वेब सीरीज : वेब सीरीज ‘भोग’ की कहानी एक तांत्रिक द्वारा बनाई गई एक रहस्यमय मूर्ति के इर्दगिर्द घूमती है. यही मूर्ति अपनी मौसी के साथ रहने वाले अतिन नाम के एक युवक को उस के दोस्त द्वारा दी जाती है. अतिन के घर में मूर्ति आने के बाद उस के साथ रहस्यमयी घटनाएं घटित होनी शुरू हो जाती हैं, जिस से उस की जान तक खतरे में पड़ जाती है. इस से छुटकारा पाने के लिए अतिन ने ऐसा उपाय किया कि…
निर्माता और निर्देशक: परमब्रत चट्टोपाध्याय, लेखक: अविक सरकार, पटकथा: शांतनु मित्रा नियोगी, ओटीटी: बंगाली प्लेटफार्म होइचोई
कलाकार: अनिर्बान भट्टाचार्य, परनो मित्रा, सुरैया परवीन, रजतव दत्ता, सुदीपा बसु, महेंद्र सोनी, शांतनु मित्रा, छंदक चौधरी, देवब्रत दत्ता, रंजिनी चट्टोपाध्याय, रितुपर्णा बसाक, सुभाशीष मुखोपाध्याय
वेब सीरीज ‘भोग’ एक बांग्ला अलौकिक थ्रिलर है, जो अविक सरकार की कहानी पर आधारित है. यह बांग्ला प्लेटफार्म ‘होइचोई’ पर पहली मई, 2025 को रिलीज हुई. इस रोमांचक सीरीज में अंत तक सस्पेंस बना रहता है.
यह सीरीज कोलकाता के एक सेल्स प्रोफेशनल अतिन (अनिर्बान भट्टाचार्य द्वारा अभिनीत) की कहानी है, जो सामान्य जीवन गुजार रहा था. वह अपने घर में बुजुर्ग नौकरानी पुष्पा के साथ रहता है, जिस ने उस की दिवंगत मम्मी से उस की जीवन भर देखभाल करने का वादा लिया था. लेकिन अतिन की जिंदगी में तब भूचाल आ जाता है, जब उसे अपने दोस्त की दुकान से एक 4 भुजाओं वाली देवी की पीतल की एक अजीब सी मूर्ति मिलती. वह इस मूर्ति के प्रति एक अजीब आकर्षण महसूस करता है और इस मूर्ति को अपने घर ले आता है.
इस मूर्ति को खरीदने के बाद अतिन के साथ अजीबोगरीब घटनाएं होने लगती हैं और फिर यह सब एक नाटकीय मोड़ ले लेता है. जैसेजैसे अतिन उस रहस्यमयी मूर्ति के प्रति आसक्त होता चला जाता है, वैसेवैसे वह हर एक पल के बाद अधिक जुनूनी होता चला जाता है. इसी बीच उस का सामना दमरी के साथ होता है, जोकि एक गरीब विधवा है. जब वह अतिन के जीवन में प्रवेश करती है तो उस का जीवन अब और अधिक जटिल और अस्थिर हो जाता है. अतिन फिर पौराणिक हौरर में चमकता है, जो दर्शकों को रोमांचित कर देता है. यह 6 एपिसोड की एक छोटी सी कहानी पर आधारित वेब सीरीज दर्शकों को रोमांचित कर देती है.
यह वेब सीरीज थ्रिलर रहस्य, भावनाओं और अलौकिक तनाव से परिपूर्ण है. वेब सीरीज ‘भोग’ केवल डरावनी कहानी ही नहीं है, बल्कि यह आस्था, अकेलेपन और कैसे आस्था किसी व्यक्ति को बदल भी सकती है, इस के बारे में बात करती है. सीरीज के मुख्य पात्र अतिन की यात्रा डरावनी के साथसाथ भावनात्मक भी है. यह वेब सीरीज दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि आस्था एक उपहार है या एक अभिशाप.
एपिसोड नंबर 1
पहले एपिसोड का नाम ‘अगोमोन’ रखा गया है, जिस का अर्थ है आगमन यानी कि आना, अथवा पहुंचना होना. एपिसोड की शुरुआत में हम सुबेश अग्रवाल (छंदक चौधरी) को देखते हैं, जिस की पार्क स्ट्रीट कोलकाता में प्राचीन वस्तुओं की एक दुकान है. उस की दुकान में एक दिन एक अजीब सी मूर्ति आती है. सुबेश का नौकर रतन उसे दुकान में रख देता है. थोड़ी ही देर के बाद रतन को एक औरत की छाया दिखाई देती है, जो रतन से कहती है कि मैं बहुत भूखी हूं, मुझे खाना दो.
यह देख कर रतन डर के मारे दुकान से भाग जाता है और अगले दिन भी डर के मारे दुकान पर नहीं आता. अगले दृश्य में हम अतिन मुखर्जी को देखते हैं, जो अपनी मम्मी की मृत्यु के बाद अपनी बुजुर्ग नौकरानी पुष्पा दी (सुदीपा बसु) के साथ रहता है. अतिन कोलकाता की एक कंपनी में सेल्स मैनेजर है और अच्छे परफौरमेंस के कारण उस का प्रमोशन हो जाता है. अतिन को प्राचीन दुर्लभ वस्तुएं खरीदने का शौक है. वह ये सारी वस्तुएं सुबेश अग्रवाल की दुकान से खरीदता रहता है. सुबेश अतिन का एक अच्छा दोस्त भी है, अपने प्रमोशन की पार्टी अपने दोस्त सुबेश के साथ करने अतिन उस की दुकान पर उसे लेने पहुंचता है, तभी अतिन की नजर उसी अजीब सी मूर्ति पर पड़ जाती है.
वह देवी की उस रहस्यमय पीतल की मूर्ति से सम्मोहित हो जाता है. उस मूर्ति के ऊपरी, बाएं हाथ में वीणा, ऊपरी दाहिने हाथ में खड्ग, निचले बाएं हाथ में मानव खोपड़ी और उस का निचला दाहिना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में था. जब अतिन उस मूर्ति के बारे में जानकारी लेता है. तभी सुबेश के पिता अतिन को बताते हैं कि कुछ दिन पहले एक बंगला खाली हो रहा था, जो चक्रवर्ती परिवार का था, उस परिवार के सभी लोग या तो मर चुके थे या कहीं और शिफ्ट हो गए थे. उस परिवार की सब से छोटी बेटी अपने पति के साथ यूएसए जा रही थी तो उस ने कोठी का सारा सामान हमें काफी सस्ते में बेच दिया था. तभी हमारी दुकान में एक बाबा इस मूर्ति को फ्री में दे कर चले गए.
