बिहार राज्य के सीवान जिला अंतर्गत एक गांव है-गोरिया कोठी पिपरा. इसी गांव में मुसाफिर मांझी अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे परवेश कुमार, रमेश कुमार तथा सुरेश कुमार थे.
मुसाफिर किसान था. उस के पास मात्र 3 बीघा उपजाऊ जमीन थी. जमीन की उपज से ही वह परिवार का भरणपोषण करता था. उस का बड़ा बेटा परवेश कृषि कार्य में उस का हाथ बंटाता था.
परवेश से छोटा रमेश था. वह तेज दिमाग का था. उस का मन किसानी में नहीं लगता था. मामूली पढ़ाई के बाद वह रोजीरोटी की तलाश में कानपुर आ गया था. यहां वह कई महीने तक भटकता रहा, उस के बाद उसे यशोदा नगर की एक प्लास्टिक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई.
नौकरी लग गई तो उस की शादी भी जल्दी हो गई. कुछ समय बाद वह अपनी पत्नी छठी देवी को भी कानपुर शहर ले आया और नौबस्ता थाना क्षेत्र के एस ब्लौक नाला रोड पर रहने लगा.
छोटे बेटे सुरेश का मन जब पढ़ाई से उचट गया तो मुसाफिर ने उसे किसानी के काम में लगा लिया. कुछ समय बाद सुरेश सीवान चला गया. वहां वह एक दुकान पर काम करने लगा और अच्छा पैसा कमाने लगा.
सुरेश जब कमाने लगा तो मुसाफिर ने उस का विवाह सीवान निवासी गोपी की बेटी गुलाबो के साथ कर दिया. शादी का सारा खर्चा मुसाफिर व उस के बेटे रमेश ने उठाया था.
शादी के एक साल बाद गुलाबो ने एक बेटी को जन्म दिया, लेकिन महीने भर बाद ही उस की मौत हो गई. बेटी की मौत का सदमा सुरेश को इस कदर लगा कि वह गम भुलाने के लिए शराब पीने लगा. धीरेधीरे वह शराब का लती बन गया.