप में कदम रखा. शादी के बाद विनोद 2 बच्चों बेटे प्रियांशु और बेटी सोनाली उर्फ गुनगुन का पिता बना. विनोद की जिंदगी खुशियों से भर गई. अब उसे किसी चीज की कमी नहीं थी.
बात सन 2013-14 की है. सामान्य कदकाठी और तीखे नैननक्श वाली गोरीचिट्टी, छरहरे बदन की रंजना पटना सचिवालय किसी काम से आतीजाती रहती थी. वह भी बिहार की राज्य स्तर की वौलीबाल खिलाड़ी थी. वह भी जीत के कई मैडल अपने नाम कर चुकी थी.
खेल के आधार पर उसे भी नौकरी मिलने वाली थी. उसी की औपचारिकता पूरी करने के लिए वह सचिवालय आयाजाया करती थी. सचिवालय में उन दिनों विनोद की नईनई नौकरी लगी थी. वहीं दोनों की पहली मुलाकात हुई. रंजना सुंदर भी थी और वाकपटु भी. विनोद पहली ही नजर में उसे दिल दे बैठा.
रंजना भागलपुर से एकदो दिनों के लिए पटना आती थी और अपना काम निपटा कर भागलपुर लौट जाती थी. रंजना जब भी सचिवालय आती, विनोद उस का खास खयाल रखता. वह सब से पहले उस का काम करा देता था. इसी बात से रंजना उस की मुरीद हो गई थी.
विनोद की आंखों में उस ने अपने लिए चाहत देख ली. उसे विनोद से मिलनाजुलना अच्छा लगने लगा. धीरेधीरे वह उस की ओर खिंची चली गई. विनोद भी रंजना के दिल में उतर गया था. दोनों के दिलों में मोहब्बत के शोले भड़कने लगे. जल्दी ही दोनों ने अपनी मोहब्बत का इजहार कर दिया.
शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता होने की बात विनोद ने रंजना से छिपा ली थी. उस ने रंजना से खुद को कुंवारा बताया था. प्यार के सामने रंजना को विनोद की दिव्यांगता नजर नहीं आई. रंजना भागलपुर के लोदीपुर कोहड़ा गांव की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम राधाकृष्ण मंडल उर्फ वकील था. वह स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त हुए थे. रंजना उन की दूसरे नंबर की बेटी थी.
वह बड़ी हो कर कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिस से नाम और शोहरत दोनों मिले. बचपन से ही उस का मन पढ़ाई के बजाए खेलकूद में लगता था. स्कूली पढ़ाई के दौरान वह स्कूल के किसी भी खेल में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. इंटरमीडिएट के बाद उस ने वौलीबाल की ट्रेनिंग ली. उस के बाद उस ने खेल के मैदान में अपनी प्रतिभा का जादू दिखाया.
जिला स्तर से खेलती हुई रंजना ने राज्य में अपने नाम का परचम फहराया. उसे कई मैडल मिले. उस की खेल प्रतिभा की गूंज बिहार सरकार तक पहुंची तो सरकार ने उसे नौकरी देने का फैसला कर लिया. इसी सिलसिले में रंजना की सचिवालय में विनोद से मुलाकात हुई थी.
विनोद ने रंजना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह इनकार नहीं कर सकी. दोनों ने चुपके से मंदिर में जा कर शादी कर ली. सात फेरों की उन की तसवीरें रंजना के मोबाइल में कैद थीं, लेकिन विनोद ने बड़ी चालाकी से उस का मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया था, ताकि आगे चल कर वह इन तसवीरों को हथियार बना कर उसे अपनी बात मनवाने के लिए मजबूर न कर सके.
विनोद कुमार की देखरेख के लिए उस के साथ उस का भांजा अंकित कुमार सिंह रहता था. उसे भी इस शादी के बारे में पता नहीं चला था. विनोद ने यह बात अंकित से भी छिपा ली थी. इस की भनक उस ने न तो पत्नी वीणा को लगने दी थी और न ही पिता रामजी सिंह को. वीणा कभीकभार पटना आती थी और कुछ दिनों उस के साथ रह कर बंगाल लौट जाती थी.
शादी के बाद रंजना की नियुक्ति सीतामढ़ी के डीएवी इंटर कालेज में पीटी शिक्षक के रूप में हो गई थी. रंजना ने नौकरी जौइन की और सीतामढ़ी के डुमरा इलाके में किराए का एक कमरा ले कर अकेली रहने लगी. विनोद उस से मिलने सीतामढ़ी आताजाता रहता था. मजे की बात यह थी कि रंजना भी शादीशुदा थी, लेकिन उस ने भी अपनी शादीशुदा जिंदगी की बात सभी से छिपाए रखी थी. उस ने कभी अपनी मांग में सिंदूर नहीं भरा था. इसलिए लोग उसे कुंवारी ही समझते थे.