तब सुबेश जतिन से कहता है कि यदि तुझे यह पसंद आ गई है तो इसे ले जा, पैसे बाद में दे देना. अतिन वह मूर्ति ले लेता है और अपनी प्रमोशन पार्टी करने के लिए सुबेश को अपने साथ एक क्लब में ले जाता है. वहां पर अतिन एक लड़की के साथ डांस करने लगता है. तभी अतिन को ऐसा महसूस होने लगता है कि जैसे मानो पूरा क्लब ही खाली हो गया है और क्लब की सारी लाइटें उसे लाललाल दिखाई देने लगती हैं. तभी अतिन को पुकारते हुए एक औरत कहती है कि मुझे जोरों की भूख लगी है. मुझे खाना दो. यह देख कर अतिन घबरा जाता है और अपने घर वापस जाने का फैसला ले लेता है.
अगले दृश्य में अतिन अपनी कार में बैठ कर अपने घर जल्दी जा रहा होता है, तभी उसे सड़क के बीचोंबीच अपनी मरी हुई मम्मी (रंजिनी चट्टोपाध्याय) दिखाई देती है. यह देख कर वह डर जाता है और तेजी से कार चला कर अपने घर पहुंच जाता है. घर पहुंचने पर पुष्पा दी उसे खाना देती है. हालांकि पुष्पा ही अतिन की नौकरानी है, लेकिन वह उस का अपने बेटे की तरह खयाल रखती है. क्योंकि पुष्पा दी से अतिन की मम्मी ने मरते समय यह वादा लिया था. अतिन खाना खाने के बाद अपने कमरे में सोने के लिए चला जाता है. थोड़ी देर के बाद अतिन को अपने सामने उसी औरत की शक्ल दिखाई देती है, जो शक्ल दुकान में रतन को दिखाई दी थी. इस औरत की शक्ल कुछकुछ अतिन की मरी मम्मी की तरह दिखाई दे रही थी.
अतिन इतना डर जाता है कि पानी का गिलास उस के हाथ से छूट कर जमीन पर गिर जाता है. तभी अतिन की नींद एकदम से खुल जाती है तो वह सोचने लगता है कि उस ने जो अभी तक देखा था, वह तो बस एक सपना मात्र था, लेकिन जब अतिन नीचे नजर डालता है तो वह देखता है कि सपने में जो उस ने गिलास को जमीन पर गिरते देखा था, वह तो वास्तव में जमीन पर ही गिरा हुआ है. अतिन को जमीन पर गिरे पानी पर किसी औरत के पैरों के निशान भी स्पष्ट दिखाई देते हैं और फिर यहीं पर पहला एपिसोड समाप्त हो जाता है.
पहले एपिसोड की बात करें तो इस में कहींकहीं पर कहानी भटकाव की स्थिति में दिखाई देती है. क्लब में जब अतिन को वहां का माहौल अजीब दिखाई दिया और वह वहां से डर कर कार से अपने घर आ गया. लेकिन वहां पर उस का दोस्त सुबेश व अन्य लोग कहां चले गए, यह इस में नहीं दिखाया गया है. जिस के कारण यह दृश्य नाटकीय सा लगता है. दूसरा अपनी मम्मी की सूरत देख कर भी अतिन डर जाता है यह भी गले से नहीं उतरता. किसी भी व्यक्ति के परिजन यदि मरने के बाद दर्शन देते हैं तो यह तो सौभाग्य की बात है. इंसान सब से अधिक अपनी मम्मी से प्यार करता है, मरने के बाद यदि वह अपनी मम्मी से भी डरने लगे या घबरा जाए तो यह बात बिलकुल भी हजम नहीं होती. अभिनय की बात करें तो सभी कलाकारों का अभिनय साधारण स्तर का रहा है.
एपिसोड नंबर 2
दूसरे एपिसोड का नाम ‘आराधना’ रखा गया. अगले दिन सुबह अतिन मूर्ति को एक टेबल के ऊपर रख देता है और मूर्ति के आगे फूल रख कर अगरबत्ती जला देता है और मूर्ति की पूजा करने लगता है. तभी अतिन के घर पर भावेश काकू (रजतव दत्ता) उस से मिलने आते हैं. उन की जैसे ही नजर उस मूर्ति पर पड़ती है तो वह सीरियस हो जाते हैं और अतिन से कहते हैं कि यह मूर्ति तो तिब्बतन स्टाइल की लग रही है, यह मूर्ति किसी तांत्रिक की भी हो सकती है.
भावेश अंकल अतिन को समझाते हैं कि बुद्धिज्म में भी तंत्रमंत्र की प्रैक्टिस होती है, जो कि हिंदू तांत्रिक विद्या से इंसपायर होती है. इसलिए ऐसे बिना सोचेसमझे किसी देवी की पूजा करना गलत हो सकता है. हर देवी की पूजा विधि अलग होती है. गलत विधि से पूजा करने से कोई भी देवी नाराज हो सकती है और इस का परिणाम घातक हो सकता है. भावेश काकू जाते समय अतिन से कहते हैं कि तुम थोड़ा संयम से काम लो. मैं जल्दी ही किसी लोकल अच्छे पुजारी को ले कर यहां आऊंगा, जो इस देवी की पूजा विधि सही ढंग से बता देगा.
इन की बातचीत के दौरान उस मूर्ति के आगे रखा एक सफेद फूल पहले हिलता है और फिर एकाएक जमीन पर गिर जाता है, जिस से यह अहसास होता है कि यहां पर कोई न कोई अदृश्य शक्ति जरूर है. अगले दृश्य में अतिन अपने औफिस के वाशरूम में जाता है तो उसे वहां पर किसी के पांवों के खून से सने निशान दिखाई देते हैं. उसे वहां पर बारबार किसी औरत की आवाज सुनाई देती है, ‘मैं भूखी हूं, मुझे कुछ तो खिला दो.’
यह दृश्य देख कर और अपने कानों से यह आवाज सुन कर अतिन अब काफी परेशान हो जाता है. जब अतिन औफिस से लौट कर घर पर आता है तो वहां पर काफी टेंशन में रहता है, वह एक सेब काट कर मूर्ति के सामने रख देता है और खाना खा कर अपने कमरे में सोने चला जाता है.
