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राम प्रकाश पाठक सुबह 10 बजे कानपुर के किदवई नगर चौराहा स्थित अपनी दुकान पर पहुंचे तो वहां एक युवक बैठा था. उस का शरीर कांप रहा था और शरीर से दुर्गंध भी आ रही थी. उसे देख कर लग रहा था कि उसे आंखों से पूरी तरह दिखाई न दे रहा हो.

उन्होंने दुकान का शटर खोलने के लिए उस युवक से थोड़ा आगे बढ़ कर बैठने के लिए कहा तो वह युवक बोला, ‘‘पंडितजी, आप ने पहचाना मुझे? मैं सुरेश मांझी, यहीं पर लेबर का काम करता था. रोज लेबर मंडी आता था. मैं ने आप की आवाज पहचान ली है.’’

‘पंडितजी’ संबोधन सुन कर राम प्रकाश पाठक चौंक पडे़. क्योंकि उन को जाननेपहचानने वाले लोग ही उन्हें पंडितजी कह कर बुलाते थे. फिर भी उन्होंने उस युवक से कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें नहीं पहचाना.’’

अभी पंडितजी और उस युवक में बातचीत हो ही रही थी, तभी पास में ही मौजूद अमित नाम का मजदूर वहां आ गया. उस ने उस युवक को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘क्या तुम सुरेश हो?’’

‘‘हां भैया, मैं सुरेश मांझी हूं. और तुम?’’

‘‘मेरा नाम अमित है. हम दोनों ने कई बार साथसाथ काम किया है. इसलिए मैं ने तुम्हें पहचान लिया. लेकिन तुम्हारी यह दुर्दशा कैसे हुई?’’

‘‘अमित भैया, यह लंबी कहानी है. पहले तुम मेरे भाई रमेश को खबर दे दो. ताकि मेरी जान बच सके. वह यशोदा नगर के एस ब्लौक नाला रोड पर रहता है.’’ वह युवक बोला.

पंडित राम प्रकाश पाठक ने अमित को कुछ रुपए दे कर सुरेश मांझी के भाई के घर भेज दिया. अमित पूछतेपाछते किसी तरह रमेश के घर पहुंच गया और सुरेश मांझी के बारे में जानकारी दी. अमित की बात सुन कर रमेश मांझी चौंक पड़ा. क्योंकि उस का भाई सुरेश मांझी पिछले 6 महीने से लापता था और उस की खोज में वह जुटा हुआ था.

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