वैशालपुर के ठाकुर प्रताप सिंह की बेटी थी राजबाला. वह बेहद सुंदर और धैर्यवान होने के साथ चतुर भी थी. आसपास के रजवाड़ों में ऐसी गुणों की खान कोई न थी. राजबाला का गोरा रंग, सुतवां नाक, कजरारे बड़ेबड़े नैन और गुलाब की पंखुडि़यों जैसे गुलाबी होंठ, भरा और कसा बदन, कमर तक लटकती स्याह काली केशराशि और मोहक मुसकान देख कर लोग उसे ऐसे ताकते रह जाते थे, जैसे वह किसी दूसरे लोक से आई कोई अप्सरा हो.
मगर हकीकत में वह कोई अप्सरा नहीं, बल्कि राजपूत बाला राजबाला थी. अपने पति को वह प्राणों से अधिक प्यार करती थी और जीवन भर कभी भी ऐसा अवसर न आया, जब उस ने पति की इच्छा के खिलाफ कोई काम किया हो.
राजबाला का विवाह अमरकोट रियासत की सोडा राजधानी के राजा अनार सिंह के पुत्र अजीत सिंह से हुआ था. अनार सिंह के पास बहुत बड़ी सेना थी, जिस से कभीकभी वह लूटमार भी किया करते थे.
एक बार ऐसा हुआ कि राव कोटा का राजकोष कहीं से आ रहा था. इस की खबर अनार सिंह को लग गई. तब अनार सिंह अपनी सेना ले कर राजकोष लूटने चल पड़े. राव कोटा के सिपाही बड़े वीर थे. दोनों सेनाओं में जम कर युद्ध हुआ. अंत में अनार सिंह की पराजय हुई और उन की सारी सेना तितरबितर हो गई.
इस पराजय के कारण अनार सिंह का सोडा में रहना असंभव हो गया. कोटा के राजा राव ने अनार सिंह की जागीर छीन ली और उन्हें देश निकाले का फरमान सुना दिया. अनार सिंह अब अपने किए पर पछता रहे थे.