रात को अतिन को फिर वही औरत सपने में अतिन के सामने खड़ी दिखाई देती है. वह जमीन पर बैठ कर उस औरत को मां कह कर पुकारता है तो वह औरत अतिन से खाना मांगती है. अतिन उस औरत से सम्मोहित हो कर उस के सामने हाथ जोड़ देता है. उस समय ऐसा लगता है जैसे अतिन पर किसी ने जादू कर दिया हो और वह उस के वश में हो गया है. अगले दिन से अतिन के स्वभाव में परिवर्तन होने लगता है. वह अब किसी से बात नहीं करना चाहता और लोगों से कटाकटा सा रहने लगता है. अब अतिन रोज मूर्ति के सामने फूल और फूलों के हार रखने लगा था. मगर अब तक वह मूर्ति कुछ भी स्वीकार नहीं कर रही थी.
अब अतिन का रहनसहन व स्वभाव एकदम से परिवर्तित होने लगा था. पुष्पा दी जो अतिन की देखभाल एक मां के रूप में कर रही थी, अतिन के अंदर आए इन परिवर्तनों को नोटिस कर रही थी. एक दिन आधी रात को पुष्पा दी की नींद घंटी की आवाज को सुन कर टूट जाती है तो उसे एक कमरे में अतिन उस मूर्ति की पूजा कर रहा होता है. अतिन को देख कर ऐसा लगता है जैसे उस का मानसिक संतुलन बिलकुल भी ठीक नहीं है. ऐसा लगता जैसे अतिन के मस्तिष्क को कोई और कंट्रोल कर रहा है. तभी पुष्पा को अतिन के पीछे एक औरत का भयानक चेहरा नजर आता है, जिस से वह बुरी तरह से डर कर चीखनेचिल्लाने लगती है और फिर यहां पर दूसरा एपिसोड समाप्त हो जाता है.
यदि दूसरे एपिसोड का विश्लेषण करें तो इस में वेब सीरीज का मुख्य अभिनेता अतिन इस एपिसोड में उस अजीबोगरीब मूर्ति से बुरी तरह ग्रसित हो कर एक दूसरी ही दुनिया में जाता दिखाया गया है, जहां पर वह अब दिनरात उसी मूर्ति की पूजा करने और उस पर चढ़ावा रखना शुरू कर देता है और स्वयं को एक गहन अंधकार में डूबने देता है, जो स्पष्ट रूप से नकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहा है.
एपिसोड नंबर 3
तीसरे एपिसोड का नाम ‘अनुप्रवेश’ रखा गया है. एपिसोड की शुरुआत में पुष्पा दी अतिन के व्यवहार व सारे क्रियाकलापों के बारे में भावेश काकू को बता कर सहायता की प्रार्थना करती हैं. उस के बाद भावेश अंकल अतिन के घर पर एक पुजारी को ले कर आते हैं, लेकिन वह पुजारी भी उस मूर्ति के बारे में जानकारी न होने के कारण कुछ बता नहीं पाता. उस के बाद वह पुजारी अतिन को कहता है कि उसे तब तक इस मूर्ति की पूजा बिलकुल भी नहीं करनी चाहिए, जब तक इस देवी की पहचान या जानकारी न हो सके, क्योंकि यदि अतिन बिना जानकारी प्राप्त किए इस मूर्ति की पूजा करेगा तो उसे किसी अनिष्ट घटना का भी सामना करना पड़ सकता है.
पुजारी की यह सीख सुन कर अतिन उस के ऊपर आगबबूला हो जाता है और पुजारी को काफी भलाबुरा कह देता है. बेचारा पुजारी चुपचाप वहां से चला जाता है. इसी दौरान हम देखते हैं कि अब तो अतिन अपनी खुद की देखभाल नहीं कर पा रहा था. उस के कपड़े, चेहरा सब कुछ अस्तव्यस्त और बिगड़ा हुआ दिखाई देने लगा था. अगले दृश्य में हम अतिन को अपने औफिस में देखते हैं, जहां उसे बेस्ट एंप्लाई का अवार्ड दिया जा रहा था, लेकिन अतिन की मन:स्थिति तो अब ऐसी हो गई थी कि उस का अब किसी भी काम में मन बिलकुल ही नहीं लग रहा था. उस के दिल में तो अभी एक ही बात चल रही थी कि अवार्ड पा कर सीधे अपने घर चला जाऊं और वहां पर देवी की मूर्ति की तसल्ली से पूजा करता रहूं.
औफिस के सभी सहकर्मियों को भी अब अतिन का व्यवहार काफी अटपटा सा लग रहा था. सहकर्मियों को यह लगने लगा था कि अतिन के साथ कुछ न कुछ गलत अवश्य हो रहा है. अगले सीन में अतिन रात को अपनी कार से घर लौट रहा होता है तो उस की गाड़ी के सामने अचानक एक औरत आ जाती है. अतिन मुश्किल से गाड़ी को संभालता है और ब्रेक मार देता है. वह गाड़ी से उतरता है तो उसे अपने सामने बदहवास हालत में एक युवती दिखाई देती है. वह युवती अतिन से कहती है कि उसे बहुत भूख लगी है, उसे खाना चाहिए. अतिन उसे अपने औफिस की पार्टी से बचा हुआ खाना निकाल कर टिफिन में उस युवती को दे देता है.
अतिन अब जाने लगता है तो वह युवती अतिन से कहती है कि मेरा नाम दमरी (परनो मित्रा) है, मुझे मेरे घर वालों ने घर से निकाल दिया है, क्योंकि मेरा पति अब इस दुनिया में नहीं है. घर वाले कहते हैं कि मैं डायन हूं, जो अपने ही पति को खा गई है. दमरी अतिन से हाथ जोड़ते हुए प्रार्थना करती है कि मेरा इस दुनिया में कोई भी नहीं है, सब मुझे दुत्कारते हैं. आप मुझे अपने घर पर आसरा दे देंगे तो मैं आप का यह अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी. अतिन को उस पर दया आ जाती है और वह उसे गाड़ी में बिठा कर अपने घर ले कर आ जाता है. जैसे ही पुष्पा दी अतिन के साथ एक अनजान युवती को देखती है तो वह दमरी को घर में रखने का विरोध करती है, लेकिन अतिन की जिद के आगे पुष्पा हार जाती है.
अब पुष्पा दी ऊपरी मन से दमरी को खाना तो देती है पर उसे दमरी एक पल के लिए भी अच्छी नहीं लगती. अब धीरेधीरे दमरी का व्यवहार व हावभाव बदलने लग जाता है. ऐसा लगता है कि जैसे दमरी का उस मूर्ति से एक खास कनेक्शन है और दमरी एक बड़े प्लान का एक हिस्सा हो. ऐसा लगता है जैसे दमरी किसी विशेष प्लान के तहत अतिन का घर बरबाद करने के लिए उस के घर पर आई हो. दूसरे दिन अतिन औफिस से घर लौट कर सीधे मूर्ति की पूजा करने बैठ जाता है. जब दमरी यह देखती है तो वह बहुत खुश दिखाई देने लगती है. आधी रात को किसी आवाज को सुन कर पुष्पा दी की नींद अचानक खुल जाती है.
वह मोमबत्ती जला कर देखती है तो उसे अपने ठीक सामने एक भयानक से चेहरे वाली औरत का भूत दिखाई पड़ता है, जिसे देख कर वह बुरी तरह से डर जाती है और यहीं पर तीसरा एपिसोड समाप्त हो जाता है. तीसरे एपिसोड में भी लेखक और निर्देशक एक बार फिर कहानी के हीरो पर नकारात्मक प्रक्रिया दिखाते नजर आ रहे हैं. इस बार जब अतिन किसी गहरे भ्रम में फंसा हुआ पहले से ही होता है. एक बार फिर अब एक रहस्यमयी महिला उस के जीवन में प्रवेश करती है और उस के साथ अब अन्य भयावह चीजें उपस्थित होने लगती हैं.
लेखक और निर्देशक अतिन के किसी सहकर्मी द्वारा अतिन को संभालने वाला कोई दृश्य भी यदि साथसाथ दिखाते तो कहानी में और भी विश्वसनीयता आ सकती थी.
एपिसोड नंबर 4
चौथे एपिसोड का नाम ‘आक्रमण’ रखा गया है. एपिसोड की शुरुआत में हमें पता चलता है कि बीती रात से पुष्पा दी घर से एकाएक गायब हो गई हैं, जिस की सूचना मिलने पर पुलिस अतिन के घर जांच करने के लिए आती है. वहां पर भावेश काकू भी पहुंच जाते हैं, लेकिन जब पुलिस अतिन से पूछताछ करती है तो वह कुछ जबाव ही नहीं दे पाता. ऐसा लग रहा था मानो अतिन का दिमाग पूरी तरह से ब्लौक हो चुका हो. इस बीच भावेश कुछ जानकारी पुलिस को देते हैं. जब पुलिस और भावेश काकू को यह बात पता चलती है कि अतिन ने किसी दमरी नामक महिला को अपने घर में पनाह दी हुई है तो यह बात सभी को अच्छी नहीं लगती, बल्कि भावेश काकू को तो सदमा भी लग जाता है.
अगले दृश्य में रात को दमरी अतिन के लिए एक गंदा सा नौनवेज खाना बनाती है. जैसे ही अतिन खाना खाने को होता है तो दमरी अतिन से कहती है कि तुम पहले भोग देवी को नहीं चढ़ाओगे? तुम कैसे भक्त हो, जो देवी को भोग लगाए बिना ही खुद खाने लगे हो? यह सुन कर अतिन अपने ही हाथ से अपने गाल पर प्रायश्चित का एक जोर का थप्पड़ जड़ देता है, जैसे वह अपनी भूल का प्रायश्चित कर रहा हो.
उस के बाद अतिन दमरी का बनाया नौनवेज खाना मूर्ति पर भोग स्वरूप चढ़ा देता है. मूर्ति की पूजा करने के बाद अतिन वही गंदा खाना खा लेता है, जिस को खाते ही उसे उल्टी हो जाती है. उस के बाद अतिन सो जाता है. रात को अचानक अतिन की नींद खुल जाती है तो वह मूर्ति के पास जाता है. वहां पर अतिन देखता है कि आज देवी ने पहली बार उस का लगाया हुआ भोग खा लिया था. तभी वहां पर दमरी भी आ जाती है और वे दोनों मिल कर देवी की पूजा करने लगते हैं.
अगले दिन अतिन की नींद जब सुबह खुलती है तो वह काफी खुश और इनर्जेटिक फील करता है. इस रात को दमरी एक बार फिर वही गंदा, सड़ा हुआ खाना अतिन को ले कर आती है. अब रोज वही सर्कल चलने लगता है, दमरी अब रोजरोज वही सड़ा हुआ खाना पहले देवी को भोज लगाती है, फिर वही खाना अतिन खाता है. फिर वे दोनों देवी की पूजा करते हैं. कई दिनों तक यही प्रक्रिया चलती रहती है. हद तो तब हो जाती है, जब हम रोज रात को अतिन को श्मशान घाट जाते हुए देखते हैं, जहां पर वह मां..मां चिल्लाते हुए जोरजोर से आवाजें लगा रहा होता है.
अगले सीन में हम देखते हैं कि पुलिस आ कर अतिन को यह जानकारी देती है कि पुष्पा दी को हम दिनरात खोज रहे हैं, मगर वह हमें कहीं नहीं मिल पा रही है. वैसे हमारी तहकीकात अभी जारी है. तब अतिन बिना किसी इंटरेस्ट के पुलिस अधिकारी को कह देता है कि कोई बात नहीं, अब आप इस केस को क्लोज कर दीजिए. उसी रात भावेश काकू अतिन की खोजखबर और उस का हालचाल जानने अतिन के घर आते हैं. वहां पर भावेश देखते हैं कि बड़े अजीब से तरीके से नाचनाच कर अतिन देवी की मूर्ति की पूजा कर रहा होता है. भावेश को लगता है जैसे अतिन एकदम से पागल हो गया हो.
यह सब अपनी आंखों के सामने अतिन की उस हालत को देख कर भावेश का दिल डर और अनिष्ट की आशंका से बुरी तरह से कांपने लगता है. भावेश जब अतिन को समझाने या उस से बात करने की कोशिश करते हैं तो अतिन अपने भावेश काकू से एक अजनबी की तरह अजीब तरीके से व्यवहार करने लगता है, जैसे वह उन्हें जानता तक न हो. यहां तक कि वह भावेश पर हाथ भी उठा देता है. तभी भावेश की नजर दमरी पर पड़ती है तो उन्हें दमरी की आंखें लाल अंगारों की तरह जलती सी दिखाई पड़ती हैं, जैसे उस के अंदर भी कोई प्रेतात्मा वास कर रही हो.
भावेश काकू अब समझ जाते हैं कि अब आने वाले कुछ समय में घर पर कुछ बड़ा या कुछ बड़ा अनिष्ट अवश्य होने वाला है. भावेश काकू अब मन ही मन संकल्प लेते हैं कि इस घर को बचाने के लिए अब उन्हें ही कुछ न कुछ ऐक्शन जरूर लेना होगा, वरना अतिन की जिंदगी बरबाद होने से कोई नहीं रोक पाएगा. इसी के साथ चौथा एपिसोड समाप्त हो जाता है. चौथे एपिसोड में भी लेखक और निर्देशक ने नाटकीयता दिखाने का प्रयास किया है. हकीकत को बिलकुल दरकिनार कर दिया गया है. एक ओर जब पुष्पा दी घर से रात को अचानक गायब हो गई तो पुलिस जब पूछताछ करने आती है तो अतिन पागलों की तरह व्यवहार कर रहा है. इस के अतिरिक्त उस ने एक अनजान महिला दमरी को भी बिना किसी जांचपड़ताल के अपने घर में शरण दे रखी है.
इस बात पर पुलिस और भावेश काकू की नजर तो गई है, लेकिन इस बारे में पुलिस की ओर से कोई भी छानबीन नहीं की गई है. इस के अतिरिक्त एक और दृश्य में पुलिस अधिकारी अतिन के पास आता है और कहता कि पुष्पा दी का कहीं कुछ भी पता नहीं चल रहा है तो अतिन पुलिस अधिकारी से निर्लिप्त भाव से कह डालता है कि आप इस केस को यहीं पर क्लोज कर दीजिए. यह एक ऐसा दृश्य है जहां पर पुलिस की कार्यप्रणाली पर अकसर प्रश्नचिह्नï लगाए जा सकते हैं. क्या पुलिस केवल खानापूरी के लिए ही सारे देश के अलगअलग प्रदेशों में इतनी बड़ी तनख्वाह या पद के रूप में एक कायर पुरुष की भांति निर्लज्ज दिखाई दे रही है. यह महज एक मानसिकता के तौर में लेखक और निर्देशक ने दिखाने का प्रयास किया है, जो कहीं से कहीं तक स्वीकार करने योग्य नहीं है. यह लेखक और निर्देशक की विफलता को साफसाफ दर्शा रहा है.
एपिसोड नंबर 5
पांचवें एपिसोड का नाम ‘अन्वेषण’ रखा गया है. एपिसोड की शुरुआत में भावेश काका अतिन के दोस्त सुबेश अग्रवाल (छंदक चौधरी) के पास जा कर उसे अतिन के बारे में बताते हैं और सुबेश से पूछते हैं कि अब तुम मुझे उस मूर्ति की सारी बात बताओ, क्योंकि अतिन का जीवन खतरे में है. सुबेश कहता है कि उस मूर्ति को पहली बार उस की दुकान के नौकर रतन ने देखा था. उस के बाद वह कभी दोबारा काम पर भी नहीं आया और सुना है कि वह शहर से गायब हो गया है. अब सुबेश भावेश को उस पुजारी के पास ले कर जाता है, जिस ने वह मूर्ति उसे फ्री में दी थी. अगले दृश्य में हम अतिन को उस के औफिस की कैंटीन में देखते हैं, जहां पर वह काफी डिस्टर्ब दिखाई दे रहा था.
वह अब रोज ढेर सारा गंदा खाना अपने औफिस ले जाता है. इतना खाना कि उस की दुर्गंध ने पूरी कैंटीन में बैठे हुए लोग परेशान हो रहे थे. अतिन जो कुछ समय पहले काफी आकर्षक दिखाई देता था, अपने हर कार्य में सब से आगे रहा करता था, अब वह बढ़ी हुई दाढ़ी और अस्तव्यस्त कपड़े पहने हुए पागल सा दिखाई देने लगा था. अतिन जब भी उस गंदे खाने को खाता था, उसे बारबार उल्टी भी होने लगती थी. मगर उस के बाद भी वह लगातार उसी गंदे खाने को खा रहा था, क्योंकि यह खाना उस की देवी के प्रसाद रूप में था. अतिन के इस अजीब से व्यवहार को देखते हुए उस के बौस ने अतिन को एक सप्ताह की छुट्टी दे दी थी, ताकि वह अपना मैडिकल चैकअप कराए और अपने आप को व्यवस्थित कर सके.
छुट्टी मिलने के बाद भी अतिन रोज रात को श्मशान जाता रहता था. एक दिन रात को वह श्मशान से लौट कर सड़क के किनारे एक ढाबे में खाना खा रहा होता है, तभी वहां पर पहले से बैठा हुआ एक बूढ़ा आदमी अतिन से रोटी का आधा टुकड़ा मांगता है. अतिन उस आधी रोटी के टुकड़े के बजाय रोटी का एक बड़ा सा टुकड़ा उसे दे देता है. वह बूढ़ा आदमी खुश हो जाता है, फिर खाना खा कर बूढ़ा अतिन से बहुत सारी बातें करता है. वह अतिन को अपना नाम कृष्णानंद मैत्रा (सुभाशीश मुखर्जी) बताता है.
वह बताता है कि उस ने कुछ किताबें भी लिखी हैं. फिर कृष्णानंद अचानक बोलता है कि डार्क फोर्सेज ट्रू डिवोर्स को भी हाम्र्स कर सकती है, लेकिन किसी भी तांत्रिक शक्ति से अधिक ताकतवर प्यार का तंत्र होता है. यह सुन कर अतिन बड़ा कंफ्यूज सा हो जाता है. उस के बाद कृष्णानंद अतिन के गले में एक बड़ा सा लौकेट पहना देता है और अतिन से कहता है, बच्चा तू जब तक इस लौकेट को पहन कर रहेगा, तब तक कोई भी बुरा साया तुझे छू तक भी नहीं पाएगा. इस से अब यह पता चल रहा था कि कोई दैवीय शक्ति अतिन की इस समय उस की मदद कर रही थी, ताकि वह इस फंसे हुए जंजाल से सुरक्षित बाहर निकल सके.
अगले दृश्य में हम देखते हैं कि भावेश काका और सुबेश उस पुजारी के घर पर जाते हैं, जिस ने यह रहस्यमयी मूर्ति सुबेश को फ्री में दी थी. उस के बाद फिर वह पुजारी उस मूर्ति के असली राज खोलना शुरू कर देता है. वह बताता है कि वह मूर्ति कोई मामूली मूर्ति नहीं है, बल्कि यह मूर्ति 10 महादेवियों में से एक नामीगिरामी देवी की है, जिन का नाम देवी मातंगी है. पुजारी आगे बताता है कि यह बात आप दोनों अब ध्यान से सुन लें, कल शायद अतिन की जिंदगी की आखिरी रात होने वाली है.
अगले दृश्य में अतिन जैसे ही उस रहस्यमयी व्यक्ति द्वारा दिए गए लौकेट को पहनता है तो उस की मानसिक अवस्था ठीक होने लगती है. उसे अपने पूरे शरीर में काफी कमजोरी महसूस होती है. उसे अब यह लगने लगता है कि जैसे मेरा घर तो पूरी तरह से कचरे का ढेर बन चुका है. वह अब घर पर दमरी के ऊपर भी भड़कता है, जिस से उस ने आज तक कभी ऊंची आवाज में बात तक नहीं की थी. उस को वह बुरी तरह से डांट देता है. इस पर दमरी अतिन से कहती है कि आज मैं बीमार हूं, आज मैं कुछ भी काम नहीं कर सकती. तभी अतिन की नजर ऊपर से अपने घर के आंगन पर पड़ती है तो वह देखता है कि उस के घर के बरामदे में कुछ अजीब से चित्र बनाए गए हैं और उस के आसपास चिडिय़ा और बिल्ली जैसे दिखने वाले बहुत से जानवर मरे पड़े हैं.
अतिन की आंखों से अब रहस्य का परदा उठता जा रहा था, वह तुरंत पुलिस थाने में फोन कर के पुलिस से पुष्पा दी के बारे में पूछताछ करता है तो पुलिस अधिकारी उसे बताता है कि आप ने ही तो हमें इस केस को क्लोज करने के लिए कहा था. हम ने तो केस क्लोज कर दिया. उस के बाद अतिन अपने दोस्त को फोन कर के बताता है कि पुष्पा दी के लापता होने की खबर अखबार में छपवा दो. रात को अतिन सो जाता है, तभी आधी रात के वक्त 2 भयानक शक्ल वाले भूत उस के ऊपर हमला कर देते हैं. उसी वक्त अतिन दमरी को भी देखता है जो उन भूतों के साथ है. उसे दमरी का भयानक और विकराल स्वरूप उस समय दिखाई दे रहा था.
दूसरे दिन सुबह जब अतिन औफिस जा रहा होता है तो दमरी उसे कहती है कि आज मैं पूरे घर की साफसफाई करूंगी, तुम आज औफिस से देर से घर आना. क्योंकि मैं आज रात को इस पूरे घर को क्लीन कर दूंगी. इस के बाद दमरी पागलों की तरह क्रूर हंसी हंसने लग जाती है. अब अतिन को यह बात साफसाफ पता चल रही थी कि वह एक बहुत बड़े षडयंत्र में फंस चुका है. इसी के साथ पांचवां एपिसोड यहां पर समाप्त हो जाता है. पांचवें एपिसोड की बात करें तो इस एपिसोड में भी दर्शकों को डरावने दृश्य दिखा कर रोमांचित करने का प्रयास किया गया है. होटल के ढाबे में कृष्णानंद मैत्रा अतिन को एक लौकेट देता हुआ दिखाया गया है. वह कौन था, कहां से आया था, क्यों आया था और वह क्यों अतिन की मदद कर रहा था, इस के बारे में कुछ भी जिक्र नहीं किया गया है.
दूसरे एक दृश्य में पुजारी भावेश काका और सुबेश से कहता हुआ दिखाया गया है कि वह एक देवी की मूर्ति है, जिस के कारण आज की रात अतिन की आखिरी रात होगी. यह वह किस आधार पर कह रहा है, इस के बारे में वह भी लेखक और निर्देशक दिखाने में असफल रहे हैं, इसलिए यह एक नाटक भूलभुलैया का जैसा नजर आ रहा है.
एपिसोड नंबर 6
एपिसोड नंबर 6 का नाम ‘अमानिषा’ रखा गया है. अमानिषा का अर्थ अमावस्या की रात या अंधकार भरी रात होता है. एपिसोड की शुरुआत में पुजारी भावेश काका और सुबेश को उस मूर्ति की जानकारी देते हुए बताता है कि राजा ताजिन कभी भी तिब्बत के राजा जिमयोग जार्ज से नहीं हारा था. ताजिन को कमजोर करने का एक ही तरीका कि उन की बेटी को मार दो, राजा जिमयोग के लोग कई बार ताजिन की बेटी को जहर देने आए, लेकिन हर बार कोई न कोई उसे बचा लेता था.
राजा को लगा कि यह कोई बड़ी साजिश है, इसलिए वह वार डिक्लेयर कर देता है. लेकिन युद्ध से पहले राजा और उस का पूरा परिवार बीमार पड़ कर मर जाता है और जिंदा रहती है केवल ताजिन की बेटी मातंगी, जो अब देवी बन चुकी थी. यह सब विष विज्ञान के सहारे हुआ था, जो एक तांत्रिक था, जिस का नाम सहस्त्राक्ष चक्रवर्ती था, जो चक्रवर्ती परिवार कोलकाता में अपना घर सामान बेच कर गए थे, वे सहस्त्राक्ष के ही वंशज थे, जिन से वह मूर्ति सुबेश को फ्री में मिली थी. 16वीं शताब्दी में यह चक्रवर्ती परिवार बंगाल के इस घर में शिफ्ट हुई थी, उस समय उस घर के मालिक विश्वासर चक्रवर्ती थे और उस वक्त उन का छोटा भाई था सहस्त्राक्ष चक्रवर्ती. माना जाता है कि सहस्त्राक्ष इतने बड़े तांत्रिक विष विज्ञानी थे कि सांप भी उन से खौफ खाते थे.
जब इन की उम्र 30 साल की हुई तो यह अचानक कोलकाता से गायब हो गए, क्योंकि तब सहस्त्राक्ष एक तपस्वी गुरु के संरक्षण में शिक्षा ले रहे थे. 10 वर्ष तक इन्होंने तपस्या की व शिक्षा ग्रहण की. उस के बाद यह तिब्बत चले गए, वहां पर यह एक तांत्रिक गुरु से मिले और फिर एक महातांत्रिक बन गए. उस के बाद सहस्त्राक्ष ने ताजिन की बेटी को शिक्षा दी और फिर तिब्बत के राजा का विनाश कर दिया. इस विशेष काम के लिए सहस्त्राक्ष ने तिब्बत के एक महान चित्रकार को बुलवाया और उस से वही मूर्ति बनवाई जोकि आज अतिन के पास है. तभी तो वह मूर्ति तिब्बतियन जैसी दिखाई देती है.
सहस्त्राक्ष को जब इस बात का पता चला कि यदि यह मूर्ति किसी के हाथ पड़ जाए तो भयंकर तबाही हो सकती है, इसलिए वह इस मूर्ति को ले कर बंगाल आ गया और तब से आज तक करीब 600 साल तक इस परिवार के ऊपर देवी का आशीर्वाद बना रहा. लेकिन इस का एक रूल भी था कि जब चक्रवर्ती फेमिली इस घर को छोड़ेगी तो उन्हें इस मूर्ति को किसी और को सौंपना होगा, इसीलिए यह मूर्ति सुबेश अग्रवाल को फ्री में दे दी गई थी, लेकिन उन्हें इस बात का पता नहीं था कि यह मूर्ति अतिन की जिंदगी में इतना बड़ा भूचाल भी ला सकती है. पुजारी आगे बताता है कि अब अतिन को बचा पाना काफी मुश्किल है.
अगले दृश्य में हम देखते हैं कि अतिम अपने औफिस में पूरी तन्मयता के साथ पहले की तरह काम कर रहा है और बहुत खुश दिखाई दे रहा है. आज रात को वह श्मशान भी न जा कर सीधे अपने घर आ जाता है. अतिन जब रात को अपने घर आता है तो वहां पर भावेश काका उस का इंतजार कर रहे होते हैं. भावेश काका अब अतिन को मूर्ति की सारी जानकारी देते हैं. वह यह भी बताते हैं कि दमरी कोई नारमल इंसान नहीं है, यह देवी सहस्त्रावासी का तांत्रिक रूप है, इसलिए उस के हाथ में वीणा भी है.
वह हर बार रिजेक्टेड या इंप्रूव चीज को अपनाती है. क्योंकि अतिन ने देवी की पूजा में कुछ चूक की थी, इसलिए वह देवी के श्राप का शिकार हो गया है. भावेश समझाते हैं कि जब देवी नाराज होती है तो वह इंसान सोचनासमझना बिलकुल छोड़ देता है. उसे लगता है जैसे उस की जिंदगी बेकार हो गई है. उसे अकेलापन महसूस होता है, वह श्मशान जैसी जगहों में जाने लगता है, जैसा कि अब तक अतिन के साथ हो रहा था. अंत में पिशाचिनी उसे समाप्त करने की कोशिश करती है और इस केस में दमरी ही वह पिशाचिनी है, जिस ने अतिन को घिनौना खाना खिलाया. दमरी ने ही अतिन के तन और मन दोनों को कमजोर किया. भावेश कहते हैं कि आज अमावस्या की रात है और आज दमरी अपने असली रूप में आ कर अतिन को मार डालने वाली है.
यह सुन कर अतिन भावेश काका और सुबेश से कहता है कि चलिए अभी यहां से कहीं दूर भाग जाते हैं, कल सुबह यहां आएंगे और मूर्ति को नदी में फेंक देंगे. लेकिन भावेश कहते हैं कि वह पिशाचिनी अब अतिन का पीछा छोडऩे वाली नहीं है, इसलिए आज हमें उस का सामना करना होगा. अगले दृश्य में हम देखते हैं कि अब तीनों अतिन, भावेश और सुबेश घर के अंदर छिप कर देखते हैं कि घर के अंदर क्या हो रहा है. तीनों की नजर जब सामने पड़ती है तो वे देखते हैं कि दमरी उस समय अपने असली पिशाचिनी रूप में नजर आ रही थी. उस के हाथ में एक कटा हुआ हाथ था, जोकि पुष्पा दी का था.
तभी दमरी अचानक से भावेश काका पर हमला कर देती है. भावेश मूर्छित हो जाते हैं. इस के बाद वह अब सीधेसीधे अतिन के ऊपर हमला करती है, लेकिन अतिन के गले में लौकेट होने के कारण वह उसे छू भी नहीं पाती. दमरी अब अतिन का दिमाग कंफ्यूज करने के लिए उस से कहती है कि यह लौकेट उतार दो, यह तुम्हारे अंदर की ताकत तुम से छीन रहा है. पहले से ही कमजोर और डिस्टर्ब अतिन दमरी की बातों में आ कर अपना लौकेट गले से उतार देता है. अतिन के लौकेट उतारने की देर थी कि दमरी उस के ऊपर बुरी तरह से हमला कर देती है.
ऐसा लगता है कि दमरी आज अतिन की जान ले कर ही रहेगी, तभी बेहोश अतिन को याद आता है कि उस रात बूढ़े कृष्णानंद मैत्रा ने उसे बताया था किसी भी तंत्र से बड़ा प्यार होता है. अतिन को अब भावेश अंकल के साथ बिताए हुए खुशी के पल याद आने लग जाते हैं और उस अदृश्य प्यार की शक्ति से वह होश में आ जाता है और अतिन उस लौकेट को दोबारा अपने हाथ में पकड़ लेता है. अतिन उस लौकेट से दमरी के सिर पर वार कर देता है. दमरी इस आघात से जोरजोर से चिल्लाने लगती है और अगले ही पल उस का पिशाचिनी वाला रूप जल कर भस्म हो जाता है.
इसी के साथ हम देखते हैं कि अतिन की जान बच जाती है, एक बड़ा शापित चक्र टूट जाता है. उस का शरीर हवा में गायब होते हुए दिखाई देता है जोकि उस का शापित रूप था. अगले दृश्य में अतिन उस मूर्ति को नदी में जा कर प्रवाहित कर देता है. घर पर आ कर अतिन भावेश अंकल की देखभाल और खयाल रखता है जिन का कि इलाज चल रहा है. अतिन भावेश अंकल को बताता है कि उस ने मूर्ति को पानी में बहा दिया है. अब अतिन नारमल हो जाता है और औफिस में अपने हर काम को पूरी मेहनत और नई ऊर्जा के साथ करता दिखाई देता है. अब उस की प्रेमिका और सहकर्मी अनिमा (रितुपर्णा बसाक) भी उसे भाव देने लगती है.
अनिमा अब अतिन को मैसेज भेज कर और फोन कर के मिलने के लिए बुलाने लगती है. अगले दृश्य में रात को हम 2 शराबियों को सड़क के किनारे शराब पीते देखते हैं, उन में से एक शराबी को यूरिन लग जाती है जब वह झाड़ी में यूरिन कर रहा होता है तो उस के सामने वही प्रेतनी आ कर खड़ी हो जाती है और शराबी से कहती है ‘आई एम हंग्री’ और फिर वहां पर यह वेब सीरीज समाप्त हो जाती है. छठे एपिसोड की बात करें तो इस में जो पुजारी भावेश काका और सुबेश उस मूर्ति की कहानी बताता है, असल में यह मूर्ति इसी पुजारी ने खुद सुबेश की दुकान में दी थी. उस ने खुद यह मूर्ति क्यों दी, जबकि उसे इस मूर्ति के बारे में सब कुछ पता था. इस से लेखक और निर्देशक की एक बड़ी भूल कहा जा सकता है.
वेब सीरीज के अंत में उसी प्रेतनी को एक बार फिर से शराबी देखता है, जबकि उस प्रेतनी का अंत तो अतिन अपने रहस्यमयी लौकेट से पहले ही कर चुका था. यह दृश्य भी दर्शकों को भ्रमित करता है. यदि पूरी वेब सीरीज की बात करें तो निर्देशक अनिर्बान भट्टाचार्य ने एक बार फिर अपनी क्षमता दर्शकों को दिखाने की एक कोशिश जरूर की है. अतिन के मनोवैज्ञानिक उलझल को बेहतरीन तरीके से पेश करने का प्रयास किया है. हालांकि कहानी बारबार भटकती हुई सी लगती है. वेब सीरीज ‘भोग’ असल में देवताओं को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद का प्रतिनिधित्त्व करता है, जो भक्ति और ईश्वर से जुडऩे की इच्छा का प्रतीक होता है.
यह वेब सीरीज आस्था, भक्ति, अंधविश्वास और जुनून की जटिलताओं के इर्दगिर्द घूमती है. यह अंधविश्वास को भी बढ़ावा दे रही दिखती है.
अनिर्बान भट्टाचार्य
अभिनेता अनिर्बान भट्टाचार्य का जन्म 7 अक्तूबर, 1986 को मिदनापुर, पश्चिम बंगाल में हुआ था. अनिर्बान ने अपनी स्कूली शिक्षा मिदनापुर के निर्मल हृदय आश्रम, कैथोलिक चर्च स्कूल से ही था. उस के बाद साल 2004 में अनिर्बान रवींद्र भारती विश्वविद्यालय से थिएटर की पढ़ाई करने के लिए कोलकाता चला गया. उस ने नाटक में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की और 2009 में भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय से युवा कलाकार छात्रवृत्ति प्राप्त की. अनिर्बान ने बंगाली भाषा की फिल्मों से अपने करिअर की शुरुआत 2015 में जी बांग्ला सिनेमा ओरिजिनल्स जैसे ‘फादर कुलेर बौ’, ‘जोडी बालो हयान’ और ‘एभाबेओ फिरे आसा जय’ से की थी. उस ने प्रसिद्ध अभिनेत्री अपर्णा सेन की फिल्म ‘अर्शीनगर’ में सहायक भूमिका में बड़े परदे पर काफी धूम मचाई.
वर्ष 2016 में अनिर्बान अरिंदम सिल की फिल्म ‘ईगलर चोख’ में बिशन राय के एक अलग से किरदार को निभाते दिखाई दिया. इस फिल्म में उसे बड़ी सराहना भी मिली. इस फिल्म में अनिर्बान को बिशन राय की भूमिका के लिए ‘बीएफजेए मोस्ट प्रौमिसिंग ऐक्टर मेल अवार्ड’ और सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड ईस्ट मिला. इस के अलावा अतिर्बान को थिएटर में नीरद बरन स्मृति पुरस्कार, नाटक ‘राजा लियर’ में एडमंड की भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ थिएटर अभिनेता पुरस्कार, देवी सर्पमस्ता के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का शूद्रक सम्मान, सुंदरम सम्मान, नागमंडला में दोहरी भूमिका निभाने के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
अनिर्बान वेब सीरीज ‘व्योमकेश सीजन 1-4’ , ‘प्रयोगशाला’, पांच फोरन’, ‘मनभंजन’, ‘मंदार’, ‘टिकटिकी’, ‘मोहन नगर’ और ‘तलवार रोमियो जूलियट’ में भी काम कर चुका है. अनिर्बान अभिनेता होने के साथसाथ पटकथा लेखक, गायक और निर्देशक भी है. अनिर्बान विवाहित है और उस की पत्नी का नाम मधुरिमा गोस्वामी है. अनिर्बान भट्टाचार्य को पढऩे और घूमने का शौक है.
परनो मित्रा
अभिनेत्री परनो मित्रा का जन्म 31 अक्तूबर, 1986 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. परनो के पिता अरुणाचल प्रदेश में काम करते थे और उन्होंने अधिकांश जीवन वहीं पर बिताया. उन्होंने दार्जिलिंग के कुर्सेओग में डौव हिल स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की थी. परनो कोलकाता में स्थित प्रैट मेमोरियल स्कूल से पासआउट हैं. उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से अंगरेजी में आनर्स किया. परनो मित्रा का पहला टीवी सीरियल ‘खेला’ (2007) था, जो रवि ओझा प्रोडक्शन था, जिस में उस ने इंदिरा की भूमिका निभाई थी.
उस ने रवि ओझा प्रोडक्शन के एक और लोकप्रिय शो ‘मोहोना’ में मुख्य किरदार निभाया था. ‘मोहाना’ के लिए उसे सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था. परनो ने अंजन दत्त की ‘रंजना अमी अर अशबोना’ (2011) से अपने फिल्मी करिअर की शुरुआत की. इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ बंगाली फिल्म, विशेष जूरी पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए 3 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. परनो ने निर्देशक कौशिक गांगुली की ‘अपुर पांचाली’ आशिमा के रूप में परमब्रत चट्टोपाध्याय के साथ अभिनय किया, जिसे नवंबर 2013 में 44वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में प्रदर्शित किया गया था.
परनो की उल्लेखनीय फिल्में हैं ‘बेडरूम’, ‘अमी आर अमर गर्लफ्रेंड्स’, ‘माच मिष्ठी मोरे’, ‘एकल आकाश’, ‘ग्लैमर’, ‘भीतू’, ‘बेगम जान’ और प्रतीम डी गुप्ता की ‘एक्स पास्ट इज प्रजेंट’. परनो मित्रा ने 2021 में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ली और उस ने बारानगर निर्वाचन क्षेत्र से वर्ष 2021 में पश्चिम विधानसभा चुनाव लड़ा, जिस में वह अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के तपस राय से 35,147 मतों से चुनाव हार गई.